
धनतेरस पर विशेष: धन्वंतरी का पादुर्भाव संसार मे शुभ कर्म,मंगल कामना और दूसरों का उपकार करना ही अमृत बांटना है
भारतीय पुराणों में धनतेरस के पीछे आयुर्वेद के प्राण प्रतिष्ठापक धन्वंतरी के पादुर्भाव की कथा जुड़ी हुई है। देव दानवों ने मिलकर जब समुद्र मंथन किया तो उसमें चौदह रत्न प्राप्त हुए। उसी समुद्र मंथन में धन्वंतरी हाथ मे कलश लिए प्रकट हुए। धन्वंतरी चिकित्सा विज्ञान के आदि पुरुष माने जाते है। धन्वंतरी के हाथ मे अमृत कलश यह सूचित करता है कि संसार मे रोग के विषाणुओ का नाश करने के लिए उसने औषदि रूप अमृत प्रदान किया। समस्त संसार को आधी व्याधि, रोग आदि से मुक्त करके मानव को सुखी और स्वस्थ बनाना ही धन्वंतरी का लक्ष्य है।
रणभूमि में लक्ष्मण शक्ति प्रहार से मूर्छित हो जाते है तब हनुमानजी सुषेण वैध को लंका से उठाकर लाते है और उससे प्रार्थना करते है। वैधराज ,वीर लक्ष्मण की पीड़ा दूर करो। वैध कहता है कि तुमने मुझ पर विश्वास कैसे किया। मैं शत्रु पक्ष का वैध हूँ। तब रामजी कहते है ,वैध का कोई शत्रु मित्र नही होता। वैध का एक ही धर्म है, रोगी की पीड़ा दूर करना।
आज धनतेरस धन्वंतरी का जन्म दिन हमे इस आदर्श की प्रेरणा देता है कि संसार मे आये जो तो प्रेम का, सेवा का अमृत बांटो, दुसरो के दुःख दर्द पीड़ा दूर करो। दुसरो की सेवा करना ही तुम्हारा धर्म है। धन्वंतरी के हाथ मे रहा हुआ अमृत कलश इस बात का संसूचक है कि संसार के रोगों को समाप्त करने के लिए धन्वंतरी ने इस संसार को अवैध रूपी अमृत प्रदान किया। धन्वंतरी का लक्ष्य ही यह रहा है कि मानव जगत के आरोग्य के लिए मैं सतत प्रयत्नशील रहूं। जब जीवो की सुख शांति चाहना ही आपकी अंतर इच्छा हो।इन आदर्शो पर चिंतन करो और अपने जीवन को इन आदर्शो पर चलाने का संकल्प करो।यह आज धन तेरस की प्रेरणा है।
धनतेरस का अर्थ धन की वर्षा से नही है।लोग आज के दिन चांदी व तांबे के बर्तन खरीदकर धन तेरस मनाते है, किंतु असली धन तेरस है दुखियो के दुःख दर्द दूर करने के संकल्प लेना है। दुसरों की सेवा करके तुम्हारा जीवन रस कृतार्थ हो जाये तो समझो आज धन तेरस हो गई।धन तेरस के दिन किसी का दुखदर्द मिटा दिया। अस्पताल में जाकर रोगियों की सार संभाल ले ली। उन्हें सांत्वना दी और उनको कुछ सुख शांति पहुंचाई तो समझ लो हमारी धनतेरस वास्तव में धन तेरस हो गई। अन्यथा धन की पूजा करके चाहे तेरस मनाओ या चौदस ,इससे कोई फर्क नही पड़ता।
दीपावली के पंचपर्वो की आदि में पहला धन तेरस का पर्व हमको जीवन में परहीत एवम परोपकार की प्रेरणा देता है। नई स्वार्थ और निरपेक्ष भाव से जितना बन सके दूसरों की सेवा सहायता का संकल्प करना और उसके लिए अपनी धन संपत्ति का सदुपयोग करना, यह लक्ष्मी के आमंत्रण की पूर्व भूमिका है, ब्रेक ग्राउंड है। जो परोपकार करेगा लक्ष्मी स्वयं उसके द्वार पर आकर दस्तक देगी। धन तेरस के अवसर पर कुछ विशिष्ट संकल्पों को अपने मन में जागृत करने की जरूरत है।
हमे धन का उपयोग अच्छी प्रवृत्तियों में करना चाहिए। जो धन प्रवृत्तियों में लगता है,दरअसल, वही हमारा धन है। धन को तिजोरियों में बंद करने की भूल नही करनी चाहिए। हमारे पास कुछ है तो उसे सर्वजन हिताय देना चाहिए। जिसके पास कुछ है ,उसे ही तो कुछ करने के लिए कहा जाता है। मुर्दे के पास देने के लिए होता ही क्या है?
( कांतिलाल मांडोत )