दीपावली भारत का सांस्कृतिक पर्व है
कार्तिक कृष्ण पक्ष की अमावस्या की सघन काली रात में ज्योति का झिलमिल प्रकाश करके दीपावली मनाने की यह परंपरा भारतीय संस्कृति के बहुमुखी चिंतन को प्रकट करती है। प्रत्येक अमावस्या गहन अंधकार में डूबी हुई होती है, पर आज की अमावस्या में अंधकार की तनिक भी अवस्थिति नही है।
आज की रात्रि में कोई ,कही भी दृष्टिपात कर ले, उसे सर्वत्र आलोक ही आलोक अठखेलियाँ करता हुआ दिखाई देगा। दीपावली है। इस पर्व के आगमन का हर एक व्यक्ति को बेसब्री से इंतजार होता है। जिस घर मे अधिक स्वच्छता अथवा अधिक प्रकाश होगा, उसी घर मे लक्ष्मी का आगमन होगा और लक्ष्मी जी उन्ही पर प्रसन्न होगी। गणेश बुद्धि का देवता माना गया है। विघ्नविनाशक और मंगलकारक है गणेशजी,तो उसी लक्ष्मी संपति-समृद्धि की देवी है। कुबेर यक्ष को भी धन का देवता बताया गया है।
फर्क यह है कि कुबेर केवल धन का रक्षक है,वह रखवाली करने वाला पहरेदार है। इसलिए कुबेर पूजा का प्रचलन नही है,किंतु धन देने वाली लक्ष्मीजी की पूजा होती है और उसके साथ गणेशजी की पूजा की जाती है। इस बात पर विचार करने से लगता है-संसार मे धनवान का नही,धन देने वाली दानी का महत्व है उससे भी अधिक महत्व है बुद्धि का,सद्बुद्धि का।समृद्धिवान,धनवान अनीति व दुर्बुद्धि से ग्रस्त हो सकता है। क्योंकि लक्ष्मी मोह उत्पन्न करने वाली है,मनुष्य के विवेक पर पर्दा डालती है।
इसलिए लक्ष्मीवान होने के साथ साथ बुद्धिवान होना भी जरूरी है। धन के साथ विवेक जागृत करना चाहिए।समृद्वि के साथ बुद्धि रहेगी तो वह सम्पति समाज,धर्म और राष्ट्र के लिए कल्याणकारी हो सकती है।लगता है इसी दूर दृष्टि से विचार करके प्राचीन समाजशास्त्रियों ने हमारी समाज व्यवस्था की रीति,नीति,त्यौहार पर्व आदि का विधान करने वालो ने लक्ष्मी के साथ गणेशजी को महत्व दिया है।अर्थात धन के साथ विवेक का बंधन किया है ताकि धन हमारे लिए अहितकारी विनाशकारी न होकर मंगलकारी हो।
अंधकार और प्रकाश
याद रहे अंधकार हमारा मूल स्वभाव नही है।हमारा अपना मूल स्वभाव है प्रकाश।अंधकार में अपना मन घुटन व विफलता की अनुभूति करता है।जबकि प्रकाश में किसी भी प्रकार की घुटन एवं विफलता को अवकाश नही रह जाता।बाहरी अंधकार से हम इतने परेशान हो उठते है,पर क्या कभी हमारा ध्यान जाता है कि हमारे भीतर में मिथ्यात्व एवं अज्ञान का कितना गहरा अंधकार परिव्याप्त है? कब तक इन दमघोटु अंधेरो की गुलामियों को इस तरह स्वीकार करते रहेंगे? दिप पर सचमुच महान पर्व है। माटी के दीपो एवं विधुत बल्ब का संयोजन करके ही हम नही रह जाए। हम इस पर्व में भीतर में ज्ञान का,दर्शन का,चारित्र का,तप का,स्नेह एवं सद्भाव का,सेवा और समर्पण का दीप जलाए एवं चिरकाल से भीतर में आसन जमाए हुए अज्ञान,मिथ्यात्व,असंयम एवं स्वार्थ के अंधेरे को दूर भगाए।आज से हमें अज्ञान और अविवेक से प्रेरित होकर जीवन मे अंधकार में नष्ट करते रहे।
दीपावली की पृष्ठभूमि
दीपावली भारत का सांस्कृतिक पर्व है।राजा बलि ने देवताओ को बंदी बनाया तब उसके साथ लक्ष्मी को भी बन्दी बना लिया गया था।तब भगवान विष्णु ने वामन रूप धारण धारणकर देवताओ सहित लक्ष्मी को बलि के बन्दीगृह से दीपावली के दिन मुक्त कराया। इस कारण इस दिन लक्ष्मी की पूजा आरम्भ हो गई। पुरुषोत्तम राम श्री लंका विजय करके सीता माता सहित लक्ष्मण अयोध्या लौटे तो अयोध्यावासियों ने पूरे राज्य में विशाल उत्सव मनाया।घर घर दीपक जलाये गये। इसलिए कार्तिक अमावस्या के दिन दीपमालिका करने की प्रथा चली।
तुलसीदास जी ने इसका रोचक वर्णन किया।सांझ समय रघुवीर पूरी की,शोभा आज बनी।ललित दीपमालिका विलोकहि,हितकर अवधधनी।जैन परम्पराओ के अनुसार भगवान महावीर अपने जीवन के 72वे वर्ष में पावापुरी में चातुर्मास बिताते है और अपना निर्वाण समय नजदीक आया देखकर कार्तिक वदी 14 से ही छठम तप करके उसी दिन से अंतिम उपदेश प्रारम्भ करते है जो अमावस्या की रात्रि तक निरन्तर अविरल चलता रहा। हजारो देव दानव मानव उनके समवसरण में एकाग्रचित्त बैठे।
भगवान के इस अंतिम समवसरण में अठारह गण राजाओ ने भी उपवास पौषध करके धर्माराधना की थी।चारो तरफ शोक उदासी का वातावरण सबको भयाकुल बना देता है।इस अंधकार को दूर करने के लिए देवताओ और मानवो ने मिलकर प्रकाश करने का निश्चय किया।देवताओ ने रत्न और मणि दीपो से प्रकाश किया तो मानवो ने घर घर माटी के दिये जलाकर उधोत किया,अंधकार भगाया।दिप जलाकर प्रकाश पर्व मनाया गया।
लक्ष्मी का निवास स्थान कहा है?
लक्ष्मी की प्राप्ति के लिए संसार लालायित है। उसे जगह जगह खोज रहा है।परंतु उसे यह नही पता कि लक्ष्मी इन सोने चान्दी के ढेर में नही रहती या तिजोरियों में बंद भी नही रहती। लोग कहते है कि लक्ष्मी चंचला है।वह एक जगह आसन जमकर नही बैठती,परन्तु सच बात तो यह है कि लक्ष्मी को अपना मन पसन्द स्थान नही मिलता है। इसलिए उसे बार बार स्थान बदलना पड़ता है। लक्ष्मी का आसन कमल है।लक्ष्मी जी का नाम भी कमला है। लक्ष्मीजी के हाथ मे कमल है।लक्ष्मीजी को कमल से इतना प्रेम क्यों? कमल जल के ऊपर तैरताहै।कीचड़ में पैदा होकर भी निर्लिप्त रहता है। कमल की जड़े जल में होकर नीचे गहरी जाती है।
कमल में सुगन्ध और सौंदर्य दोनों गुण है।यह सब संकेत करती है-धन अन्याय,अनीति,कठोरता,शोषण,कृपणता और आतंक आदि के कीचड़ में पैदा होता है परंतु जो व्यक्ति धन पाकर इन दुर्गुणों से दूर रहता है वह कीचड़ में कमल की भांति जीता है।कमल की जड़े जल में गहरी जाती है।यह सूचना करती है कि अपनी जड़ हमेशा गहरी रखो।धर्म की भूमि तक जिनकी जड़े होती है वह जल्दी से विनिष्ट नही होता। धन पाकर जिसमे उदारता और विनम्रता का गुण आता है,उसमे कमल की सुंदरता और सुगन्ध मानी जाती है।
दीप पर्व की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
दीपावली पर्व पर अपने भीतर में संयम साधना एवं परमार्थ का प्रकाश पैदा करे,तभी दीपावली के इस दिप पर्व की सार्थकता सिद्ध होगी।अब दिप पर्व की जो ऐतिहासिक पृष्ठभूमि है,दीप पर्व में सैकड़ो प्रसंग जुड़े हुए है और वे सभी प्रसंग हमे संप्रेरित करते है। भगवान महावीर का परिनिर्वाण एवं गणधर गौतम को कैवल्यज्ञान की प्राप्ति,इस तरह दीप पर्व के साथ जुड़ी हुई प्रमुख रूप से दो घटनाएं है।भगवान महावीर का अंतिम वर्षावास पावापुरी में था। इसीतरह मर्यादा पुरुषोत्तम राम लंका विजय करके चौदह वर्ष के बाद अयोध्या में लौटे थे।उनके मंगल आगमन के उपलक्ष्य में असीम प्रसन्ता के साथ अयोध्यावासियों ने अपने घरों और सम्पूर्ण नगर को दीप पंक्तियों से जगमगकर राम का अभिनंदन किया।
महात्मा बुद्ध ने अपने शिष्य आनन्द को आत्मानन्द प्राप्त करने के लिए अप्प दीपो भव अर्थात स्वयं दीप बनो,का दिव्य संदेश इसी दिन प्रदान किया।सिख गुरु श्री हरगोविंद सिंह जी ने जेल मन्दिर से स्वर्ण मंदिर तक की विजय यात्रा इसी दिन पूर्ण की।आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती इसी दिन स्वर्गारोही हुए।स्वामी राम तीर्थ ने इसी दिन गंगा की लहरों में समाधि ली।स्वामी विवेकानंद ने इसी पावन पर्व पर रामकृष्ण परमहंस का सानिध्य प्राप्त किया।
सर्वोदय के संबल विनोबा भावे ने इसी दिन को अपनी इच्छा मृत्यु के रूप में चुना।इन सभी उदाहरणों से यह अधिकार पूर्वक कहा जा सकता है कि दीप पर्व का महत्व असन्दिग्ध है।दीपावली पावन अवसर पर यह अभ्यास भी रहे कि हम अपने जीवन में अच्छाई का समावेश करे और बुराइयों से अपना दामन बचाएं।सद्गुणों से समृद्ध जीवन न केवल स्वयं के लिए,अपितु अन्य जनों के लिए भी वरदान सिद्ध होता है।
( कांतिलाल मांडोत )