धर्म- समाज
पर्युषण महापर्व : जैनचर्या का मूलाधार है सामयिक
सामयिक जैनचर्या का मूलाधार है। जैनचर्या को दो भागों में विभक्त किया है। एक श्रावक की चर्या और दूसरी है। श्रमण या साधु की। दोनों ही चर्या में सामयिक का स्थान सर्वोपरि है। सामयिक में समभाव में बने रहने का अभ्यास किया जाता है। समभाव का अभ्यास श्रावक वर्ग में दो घड़ी पर्यन्त बताया गया है,परंतु साधु को जीवन पर्यंत सामयिक में रहना होता है। इसका मूलकारण है कि श्रावक की मुलवृतिया अधिकांशतः राग द्वेष से संपृक्त रहती है। श्रावक का जीवन बहिर्मुखी होता है। भौतिक साधन प्रसाधनों अर्थात सांसारिक उपलब्धियों में ही संघर्षरत है,जबकि साधु का समग्र जीवन का अंत चेतना को जगाने में ही बीतता है। आध्यात्मिक चेतना में साधु सदा प्रवृत्त रहता है और इसके लिए अपनी समस्त चित वृतियों को बहिर्मुख से अंतर मुख की और मोड़ना होता है। राग और द्वेष से वह पूर्णतः विरक्त रहने का अभ्यास करता हुआ सदा समभाव में रमण करता है।
समभाव का अर्थ है मन,,वचन,काय को समस्त बाह्य प्रवृतियों से हटाकर निवृति की और लगाना, राग द्वेष का उपशमन करना,सुख दुख ने या अनुकूलता प्रतिकूलता में,संयोग वियोग में,आपदा संपदा में,प्रसन्ता उद्दिग्नता में निश्चल रहना ,अर्थात प्रसन्न विषण्ण विषम भावों को अलग करते हुए स्वरूप में स्थिर रहने का भाव समभाव है।
सामयिक की अनेक व्यूउतपतिया जैन शास्त्रों में वर्णित है। उन सब का निचोड़ है,वह है सम की प्राप्ति या समत्व का जागरण । समत्व में जितनी भी अशुद्ध प्रवृतियां है।वे सब पलायन कर जाती है और साधक में आत्म स्वभाव मुखर हो उठता है। जो जितना आत्म स्वभाव में रमण करेगा वह उतना ही विषय कषाय तथा राग द्वेष से विरत रहेगा।
प्रसिद्ध वैज्ञानिक न्यूटन का एक प्रसंग है।न्यूटन ने एक कुत्ता पाल रखा था।नाम था उसका डायमण्ड । डायमंड सदा न्यूटन के आगे पीछे घूमता रहता । न्यूटन वर्षो से एक खोज में लगे हुए थे। अपने खोज के निष्कर्ष को एक डायरी में लिख रहे थे। एक रात्रि वे लैम्प की रोशनी में डायरी लिख रहे थे। डायरी लिखते लिखते वे कुछ देर के लिए सोचने लगे। तभी उनके कमरे में हवा का एक झोंका आया। न्यूटन उठे और कमरे के दरवाजे को बंद करने चले गए। इसी बीच डायमंड उनकी मेज पर चढ़ गए। उनके चढ़ने से उनकी मेज हिली और लैम्प पर गिर गई। परिणाम यह हुआ कि जब तक न्यूटन लौटते तब तक उनकी डायरी धुंआ धुंआ कर जल उठो। वर्षो की मेहनत एक पल में राख हो गई। आप कल्पना कर सकते है न्यूटन के क्रोध की।वर्षो मेहनत का नष्ट होना एक अर्थ रखता है। यदि वर्षो का कमाया हुआ धन बरबाद हो जाये तो पुनः कमाया जा सकता है। न भी कमाया जाये तो भी विशेष हानि नही,पर एक वैज्ञानिक की वर्षो की साधना से प्राप्त खोज का जलना तो असाधारण हानि है। पर आप आश्चर्यजनक करेंगे कि न्यूटन जरा भी क्रोधित नही नही हुए और न ही विचलित हुए अपितु वे बड़े संयत और शांत स्वर से उस कूते पर हाथ फेरते हुए कहने लगे। डायमंड!तुझे भला क्या मालूम था कि डायरी में मेरी वर्षो की मेहनत खोज थी।
सामयिक की विशुद्ध साधना से मतलब है।दोष रहित साधना। मनुष्य के तीन मजबूत माध्यम है।एक मन,दूसरा वचन और तीसरा काया। यानि मनुष्य मन,वचन व काया के द्वारा अपनी प्रवृतियो का क्रियान्वयन करता है ।जैनाचार्यो ने सामयिक के बत्तीस दोषों का परी गणन किया है। आत्म स्वरूप का साक्षात्कार या आत्मानुभूति ही सामायिक का मूल प्रयोजन है।
(कांतिलाल मांडोत)
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