
भारतेंदु हरिश्चंद्र की जयंती पर संजय सिंह चंदन पहुंचे भारतेंदु भवन
वाराणसी। शहर के निकट चौखंभा थाना चौक के नजदीक ” भारतेंदु भवन ” ने हिन्दी साहित्य के महाकवि ” भारतेंदु हरिश्चंद्र ” का बस इतिहास भर समेटा है, न कहीं वाराणसी में कोई ” प्रतिमा ” लगी है और न कोई सड़क या मार्ग उनके नाम पर सरकार ने समर्पित किया है।
साहित्य जागरूकता मंच के संस्थापक संजय सिंह चंदन ने बताया 9 सितंबर ( वर्ष 1850 ) को वाराणसी के चौखंभा में जन्मे महाकवि “भारतेंदु हरिश्चंद्र ” की जयंती मेरे लिए यह बिल्कुल साहित्य के गंगोत्री से जल की कुछ बुँदे अर्जित करने जैसी साबित हुई। बहुत ही सुखद अनुभूति, इस भूमि पर पहुँच कर हम और हमारी राष्ट्रीय संस्था धन्य हो गई।
जागरुकता मंच के राष्ट्रीय संस्थापक एवं राष्ट्रीय सेवा भावी संस्था के.सी.एन क्लब- झारखंड के प्रदेश अध्यक्ष संजय ने आज इस पवित्र साहित्य गंगा मे डुबकी लगाया और प्रातः आधुनिक हिन्दी साहित्य के पितामह और आधुनिक हिन्दी के प्रथम रचनाकार हिन्दी को राष्ट्र भाषा के रूप में प्रतिष्ठित कराने वाले महाकवि भारतेंदु हरिश्चंद्र को “गरीबी, अशिक्षा, पराधीनता, ब्रिटिश सरकार के अमानवीय शोषण का अपनी सभी रचनाओं में क्रांतिकारी चित्रण कर आज़ादी का बिगुल फूंकने वाला सच्चा देश भक्त बताया ऐसे युवा महाकवि की स्मृति को जीवित रखने के लिए वाराणसी में कही कोई ” प्रतिमा ” नहीं है आश्चर्य पूरा वाराणसी घूमने के बाद ” चौका घाट ” के मुख्य मार्ग के डीवाइडर पर एक पोल पर बहुत छोटी हाफ कटआउट साइज 14″ X14″ का श्रद्धेय भारतेंदु जी की तस्वीर हाथ से बना दिखा।
संजय सिंह चंदन ने ” महाकवि भारतेंदु हरिश्चंद्र ” को उनके जन्म स्थान ” भारतेंदु भवन ” जाकर जन्म दिवस 9 सितंबर को उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण करते हुए श्रद्धा सुमन अर्पित कर उन्हें शत् शत् नमन किया। अब तक की सभी सरकारों द्वारा ऐसे महान विभूति को हाशिये पर रख ” उपेक्षित ” किये जाने के लिए घोर निंदा करते हुए कहा यह पूरे इतिहास को दबाने और कलमकार के आज़ादी के योगदान को समग्र रूप से दफन करने की साजिश है जो निदनीय है।
भारतेंदु भवन में ” श्रद्धेय भारतेंदु हरिश्चंद्र ” जी के पांचवी पीढी के संतान दीपेश चंद्र चौधरी से संजय सिंह “चंदन ” की साहित्य शिष्टाचार मुलाकात हुई और कई विषयों पर उस काल के दुर्लभ संग्रहों के स्मृति से रूबरू होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।उनकी सुरक्षित कई पांडु लिपि आज भी प्रासंगिक है।
सिंह ने सरकार से मांग करते हुए कहा चौखंभा ( वाराणसी) में “विशाल भारतेंदु संग्रहालय और पुस्तकालय ” बनाया जाए और सारे स्मृति चिन्ह, उस काल के पांडु लिपि जनता जनार्दन के अवलोकनार्थ रखा जाए ताकि नई पीढ़ी आज़ादी की संकल्पना और भारतेंदु जी के विचार, चिंतन, दर्शन और हिन्दी की आधुनिक इतिहास का ज्ञान अर्जित कर सकें।