
राम के समान महामानव दिखाई नही देता क्योकि राम अनुपमेय है
राम को पत्थरो में कैद कहने वाले यह भूल जाते है कि राम जी जैसा महामानव कई दिखाई नही देते जिसे राम के बराबर खड़ा किया जा सके।राम का व्यक्तिगत और कृतित्व अदभुत था।वैयक्तिक, पारिवारिक,सामाजिक,धार्मिक और राजनीतिक हर क्षेत्र मे राम के आदर्शों का अनुगमन करके सुखों को विस्तार दिया जा सकता है।राम का नाम अपने आप मे अत्यंत प्रभावशाली है।गोस्वामी तुलसीदास ने राम की महत्ता का संगान करते हुए बहुत ही मार्मिक अभिव्यक्ति की है-
राम नाम मणि दीप धरु,जीह देहरी द्वार।
तुलसी भीतर बाहिरहु चाहसि उजियार।।
राम को मणिदीप कहा गया है। मणिदीप हवा तो क्या आंधी तूफान में भी नही बुझता। इसके प्रकाश में पतंगे भी जलकर नष्ट नही होते।देहरी द्वार पर रखा दीपक घर के भीतर और बाहर दोनों और के अंधकार का हरण करता है।इसी तरह नाम जापक के भीतर छिपी दीनता का नाश होगा,अंदर आनन्द की अनुभूति होगी और साधक के बाहरी जीवन की मलिनता मिटेगी। समृद्वि आती है तथा भीतर बाहर उजाला रहेगा। श्रद्धा और भक्ति के साथ जब व्यक्ति अपने मुंह से रा अक्षर का उच्चारण करता है तो रा के उच्चारण के समय बोलने वाले का मुंह खुलता है और मुहं खुलने के साथ भीतर में रहे हुए पापो का सारा कचरा बाहर निकल जाता है तथा म बोलते ही होठ बन्द हो जाते है तो म के किवाड़ लग जाने से बाहर निकले हुए पाप भीतर में पुनः प्रविष्ट नही करते है।
दुख में भी परम आनंद की अनुभूति
राम की उस स्थिति से जुड़े,जब उन्होंने दुख की प्रतिकूल परिस्थिति में भी परम आनंद की अनुभूति की थी। राम को राजगद्दी मिलनी थी। लेकिन रात भर में पासा पलट गया।प्रातःकाल होते ही चौदह वर्ष के वनवास की आज्ञा मिली।ऐसी विषम और प्रतिकूल परिस्थितियों मे भी और वनवास की सूचना पाकर तो राम आनन्द विभोर हो गए। वन में ऋषियों का मिलना होगा। मुझसे ज्यादा भाग्यशाली कौन है? ऐसे में मैं भी वन को नही जाऊ तो मेरी गिनती मूर्खो में होगी।अयोध्या का राज राम ने बटाऊँ की तरह त्याग दिया।
एक राम दशरथ का बेटा,एक राम घट घट में बैठा। एक राम का जगत पसारा, एक राम दुनिया से न्यारा।
राम का अभिप्राय आत्मा से भी है। जगत में जो कुछ भी वैशिष्ट्य है,वह आत्मा राम के कारण ही तो है। सागर पार करते समय सेतु बन्द की दृष्टि से जब पत्थरो का उपयोग किया जाने लगा तो जिन पत्थरो पर राम अंकित था वे तीर गए एवम जो राम से पृथक या शून्य थे,वे डूब गए। राम के जीवन की विन्रमता,सरलता,सूझबूझ,उदारता और सद्गुण आदि के लिए जितना भी कहा जाए,कम है।राम के जीवन से प्रेरणा लेकर अपने जीवन को राममय बनाने का प्रयास करे। राम की प्रतिस्थापन हम अपने मन मन्दिर में कर देते है तो फिर हमारे मन मे विकृतियों एक पल के लिए नही ठहर पायेगी।मूल्यहीनता और भौतिकता प्रधान युग मे जो संवेदन शून्य स्थितियां देखने मे आ रही है। वह अत्यंत भयावह है।लगता है आज के युग मे राम के नाम की चर्चा मात्र रह गई है। जीवन की जो हमारी चर्चा है,वह राम नही वत है।यही कारण है कि आज स्वार्थों का साम्राज्य है।
इसलिए तो राम और हिन्दू आस्था पर चोट कर अपना राजनीतिक करियर बनाना चाहते है। बिहार में राजद के प्रदेश अध्यक्ष जगदानन्दसिंह ने राम के मंदिर निर्माण को लेकर गलत बयान दिया। उनका कहना है कि नफरत की जमीन पर राम मंदिर निर्माण हो रहा है। इस देश मे इंसानियत में बड़ा उन वादियो के राम बचे हुए है। अब लोगो गरीबो अयोध्या के राम शबरी के जूठन खाने वाले नही है बल्कि पत्थरो की भीतर कैद रहने वाले राम रहेंगे। हम लोग राम वाले है जय श्री राम वाले नही है। अब राम रामायण से भाग जाएंगे। जगदानन्द सिंह नास्तिकता की पराकाष्ठा लांघ चुके है। अगर उनके मन मे राम के प्रति आस्था होती और वे राम को मानते होते तो भगवान राम के नाम की जबान गन्दी नही करते।क्योकि जिस राम को सिर्फ पत्थर के भगवान मानते है।वे आस्था से दूर है और राजनीतिक रोटियां सेंकने के लिए राम के नाम का गलत बयान दे रहे है।राम को उचित स्थान और सम्मान दे। ऐसी कोई प्रवृति हमे नही करनी चाहिए जिससे विकृतियों का कचरा एकत्रित हो।
( कान्तिलाल मांडोत )