धर्म- समाज

राग द्वेष क्षय से संभव मृत्यु के भय से मुक्ति :  आचार्य महाश्रमण

नूतन वर्ष पर महा मंगलपाठ श्रवण करने उमड़े हजारों श्रद्धालु

सूरत (गुजरात) : इस बार का नूतन वर्ष का नव प्रभात सूरत वासियों लिए अविस्मरणीय बन गया जब युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी के पावन सान्निध्य में उनके श्रीमुख से महा मंगलपाठ श्रवण का अवसर श्रद्धालुओं को प्राप्त हुआ। शनिवार प्रातः चार बजे से ही संयम विहार का विशालकाल महावीर समवसरण श्रद्धालुओं से भरने लग गया था। और सभी में एक अनोखा उल्लास, उमंग छाई हुई थी। हो भी क्यों नहीं दीपावली के पश्चात नववर्ष के पावन प्रसंग पर प्रथम बार अपनी धरा कर गुरुदेव के श्रीमुख से श्रद्धालुओं को मंगलपाठ श्रवण का मौका मिल रहा था।

नववर्ष का शुभारंभ और आराध्य का सान्निध्य का अप्रतिम योग सूरत वासियों या कहे संपूर्ण गुजरात वासियों के लिए चिरस्मरणीय बन गया। पूज्य आचार्य श्री महाश्रमण जैसे ही महावीर समवसरण में पधारे तो हजारों लोगों की विशाल जनमेदिनी ने जय जयकारों से परिसर को गुंजायमान कर दिया। बाहर की सड़के तक श्रद्धालुओं से पटी हुई थी। गुरूदेव ने आगम सूत्रों एवं मंत्रों के उच्चारण के साथ नववर्ष का वृहद मंगलपाठ प्रदान किया।

इस अवसर पर जब आचार्यश्री ने एक एक साधुओं को सम्मुख बुला कर धर्म सभा में परिचय कराया तो सकल श्रावक समाज श्रद्धाभिभूत हो उठा। सूरतवासियों के लिए एक ओर यह दीपावली गुरूदेव वाली बनी वहीं बेसता वर्ष पर गुरुकृपा का प्रसाद प्राप्त कर सभी भावविभोर हो उठे।

मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में आचार्यश्री ने आर्हत वांग्मय की व्याख्या करते हुए कहा कि संसार में व्यक्ति मृत्यु से भय खाता है। मौत की अवस्था व्यक्ति को भयभीत बना देती है। जन्म मृत्यु का क्रम निरंतर चलता रहता है। जो मृत्यु से मुक्त हो जाता है वह जन्म से भी मुक्त बन जाता है। आत्मदर्शी व्यक्ति ही मृत्यु के भय से मुक्त हो जाता है। जो राग द्वेष का क्षय कर देता है वह व्यक्ति ही मृत्यु से सदा के लिए मुक्त हो सकता है।

भगवान महावीर ने निर्वाण प्राप्त किया। अब पुनः उनका जन्म मरण नहीं होगा। जो आत्मा मोक्ष को प्राप्त कर लेती है वह जन्म मरण से मुक्त हो जाती है। चौबीस तीर्थंकरों में भगवान महावीर प्रभु अंतिम तीर्थंकर हुए। कितने कितने कर्मों की उन्होंने निर्जरा की। लगभग बारह वर्षों की कठोर साधना कर उन्होंने वीतराग अवस्था को प्राप्त किया। केवल ज्ञान उसी को प्राप्त हो सकता है जो क्षीण मोह वीतराग बनता है।

गुरुदेव ने प्रेरणा देते हुए आगे कहा कि प्रेक्षाध्यान एक ऐसी विधा है जो राग द्वेष को क्षीण करने की साधना है। इस उद्देश्य से ध्यान का प्रयोग किया जाए तो वीतरागता की दिशा में कदम आगे बढ़ सकते है। संस्कार निर्माण शिविर, सघन साधना शिविर ऐसे उपक्रम है जिससे बालपीढ़ी एवं युवा वर्ग को आज के भौतिकता वादी माहौल में, सोशल मीडिया के युग में संयम की प्रेरणा प्राप्त होगी।

इस अवसर पर संस्कार निर्माण शिविर एवं सघन साधना शिविर का भी शुभारंभ हुआ। साध्वीवर्या संबुद्धयशा जी ने शिविर से संबंधित जानकारी प्रदान की। मुनि राजकुमार जी ने गीत का संगान किया। मंच संचालन मुनि कीर्ति कुमार जी ने किया।

 

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