अब आधुनिक मशीनों से बन रहा फाफड़ा, फाफड़ा- जलेबी के दामों में 20 से 25 फीसदी की बढ़ोतरी
सूरत में दशहरा का त्योहार फाफड़ा-जलेबी की दावत के बिना अधूरा है और इस खाने में भी सुरतिलाला हर साल फाफड़ा-जलेबी खाने से नहीं हिचकिचाते। लेकिन इस साल फाफड़ा में पिछले साल के मुकाबले 20 से 25 फीसदी और जलेबी में 10 से 15 फीसदी ज्यादा कीमत चुकानी होगी। वहीं कारीगरों की कमी के चलते फाफड़े बनाने में तकनीक का इस्तेमाल हो रहा है।
खाने के शौकीनों के लिए भी फाफड़े-जलेबी खाना कोई नई बात नहीं है और वे जब चाहें फाफड़े-जलेबी की दावत का लुत्फ उठाते हैं। लेकिन इस साल खाने के शौकीन सुरतीस को फाफड़ा में 20 से 25 फीसदी और जलेबी में 10 से 15 फीसदी ज्यादा देना होगा। फरसान विक्रेता ने बताया कि इस साल फाफड़े की कीमत रु. 500 यानि 25 प्रतिशत और जलेबी रु. 330 से ज्यादा यानी 10 से 15 फीसदी की बढ़ोतरी हुई हैं।
शुद्ध घी से बनी एक किलो जलेबी की कीमत रु. 500 का भुगतान करना होगा। उसमें भी मोनोपाली व्यापारी 600 रुपए लेते हैं । घी, तेल, बेसन जैसी सामग्री के दाम बढ़ने से फाफडा-जलेबी के दाम बढ़ गए हैं। पिछले कुछ समय से फाफड़ों के कामगारों की कमी है। पावागढ़ और चिखली के आसपास के क्षेत्र के निवासियों को फाफड़ा बनाने में महारत हासिल है लेकिन वे काम करने को तैयार नहीं हैं।
वहीं फाफड़ा बनाने आने वाले कारीगरों को फिलहाल दो से ढाई घंटे के लिए 1000 से 1200 रुपये देने पड़ते हैं। जब एक कारीगरों को पूरे दिन काम करना होता है, तो उससे 1500 और लंच, चाय और नाश्ता देना होगा। नतीजा यह है कि फरसाना के व्यापारियों ने राजकोट में बनी तकनीक यानी फाफड़ा की मशीन का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है।