सूरत

सूरत : पोक्सो के मामले में आरोपी हुआ बरी 

गोड़ादरा पुलिस स्टेशन में २ साल पहले दर्ज पोक्सो के मामले में आरोपी को निर्दोष करार दिया गया। बता दे की   मार्च 2021 को 14 वर्षीय नाबालिक के साथ हुए मामले में आरोपी के खिलाफ पोक्सो का मामला दर्ज हुआ था। इस मामले में पुलिस ने 20/11/2021 को विशेष न्यायधीश (पोक्सो कोर्ट) कोर्ट में चार्ज शिट फ़ाइल की थी जिसके बाद केस कोर्ट में चल रहा था ।

ट्रायल के दोरान कोर्टने गई शुक्रवार को आरोपी को निर्दोष करार दिया है । शिकायतकर्ता पक्ष द्वारा दलील की गई थी की पीडिता जो 14 वर्ष की है उसने बड़ी ही स्पष्टता पूर्वक कोर्ट में तथ्य रखे है जिसमे जब वह साडी ले कर जा रहीं थी तब आरोपी ने उसे चिट्ठी दी जिसमे उसका मोबाईल नंबर लिखा था और उसे मेसेज करने को कहा उसके पश्चात् मेसेज न करने पर आरोपी ने दुसरे दिन उस धमकी दी “अगर तूने मसेज नहीं किया तो तेरे पिता को मैं मार डालूँगा”। उसके पश्चात पीडिता ने मेसेज किया और आरोपी ने मेसेज कर बुलाया और जबरजस्ती गेट खुलवाकर दुष्कर्म किया उससे सबंधित पीडिता ने प्रमाण कोर्ट में प्रस्तुत किए है

इसके बाद बचाव पक्ष के अधिवक्ता एडवोकेट प्रदीप सिंह राठोर (एस.पी. राठोर) द्वारा दलील की गई की शिकयतकर्ता द्वारा शिकायत विलम्ब से दी गई जिसका कारण भी शिकायत में बताया नहीं गया है। जिस मोबाईल नंबर का जिक्र पीडिता कर रही है। उस मोबाईल को और उसमें संग्रहित मेसेज इन्वेस्टिगेशन ऑफिसर द्वारा कोर्ट में प्रस्तुत किये गए नहीं है और पीडिता जहा रहती है और वाकया जहा बना है। वह स्थल भीड़ भाड वाला है।

अगर आरोपी ने किसी भी प्रकार की धमकी पीडिता को दी होती तो पीडिता स्थल पर कोई न कोई प्रतिक्रिया करती या फिर घर जा कर उस समय बताती लेकिन एसा कुछ भी नहीं हुआ। और रात को दो बजे आरोपी ने मेसेज कर निचे मिलने बुलाया यह बेहद हास्यस्पद है भला कोई किसी मेसेज की भरी नींद में वो भी रात के दो बजे कैसे उठ सकता सकता है। या हकीकत शंकास्पद है।

साथ पीडिता के माता ने यह कोर्ट में बताया की ठीक उसके घर के सामने एक सी.सी.टीवी कमरा लगा हुआ है। जिस इन्स्वेस्टीगेस्न ऑफिसर ने प्रमाण के रूप में कोर्ट में प्रस्तुत नहीं किया है जो अहम प्रमाण हो सकता है जो शिकायतकर्ता द्वारा की गई। शिकायत पर शंका उत्पन करता है तथा पीडिता की उम्र को ले कर भी कोर्ट में ठोस प्रमाण प्रस्तुत नहीं किये गए है ।    

इसकी बाद पोक्सो स्पेशल कोर्ट ने जजमेंट सुनते हुए कहा की भारतीय साक्ष्य की धारा 3 में साक्ष्य शब्द की परिभाषा पर विचार किया जाए तो एक तथ्य को जब साबित माना जाता है। जब कोई उचित व्यक्ति यथोचित रूप से कोर्ट को लिखित और मोखिक साक्ष्य द्वारा विस्वास दिलाये तब उस तथ्य को साबित माना जाता है। विशेष कोट का मानना है की केवल प्रायिकता की प्रधानता के आधार पर आरोपी को दोषी नहीं माना जा सकता ।

अर्थात अभियुक्त के विरुद्ध संदेह पर आधारित आक्षेप को साबित करने का भार अभियोजन पक्ष पर है । और कोई तथ्य सिद्ध हुआ है ? यह, मामले के सभी तथ्यों और उससे सबंधित साक्ष्यो पर निर्भर कर्ता है । इसके लिए कोई स्ट्रेट जेकेट फार्मूला नहीं हो सकता।

अतः अभियोजन पक्ष अभियुक्त के खिलाफ आरोपों के तथ्यों को साबित नहीं कर पाया है। इसलिए आरोपी को मात्र आक्षेप के आधार पर आरोपी को दोषी नहीं माना जा सकता इसलिए आरोपी को संदेह का लाभ दे कर आरोपी को दोषमुक्त किया जाता है ।

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