धर्म- समाज

शांति, मरण, अनित्य संप्रेक्षा से अप्रमादी बने मानव : आचार्य महाश्रमण

शांतिदूत की मंगल सन्निधि में पहुंचे विश्व हिन्दू परिषद के संरक्षक  दिनेशचन्द्रजी

सूरत (गुजरात) :मंगलवार को महावीर समवसरण में समुपस्थित श्रद्धालु जनता को जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के  आचार्य महाश्रमणजी ने ‘आयारो’ आगम के माध्यम से पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि आयारो ग्यारह अंग आगमों में पहला आगम है। इसके एक सूत्र में बताया गया है कि अप्रमादी आदमी कैसे अध्यात्मलीन बने, इसके लिए तीन उपाय बताए गए हैं। शांति संप्रेक्षा, मरण संप्रेक्षा और अनित्य संप्रेक्षा। आदमी शांति का चिंतन करे।

आदमी मोक्ष के संदर्भ में अनुप्रेक्षा की जाए तो जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति मिल सकती है। शांति की संप्रेक्षा करने से अप्रमाद का विकास हो सकता है। दूसरी संप्रेक्षा बताई गई कि मरण संप्रेक्षा। मरण को संसार भी कहा जा सकता है, क्योंकि संसार में ही जन्म और मरण होता रहता है। जहां विभिन्न योनियों में जीव जाते हैं, कहीं दुःख की प्राप्ति होती है तो कहीं सुख भी प्राप्त हो सकता है। संसार की संप्रेक्षा करने से भी अप्रमाद की स्थिति प्राप्त हो सकती है।

तीसरी बात बताई गई कि आदमी को अनित्यता की संप्रेक्षा करने का प्रयास करना चाहिए। शरीर की अनित्यता पर चिंतन किया जाए तो आदमी के भीतर का मोह भाव कम हो सकता है। प्रेक्षाध्यान पद्धति में शरीर प्रेक्षा का प्रयोग भी होता है, अनित्य अनुप्रेक्षा का प्रयोग भी होता है। अनंतकाल से मानव के भीतर मोह का प्रभाव है। इस मोह के कारण मानव विभिन्न संसारी संयोग से आबद्ध होता है। जिसका संयोग होता है, उसका वियोग भी होता है।

मानव यह विचार करे कि मैं इस दुनिया में स्थाई नहीं हूं, आया तो कभी विदाई भी सुनिश्चित है। आत्मा अमर है, किन्तु जो शरीर प्राप्त है, वह नश्वर है तो आदमी को अपनी आत्मा के कल्याण का प्रयास करना चाहिए। जो आया है, उसे एक दिन जाना ही होता है, यह शाश्वत सत्य है। जिस प्रकार आदमी पुराने कपड़ों को छोड़कर नए कपड़े पहन लेता है, उसी प्रकार आत्मा मोक्ष की प्राप्ति तक अनेक शरीर को बदलती रहती है।

कभी कोई धनवान है तो कभी वह गरीब भी हो सकता है और कभी गरीब भी धनाढ्य भी बन सकता है। यहां सबकुछ अनित्य है, इसलिए आदमी तीन प्रकार की संप्रेक्षाओं के द्वारा अप्रमाद का विकास करने का प्रयास करना चाहिए। अप्रमादी होकर मानव अपनी आत्मा के कल्याण का प्रयास करना चाहिए। इसके माध्यम से आचार्यश्री ने लोगों को बारह व्रतों को यथासंभव जीवन में उतारने की भी प्रेरणा प्रदान की।

आचार्य ने आगे कहा कि आज  दिनेशजी का आगमन हुआ। पहले भी मिलना हुआ और आज सूरत में मिलना हो गया। जीवन में खूब विकास हो। जीवन में जितना त्याग और संयम हो। भारत को भौतिक, आर्थिक विकास के साथ नैतिकता, आध्यात्मिकता व ज्ञान का विकास भी हो।

अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद के स्थापना दिवस के संदर्भ में आचार्यश्री ने प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि आज अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद का स्थापना दिवस भी है। साठ वर्ष की सम्पन्नता हो रही है। अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद व उसकी सभी शाखाएं खूब धार्मिक-आध्यात्मिक विकास करती रहें। बारह व्रत आदि आध्यात्मिक गतिविधियों में खूब विकास होता रहे।

आज के कार्यक्रम में विश्व हिन्दू परिषद के संरक्षक व परामर्शक  दिनेशचन्द्रजी भी पहुंचे पूज्य सन्निधि में उपस्थित थे। उनका संक्षिप्त परिचय श्री राजेश सुराणा ने प्रस्तुत किया। तदुपरान्त  दिनेशचन्द्र ने कहा कि मैं परम पूजनीय संत आचार्य महाश्रमण को साष्टांग प्रणाम करता हूं। मैं तो ऐसे आपके प्रवचन को सुनने के लिए ही उपस्थित हुआ हूं। मेरा सौभाग्य है कि मुझे आचार्य  के दर्शन व उनके साथ परामर्श आदि करने का सुअवसर भी मिला है। आज आपने जो विशेष प्रेरणा दी है, उसे सभी को जीवन में उतारने का प्रयास करना चाहिए। मैं ऐसे महान आचार्य के चरणों में प्रणाम करता हूं।

आचार्य ने चतुर्दशी तिथि के संदर्भ में हजारी के क्रम को संपादित किया। तदुपरान्त उपस्थित साधु-साध्वियों ने अपने स्थान पर खड़े होकर लेखपत्र का उच्चारण किया। तत्पश्चात आचार्य ने 16 नवम्बर को चतुर्मास स्थल से प्रस्थान कर आगे की यात्रा के दिनांक और क्षेत्रों की घोषणा की। आचार्यश्री ने बारह व्रती धारकों को आचार्य ने उनकी धारणा के अनुसार त्याग कराया।

द्विदिवसीय बारह व्रत दीक्षा सम्मेलन के संदर्भ में अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद के आध्यात्मिक पर्यवेक्षक मुनिश्री योगेशकुमारजी ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। बारह व्रत के प्रभारी  रोहित दुगड़ व अभातेयुप के अध्यक्ष  रमेश डागा ने अपनी विचाराभिव्यक्ति दी। इस संदर्भ में आचार्य ने पावन आशीर्वाद प्रदान किया। तदुपरान्त मेवाड़ से विशाल संख्या में उपस्थित संघ को आचार्य ने सेवा का अवसर प्रदान किया तथा उन्हें पावन आशीर्वाद भी प्रदान किया।

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