राम रावण का युद्ध अधर्म पर धर्म और दुराचार पर सदाचार की विजय का पर्व है विजयादशमी
भारतीय संस्कृति एक प्रकार से पर्व व त्यौहारो की संस्कृति मानी जाती है। प्राचीन काल मे चारो वर्णो के आधार पर ही त्यौहारो व उत्सवों का वर्गीकरण किया गया है। इन उत्सवों पर सर्वत्र उल्लास,हलचल और धूमधाम रहती है।त्यौहारो पूरे समाज के उल्लास का प्रतीक होता है। आज विजया दशमी का पर्व है।
अश्विनी शुक्ल दशमी का दिन भारतीय समाज मे विजय दशमी या विजय पर्व अथवा दशहरा,दूर्गा पूजा के आदि नामो से जानते है। वातावरण की नमी के कारण स्वास्थ्य में जो शिथिलता आ रही थी,वह स्वतः ही दूर हो जाती है। रोगी निरोगता और स्वस्थता का अनुभव करने लग जाता है।
आज ही के दिन महाराज राम ने रावण का वध करके लंका विजय की थी। वाल्मीकि रामायण एवम तुलसीदास के रामचरित मानस के अनुसार सिद्ध होती है। अपने हिन्दू धर्म के भविष्योत्तर पुराण में लिखा है कि प्राचीनकाल में क्षत्रिय राजा युद्ध के लिए प्रस्थान करने से पूर्व विजय दशमी के दिन शत्रु का एक पुतला बनाकर बाण से उसका ह्दय बींध देते थे। इसलिए यह मान लिया जाता कि हमने अपने शत्रु का नाश कर दिया।
यह एक प्रकार से आत्म विश्वास जगाने का साधन अथवा विजय सुकून के रूप में यह प्रथा प्रचलित थी कि शत्रु का पुतला बनाकर उसका सिर छेद देना,ह्दय बींध देना। आज भी अपना विरोध प्रकट करके के लिए नेताओ का पुतला जलाना ही संभव है। धीरे धीरे कालांतर के रावण वध का रूप ले चुकी हो या विशालकाय शत्रु के पुतले को रावण मानकर इसका संबंध रामलीला से भी जोड़ दिया गया।
कुछ भी हो,विजय दशमी आज ही के दिन रावण या शत्रु के पुटले का वध एक प्रकार से अपनी विजय का प्रतीक अथवा विजय का विश्वास पैदा करने का साधन था और अन्याय, अत्याचार असत्य पर न्याय ,सदाचार व सत्य की विजय का प्रतीक मानकर इस पर्व का रूप दे दिया है।अश्विनी मास की दशमी के ही दिन महाभारत का युद्ध हुआ था।यह युद्ध भी दुर्योधन के अन्याय,अनीति व दुराचार के विरुद्ध न्याय एवम सदाचार के अभियान के रूप में ही माना जाता है।
इस प्रकार यदि रामायण एवम महाभारत काल के दोनों संदर्भो पर विचार करें तो विजय दशमी का पर्व न्याय नीति एवम सदाचार सत्य की विजय का प्रतीक पर्व माना जाता है। निवृति प्रधान संस्कृति में प्रवृति प्रधान पर्वो का महत्व होता है। इस कारण विनय दशमी के पर्व का इतिहास और लोक कथाएं किवंदितिया पुराणों में मिलती है। असुरो के साथ जब भी युद्ध होता है तो देवता हार जाते,असुर जीत जाते।इसका कारण देवगण एकजुट नही हो पाते थे,असुर एक साथ मिल जाते थे।
प्रजापति ने देवताओं को थोड़ी थोड़ी शक्ति ली। सब दिव्य शक्तियों को केंद्रित करके फिर से अभिमंत्रित किया तो वह दुर्गा के रूप में प्रकट हुई।एक केंद्रित और संगठित का रूप है दुर्गा। दुर्गा पराक्रम एवम साहस के प्रतीक सिंह पर आरूढ़ होती है।दुर्गा की अष्ट भुजाएं आत्मा के आठ दिव्य गुणों की प्रतीक है।
विजय पर्व को हम आत्म विजय के पर्व के रूप में ग्रहण करके इस पर चिंतन करे। दशहरा अर्थात दश को हरने वाला।दश का नाश करने वाला। सामान्य भाषा मे दशकंधर का नाम रावण का है। और रावण का नाश करने की कथा के साथ इसका संबंध जुड़ता है। परंतु राम रावण युद्ध को आध्यात्मिक अर्थ में लेंगे तो राम न्याय नीति और सदाचार का प्रतीक होगा। रावण अन्याय अनीति दुराचार,अहंकार का प्रतीक है।बल बुद्धि वैभव में रावण राम से कम नही था।
रावण का वैभव विशाल था।सोने के ईंटो के जिसके भवन बने हुए थे। समुद्र की खाई जिसके नगर की रक्षा करती थी,जिसके दश सिर याने बुद्धिमानो की बुद्धि उसके पास थी,बिस भुजाएं अर्थात दश बलवानो महायोद्धाओं का बल उसकी भुजाओ में था।वरुण देव जैसा विज्ञान का निष्णात उसके यहाँ पानी भरता था,पवन देव जैसा शक्तिशाली उसको हवा करता था। यह सब रावण के वैभव के प्रतीक है।और ऐसा बलवान रावण अनीति और अहंकार के कारण भीतर से एकदम खोखला हो गया।उसकी राक्षसों की महाबली सेना ,साधरण रीछ और बन्दरो की सेना से भी हार गई।रावण जैसा विद्वान बुद्धिमान और बलवान राम के एक बाण से धराशायी हो गया।यह सब बड़ी गुह्य पहलिया है।
मतलब यह है कि व्यक्ति चाहे जितना बड़ा सत्ताधीश और न्यायधीश क्यो न हो,चरित्रहीन और अनीतिमान होने से सामान्य व्यक्ति के सामने भी हार खा जाता है।राम एक चरित्रवान,सदाचारी,मर्यादा पालक शक्ति का प्रतीक है।संसार मे सदा ही यह खेल चलता रहा है। जब जब भी अनीति,अन्याय शक्ति के रूप में उभरकर समाज को उत्पीड़ित और प्रताड़ित करते है तो न्याय और सदाचार की शक्ति उसका नाश करके अन्याय पर न्याय की विजय ध्वजा फहराती है।राम रावण का युद्ध अधर्म और धर्म का युद्ध बन जाता है,दुराचार और सदाचार का युद्ध बन जाता है।
( कांतिलाल मांडोत )