शांति और करुणा के अग्रदूत प्रभु यीशु
श्रद्धा और विश्वास को साक्ष्य की जरूरत नही होती।इसलिए ईश्वर में श्रद्धा रखने वाले लोग कभी यह तर्क नही करते की ईश्वर है तो सामने आए,हमारे सौर मंडल का पृथ्वी यह सदैव ही ज्ञान का अन्वेषक रहा है। किसी ने परमात्मा को खोजने में समय गुजार दिया तो किसी ने यह बताने में अपनी उम्र कुर्बान कर दी कि परमात्मा है उसे जानो। परमात्मा को पृथ्वी पर रहने वाले परमात्मा के अंशरूप आत्मा के बीच तादात्म्य बिठाने का प्रयास करने वालो की एक लंबी सूची है। प्रभु ईशा मसीह भी ऐसी ही एक दिव्य विभूति इस पृथ्वी पर अवतरित हुई जिसे उस समय लोगो ने नही माना। वे कहते रहे कि परमात्मा तुमको देख रहा है। वह तुमारे कष्ट दूर करेगा।तुम और मै सभी उसी परमात्मा की संतान है। आज ईसा की जन्म के इतने वर्षों बाद भी यह विवाद कायम है कि वे कब पैदा हुए थे। 25 दिसम्बर को ही प्रभु ईसा मसीह के जन्म दिन के रूप में मनाते है।तर्क कुछ भी हो सकता हैलेकिन इतिहास ही सर्वोपरि है।
आगे पीछे जन्म दिन मनाने का रिवाज हिन्दू धर्म मे भी है। जिसका तिथि से संबंध रहता है। कोई दिन के हिसाब से पर्व मनाता है तो कोई तिथि के घटना और बढ़ना का माध्यम रहता है। अजेय सूर्य का जन्म दिवस ईसाई धर्म को मानने वालों में जीसस के जीवन से जोड़कर देखा जाता है 25 दिसम्बर को ही ईसा मसीह का जन्म दिन धूमधाम से मनाया जाता है। इस स्मय जिस ईसाई मत के अनुयायियों की संख्या संसार मे सबसे अधिक है,उसके प्रवर्तक महात्मा यीशु यानी क्राइस्ट ने सबसे पहले अरब में अपने मत का प्रचार किया था। उस समय वहा यहूदियों का प्राबल्य था। यहूदियों ने ईसा को पकड़कर प्राणदंड दिया और इसके तहत यीशु को लकड़ी के क्रॉस पर लटका कर मार् दिया गया। मरते समय ईसा ने यही शब्द कहे थे है ईश्वर इन लोगो को क्षमा कर देना क्योकि ये बेचारे नही जानते है कि वे अपराध कर रहे है। महात्मा यीशु को फांसी हो जाने के बाद उनके अनुयायियों ने उनका मत यूरोप में विस्तार से फैलाया। क्योकि यहूदियों ने ईसा को फांसी पर चढ़ाया था। इसलिए ईसाई लोग यहूदियों को घृणा की दृष्टि से देखते थे। महात्मा ईसा बाल्य अवस्था से ही दयालु थे। जब वे तेरह साल के हुए ,तब उनके परिवार वालो ने उनका विवाह करना चाहा। लेकिन ईसा ने विवाह नही किया और घर से निकल पड़े। कहते है कि इसके बाद वह ईरानी व्यापारियों के साथ सिंध मार्ग से भारत चले आये। इतिहासवेत्ता एक पुस्तक में लिखते है कि भारत मे आकर हजरत ईसा बहुत समय तक जैन साधुओं के बीच रहे।
हजरत ईसा ने अपने प्रचार में तीन बातें लिखी।आत्म श्रद्धा या आत्म विश्वास यानी तुम अपनी आत्मा को समझो। विश्व प्रेम और तीसरा जीव दया।जैन दर्शन का सम्यक दर्शन और सम्यक चरित्र का ही रूपांतर महात्मा यीशु का सिद्धांत है। इतिहास बताता है कि ईसा भारत और भोट देश आकर अज्ञातवास में रहे थे और उंन्होने जैन एवं बौद्ध साधुओं के साथ साक्षात्कार किया था। अरब में तीन धर्मो की स्थापना हुई। यहूदी,ईसाई और इस्लाम। इन तीनो में प्राचीन यहूदी धर्म है। बाइबिल के प्राचीन अंश को यहूदी प्रमाण मानते है। बाइबिल का उतना अंश उनका धर्मग्रंथ है। हजरत ईसा मूसा के बाद हुए है।उनका उपदेश बाइबिल का उत्तरार्द्ध अंश है।बाइबिल आज दुनिया के सबसे अधिक लोगो का दर्शन ग्रंथ है तो इसकी वजह यही है कि प्रभु यीशु ने अपने बलिदान से दुनिया को नया जीवन दर्शन और नई रोशनी दी।
बड़ा दिन 25 दिसम्बर
माना जाता है कि इस दिन बेथ लेहम में प्रभु यीशु का जन्म हुआ था। एक रात गरेबियल नामक देवदूत ने वर्जिन मैरी को बताया कि उन्हेंईश्वर के बेटे की माँ बनने के लिए चुना गया है। इस बीच मैरी और जोसफ जब तक बेथलेहम पहुंचते तब तक बच्चे के जन्म लेने का समय आ गया इसलिए उन्हें रात में ही भेड़ो के बाड़े में रुकना पड़ा। वहीं पर प्रभु यीशु का जन्म हुआ। तीन बुद्धिमानो को प्रभु के जन्म का अनुमान था तो वे उन्हें खोजने निकल पड़े कि उन्हें आकाश में एक विशेष चमकीले नीले तारे को देखकर पता चला कि प्रभु जन्म ले चुके है। इसी तारे के सहारे वे उस बाड़े तक आ पहुंचे। जब उन्होंने मैरी, जोसफ और बालक जीसस को देखा तो वे उनकी पूजा करने लगे और बहुत सी कीमती धातुओं के तोहफे उन्हें दिये। सामान्य बालक की तरह पले बढ़े जीसस के अंदर पैगम्बर के वे समस्त गुण थे जिन्होंने उन्हें आदरणीय और अनुकरणीय बनाया । बहुत से विरोध और प्रताड़नाओं के बावजूद उन्होंने विश्व के सबसे व्यापक उदार और शांति ,सेवा को सर्वोच्च मानने वाले ईसाई धर्म की स्थापना की गई।
क्रिसमस धूमधाम से मनाया जाता है
क्रिसमस को पूरे विश्व के ईसाई समुदाय में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। सभी ईसाई परिवार क्रिसमस की शाम चर्च में एकत्रित होते है जहाँ सामूहिक प्रार्थना और मास सेरमनी में भाग लेते है। मन को मोह लेने वाली धुनों से सजे कैरल्स यीशु की प्रशंसा और स्तुति के गीत है। क्रिसमस टी बहुत आकर्षित करता है। यह एक विशेष वृक्ष होता है। जो बर्फीली सर्दियों में भी हरा भरा रहता है। इसकी परम्परा तब से चल पड़ी जब क्वीन विक्टोरिया के पति राजकुमार एल्बर्ट ने विंडसर कासल में कैंडीज,फल और छोटे तोहफों से एक बहुत बड़े क्रिसमस ट्री को सजाया था। तब से यह परम्परा में शामिल हो गया। जब भी क्रिसमस पर स्नो फॉल होता है उसे शुभ माना जाता है और उसे वाइट क्रिसमस कहा जाता है। चाहे आप किसी भी धर्म के हो,प्रेम भरे उपहारों का धर्म तो प्रेम ही होता है। सांता क्लॉज और प्रभु यीशु ने हमे संपूर्ण विश्व से जोड़ा है तो आओ क्यो न हमे क्रिसमस भी उसी उत्साह से मनाए जैसी दीवाली या ईद,ओणम, महावीर जयंती,दुर्गा पूजा या अन्य त्योहार मनाते है।
( कांतिलाल मांडोत )