सूरत

राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा से पहले सूरत में बना एक और इतिहास…

राममय माहौल में वारली कला में निमिषा पारेख रचित "मेहंदीकृत रामायण" ने बिखेरे खुशियों के रंग

सूरत : आगामी सप्ताह में अयोध्या में भव्य राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा से पहले सूरत में एक और ऐतिहासिक प्रसंग दर्ज हुआ है। इन दिनों पूरे शहर में रामभक्ति का माहौल है, ऐसे में शहर में आयोजित एक कार्यक्रम में मेहंदी के मनमोहक रंग ने सभी को भक्ति और त्योहार के रंग में रंग दिया है। मेहंदी कल्चर के संस्थापक और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जानी-मानी मेहंदी आर्टिस्ट निमिषा पारेख रचित “मेहंदीकृत रामायण” में उन्होंने और उनकी टीम ने सूरत की 51 बहनों के हाथों पर वारली आर्ट में मेहंदी के रूप में रामायण की चौपाई पर आधारित 51 प्रसंगों को प्रस्तुत किया, जिसने सभी का ध्यान आकर्षित किया।

अंदाजित 500 वर्षों के संघर्ष के बाद अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण किया जा रहा है। निमिषा पारेख ने कहा कि, ‘रामायण’ भारतीय संस्कृति का अद्वितीय ग्रंथ है, जो सामाजिक जीवन, मानवीय मूल्यों और नैतिकता के उच्च आदर्शों को दर्शाता है। उन्होंने बीते वर्ष अगस्त में अयोध्या में निर्माणाधीन राम मंदिर परिसर का दौरा किया था। मंदिर की भव्यता ने उन्हें बहुत आकर्षित किया। अपनी मेहंदी कला को भगवान रामजी के चरणों में प्रस्तुत करने की अवधारणा के साथ, उनके मन में रामायण के विभिन्न प्रसंगों को मेहंदी के रूप में चित्रित करने का विचार जागृत हुआ। निमिषाबेन ने खास किस्म के वारली आर्ट में मेहंदी के रूप में रामायण के प्रसंगों को प्रस्तुत करने का फैसला किया।

इस इनोवेटिव आइडिया ने उन्हें बहुत प्रोत्साहित किया। पारंपरिक पोशाक में सूरत की लगभग 51 बहनों के हाथों पर रामायण की चौपाइयों पर आधारित रामजन्म, बाल अवस्था, स्वयंवर, बनवास के लिए प्रस्थान, सीता हरण, हनुमान मिलाप, सुग्रीव राजाभिषेक, रावण युद्ध और राम दरबार तक के विभिन्न 51 प्रसंगों को वारली आर्ट में मेहंदी के रूप में प्रस्तुत करने का अनुभव सचमुच रोमांचक था। उन्होंने आगे कहा कि, “भगवान राम और माता सीता के प्रति मेरे मन में जो भक्ति और आस्था है, उसे मैंने मेरी रामभक्त बहन के हाथों में मेहंदी के रूप में पेश किया है।”

निमिषाबेन ने कहा कि, वारली आर्ट महाराष्ट्र और गुजरात के आदिवासी समुदाय द्वारा निर्मित प्राचीन भारतीय कला है। ये पेंटिंग मुख्य रूप से खेतों में फसल के मौसम, शादियों, त्योहारों, जन्मों और सामाजिक शुभ अवसरों को खूबसूरती से दर्शाती हैं। वारली आर्ट के मुख्य विषयों में विवाह का प्रमुख स्थान है। वारली पेंटिंग शुभ मानी जाती है और त्योहार के दौरान खुशी की भावना व्यक्त करती है। वारली आर्ट को मेहंदी के रूप में सबसे पहले निमिषाबेन ने ही प्रस्तुत किया था। इस इनोवेटिव कॉन्सेप्ट को अमेरिका, लंदन के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी लोगों द्वारा खूब सराहा गया है।

निमिषाबेन ने आगे कहा कि, देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्र और राज्य सरकार आदिवासियों के उत्थान के लिए लगातार प्रयासरत हैं। ऐसे में राम मंदिर निर्माण से पहले आदिवासियों की सांस्कृतिक विरासत और सुंदर कला, वारली आर्ट में मेहंदी के रूप में रामायण के प्रसंगों को प्रस्तुत करके हम अनोखे उत्साह और गौरव का अनुभव कर रहे हैं।

“इस भव्य कार्यक्रम के आयोजन का मुख्य उद्देश्य आज के आधुनिक युग में युवाओं के बीच भारतीय संस्कृति का जतन और मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम के आदर्शों को विकसित करना है। इसके अलावा, आदिवासी संस्कृति वारली आर्ट को प्रोत्साहन मिले और मेहंदी केवल श्रृंगार का साधन नहीं, परंतु महिला के सम्मान, प्रेम और खुशी का प्रतीक भी है, ऐसी भावना को व्यक्त करने का भी उमदा आशय है।”

उल्लेखनीय है कि, भगवान श्रीराम, लक्ष्मण, माता सीता, हनुमानजी, विभीषण, रावण जैसे रामायण के पात्रों की छवियों को मेहंदी के रूप में प्रस्तुत करने वाला यह संभवतः भारत का प्रथम आयोजन है।

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