जीवन में शक्ति और शांति दोनों आवश्यक : आचार्य महाश्रमण
नवरात्र के अवसर पर आध्यात्मिक अनुष्ठान से जुड़ी श्रद्धालु जनता
सूरत (गुजरात) : जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के आचार्य महाश्रमणजी ने गुरुवार को नवरात्र के प्रथम दिन से आध्यात्मिक अनुष्ठान का प्रारम्भ करते हुए आर्षवाणियों का उच्चारण कर उपस्थित श्रद्धालु जनता को नौ दिवसीय आध्यात्मिक अनुष्ठान से जुड़ने की प्रेरणा प्रदान की। लगभग आधे घंटे तक उपस्थित जनता आर्षवाणियों से पूरा वातावरण गुंजायमान होता रहा।
तदुपरान्त शांतिदूत आचार्य महाश्रमणजी ने उपस्थित श्रद्धालु जनता को आयारो आगम के माध्यम से पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि मानव जीवन में अनेक ऐसे अवसर आते हैं, जिसमें आदमी शोकाकुल हो जाता है, दुःखी बन जाता है। प्रिय का वियोग हो जाता है तो आदमी के मन में कष्ट हो सकता है। स्वयं का अपमान हो जाए, बदनामी हो जाए, शरीर में कोई कठिनाई हो जाए तो आदमी कष्ट से प्रभावित हो सकता है। जीवन में कभी खूब आमोद-प्रमोद वाले अवसर भी आते हैं। जन्मदिवस, शादी-ब्याह आदि-आदि अनेक अवसर आते हैं, जब आदमी खूब प्रसन्न होता है।
आगम में यह प्रेरणा प्रदान की गई है कि अनुकूलता में ज्यादा खुशियां नहीं मनानी चाहिए और न ही प्रतिकूलता में ज्यादा दुःखी भी नहीं बनना चाहिए। आज से नवरात्र का आध्यात्मिक अनुष्ठान शुरु हुआ है। इस आश्विन महीने के शुक्लपक्ष में यह नवरात्र का समय आता है। लोग अपने-अपने ढंग आराधना करते हैं। जैन शासन के श्वेताम्बर तेरापंथी परंपरा में आचार्यश्री तुलसी की विद्यमानता में सबसे पहले दिल्ली में आध्यात्मिक अनुष्ठान का क्रम प्रारम्भ हुआ था, जो आज भी चल रहा है।
आदमी के जीवन में शक्ति की महत्ता होती है। शक्तिहीन आदमी मानों दयनीय के समान होता हैं। जिसमें शक्ति होती है, वह आदमी अपनी शक्ति का प्रयोग किसी को दुःख देने में नहीं, किसी का भला करने में, सेवा करने में सदुपयोग करे। मानव जीवन में शक्ति का दुरुपयोग नहीं करना चाहिए। जहां तक संभव हो सके, अपनी शक्ति का सदुपयोग करने का प्रयास करना चाहिए। आत्मा में शक्ति अनंत होती है। शरीर की शक्ति हो, मन की शक्ति हो अथवा चाहे वचन की शक्ति हो, चाहे जनबल हो अथवा धनबल, किसी प्रकार के बल अथवा शक्ति का दुरुपयोग नहीं करना चाहिंए।
आदमी को दूसरों की सेवा में अपनी शक्ति का सदुपयोग करने का प्रयास करना चाहिए। जीवन में उपालंभ मिल जाए या प्रशंसा हो जाए, उसमें आदमी को समताभाव में रहने का प्रयास करना चाहिए। शक्ति होने पर भी शांति में रहने का प्रयास करना चाहिए। अनावश्यक किसी को कष्ट देना, लड़ाई-झगड़ा आदि-आदि में शक्ति का प्रयोग न हो, बल्कि किसीकी पवित्र सेवा, निर्भिकता रहे। आदमी का चिंतन प्रशस्त होना चाहिए।
नवरात्र के समय में आदमी को शक्ति की आराधना करने का प्रयास किया जाना चाहिए। मोह की चेतना क्षीण हो। शक्ति और शांति दोनों जीवन में हो तो जीवन अच्छा हो सकता है।