धर्म- समाज

ज्ञान अनंत है समय कम है अतः सारभूत ज्ञान को ग्रहण करें :  आचार्य महाश्रमण 

दीक्षार्थियों की शोभायात्रा (वरघोड़ा) यात्रा एवं मंगल भावना समारोह

सूरत (गुजरात)। आचार्य  महाश्रमण जी चतुर्विध धर्मसंघ के साथ सूरत शहर में चातुर्मासिक प्रवास पर है। आचार्य के पावन प्रवेश के बाद से ही शहर में ऐसा लग रहा है मानों कोई आध्यात्मिक उत्सव आ गया हो। प्रातः चार बजे से ही गुरुदेव के दर्शनार्थ लोगों का तांता लग जाता है। मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में महावीर समवसरण की विशाल जनमेदिनी इस धर्म नगरी की पहचान को ओर सुदृढ़ कर देती है। कल आचार्यश्री के पावन सान्निध्य में भव्य जैन दीक्षा समारोह समायोजित है। जिसमें आठ दीक्षार्थी संयम जीवन स्वीकार कर भोग से त्याग के पथ पर आगे बढ़ेंगे। मध्यान्ह में दीक्षार्थियों की शोभायात्रा (वरघोड़ा) भी निकाली गई जिसमें शहर वासियों की बड़ी संख्या में उपस्थिति रही।

रात्रि में मंगल भावना समारोह समायोज्य है। जिसमें पारमार्थिक शिक्षण संस्था की मुमुक्षु बहनों द्वारा आध्यात्मिक आरती का दृश्य विशेष उल्लेखनीय रहता है। साथ ही पारिवारिक जनों ने दीक्षार्थियों के प्रति अपनी भावाभिव्यक्ति दी। दीक्षा महोत्सव के साथ कल तेरापंथ के आद्य प्रवर्तक आचार्य श्री भिक्षु का जन्म दिवस भी बोधि दिवस के रूप में मनाया जायेगा। 20 जुलाई को चातुर्मास स्थापना दिवस एवं 21 जुलाई को तेरापंथ स्थापना दिवस मनाया जायेगा।

मंगल प्रवचन में प्रेरणा देते हुए आचार्य ने कहा – हमारे जीवन में ज्ञान व शिक्षा का बड़ा महत्वपूर्ण स्थान है। शिक्षा लौकिक भी व आध्यात्मिक भी दोनों प्रकार की होती है। कितने कितने क्षेत्रों में विद्यार्थी शिक्षा प्राप्त करने के लिए प्रयास रत रहते हैं। तात्विक दृष्टि से से ज्ञान के दो प्रकार है – क्षायिक व क्षयोपशमिक। ज्ञान की पूर्ण प्राप्ति, केवल ज्ञान की प्राप्ति व कर्मों के पूर्ण विलय से क्षायिक ज्ञान होता है तथा आंशिक ज्ञान क्षयोपशम से हो सकता है। ज्ञान अपने आप में पवित्र है। ज्ञान का कोई अंत नहीं है। कोई सौ वर्षों तक भी पढ़ता रहे तो ज्ञान पूर्ण नहीं होता। ज्ञान प्राप्ति के लिए विनय का होना जरूरी है।

गुरुदेव ने आगे कहा कि ज्ञान प्राप्ति के लिए जरूरी है की देने वाला विशेषज्ञ हो, ज्ञानी हो और लेने वाला भी योग्य हो। जो ज्ञान पिपासु होता है वही ज्ञान को प्राप्त कर सकता है। व्यक्ति ऐसा ज्ञान प्राप्त करें जो जीवन के लिए उपयोगी हो। ज्ञान अनंत है और काल सीमित, उसमें भी विघ्न बाधाएं भी आ जाती है। ऐसे में सारभूत ज्ञान को ग्रहण कर लेना चाहिए। जैसे हंस केवल दूध और पानी में दूध ग्रहण करता है उसी प्रकार केवल सारभूत ज्ञान को ग्रहण करना चाहिए। वर्तमान समय में ज्ञान प्राप्ति के लिए आज आधुनिक तकनीक का भी बड़ा विकास हुआ है, लेकिन इस तकनीक का दुरूपयोग न हो।

इस अवसर पर विशेष रूप से अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के सलाहकार  अजय भुतोडिया कार्यक्रम में उपस्थित थे।

अभिनंदन के क्रम में बाबूलाल भोगर, अनिल बोथरा, उधना से निर्मल चपलोत, गौतम आंचलिया, सोनू बाफना, प्रदीप गंग, विमल लोढ़ा, लक्ष्मीलाल गोखरू, फूलचंद चत्रावत, राजेश सुराणा, श्रीमती कनक बरमेचा, गणपत भंसाली, चंपक भाई, प्रवीण भाई, अर्जुन मेडतवाल, शैलेश झवेरी, राजा बाबू एवं दिव्य भास्कर के एडिटर मृगांक ने अपने विचार व्यक्त किए। साथ ही दैनिक भास्कर के चीफ एडिटर मुकेश  शर्मा आदि ने दिव्य भास्कर की प्रति गुरुदेव को भेंट की।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button