प्रादेशिक

जातिवादी पिंजरे में बंद होती उत्तर भारतीयों की ताकत, चिंताजनक

मुंबई में 40 लाख से अधिक उत्तर भारतीय निवास करते हैं

– शिवपूजन पांडे, वरिष्ठ पत्रकार

एक अनुमान के अनुसार मुंबई में 40 लाख से अधिक उत्तर भारतीय निवास करते हैं। यह सच है कि इतनी बड़ी संख्या को किसी एक संगठन में पिरोया नहीं जा सकता। इस दिशा में अनेक संगठन भी बने। परंतु सभी संगठनों का मूल उद्देश्य कहीं न कही उत्तर भारतीयों के सम्मान और गौरव के साथ जुड़ा रहा। अपनी व्यक्तिगत ताकत को दिखाने की दिशा में जातीय संगठनों का भी निर्माण किया जाता रहा। इसके बावजूद जहां उत्तर भारतीय समाज की बात आती रही, लोग एक प्लेटफार्म पर खड़े रहे। सभी एक सुर में उत्तर भारतीय नेताओं को स्वीकार भी करते रहे। यही कारण था कि विभिन्न राजनीतिक पार्टियां भी उत्तर भारतीय नेताओं को पद, पॉवर और प्रतिष्ठा देती रहीं। रामनाथ पांडे से लेकर रमेश दुबे, चंद्रकांत त्रिपाठी और कृपाशंकर सिंह को हम इसी स्वरूप में देख चुके हैं।

आज इन सर्वप्रिय नेताओं में सिर्फ कृपाशंकर सिंह ही पूरी तरह से सक्रिय नजर आ रहे हैं । संपूर्ण उत्तर भारतीय समाज में सबसे लोकप्रिय होने के बावजूद बदलते जातीय राजनीतिक समीकरण ने कहीं न कहीं उन्हें भी कमजोर कर दिया है। उन्हें भी खुले रूप से जातिगत विचारधारा पर प्रहार करना पड़ रहा है। ऐसे में सवाल उठता है कि कमजोर होते उत्तर भारतीय समाज का जिम्मेदार कौन?

पिछले कुछ समय से मुंबई में छूटभैये नेताओं की आई बाढ़ ने उत्तर भारतीय समाज की ताकत और संगठन को कमजोर कर दिया है। हम किसी से कम नहीं, की तर्ज पर हर कोई अपने आप को नेता मान रहा है। अगर पूरे समाज पर उसकी पकड़ नहीं है तो वह जाति का ही गंदा खेल खेल रहा है। अब हजारों लोग उत्तर भारतीय वोटो के ठेकेदार हो गए हैं।

राजनीतिक पार्टियां भी पूरी तरह से भ्रमित है। उत्तर भारत में फैली जातीयता की आग, कहीं न कहीं इस महानगर में भी पहुंच गई है। जबकि सबको मालूम है कि यहां हम सिर्फ और सिर्फ उत्तर भारतीय,भैया के रूप में पहचाने जाते हैं। मुंबई के सबसे पुराने और प्रभावशाली उत्तर भारतीय संगठन उत्तर भारतीय संघ के अध्यक्ष संतोष आरएन सिंह के अनुसार–उत्तर भारतीय संघ ने कभी भी जाति या धर्म का सहारा नहीं लिया। सबके लिए खुला और समान रूप से अवसर रहा है ।

यह अलग बात है कि संघ से जुड़ने वालों में सवर्ण लोगों की संख्या ज्यादा रही । परंतु संघ ने हमेशा संपूर्ण उत्तर भारतीय समाज को ध्यान में रखते हुए पारदर्शिता पूर्ण काम किया है। संपूर्ण उत्तर भारतीय समाज को सम्मान के साथ-साथ उन्हें आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में भी अनेक काम किए गए हैं, जिसका ज्यादातर लाभ गैर सवर्ण जातियों को ही मिला है। उन्होंने कहा कि संघ में कहीं भी जातिगत आधार पर भेदभाव नहीं है।

अभी भी वक्त है कि हम उत्तर भारतीय संघ जैसे मजबूत संगठन से जुड़े। कृपाशंकर सिंह जैसे नेताओं को अपने समाज का अगुआ माने, वरना वह दिन दूर नहीं है, जब हम अधिसंख्य होने के बावजूद तिनके की तरह बिखर जाएंगे। तब हमारी आवाज सुनने वाला भी कोई नहीं होगा।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button