धर्म- समाज

इच्छा और आवश्यकता के बीच अंतर को समझे : आचार्य महाश्रमण

अणुविभा की प्रतियोगिता में देशभर से पहुंचे विद्यार्थियों ने दी प्रस्तुति

सूरत। चातुर्मास काल में युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी का पावन सान्निध्य प्राप्त कर सूरतवासी एक ओर जहां धर्म गंगा का अपने शहर में लाभ उठा रहे है वहीं अब चातुर्मास संपन्नता के कुछ ही दिन शेष होने से मानों गुरूदेव के मंगल विहार की घड़ियां श्रद्धालु दिलों को भावुक कर रही हैं। नित्य धर्म श्रवण, आर्हत वांग्मय आधारित प्रवचन, रात्रि काल में रामायण व्याख्यान का क्रम, अनेकों शिविरों, कार्यक्रमों के साथ ज्यों क्यों एक एक दिन बीत रहा है।

सूरतवासी भी अपने आराध्य की उपासना के एक एक क्षण से मानों चूकना नहीं चाहते। सुबह चार बजे से लेकर रात्रि दस बजे तक हजारों श्रद्धालु भगवान महावीर यूनिवर्सिटी प्रांगण के संयम विहार में आचार्यश्री एवं साधु साध्वियों से तत्व–जिज्ञासा, धर्म श्रवण करने हेतु उपस्थित रहते है। आज गुरुदेव के सान्निध्य में अणुव्रत विश्व भारती के तत्वावधान में राष्ट्र स्तरीय प्रतियोगिता एवं सम्मान समारोह भी आयोजित हुआ। साध्वीवर्या संबुद्धयशा जी के जन्मदिवस के संदर्भ में आचार्य प्रवर ने उन्हें पावन शुभाशीष प्रदान किया।

मंगल प्रवचन में आयारों आगम की व्याख्या करते हुए आचार्य श्री ने कहा – व्यक्ति के भीतर अनेक प्रकार की वृतियां होती हैं। मनुष्य का चित्त कभी किसी व्यवसाय में, कभी किसी व्यवसाय में, कभी ठगने की भावना, अनेक प्रकार की भावनाएं मनुष्य के भीतर होती है। व्यक्ति इतना लोभी बन जाता है कि वह छलनी को भी भरने की कोशिश करने लग जाता है। व्यक्ति की इच्छाएं असीम हो जाती है। समस्त इच्छाओं की पूर्ति संभव नहीं होती। व्यक्ति यह समझे कि वांट एंड नीड दोनों में अंतर है।

इच्छा कितनी है और आवश्यकता कितनी है ? पेट को भरने भोजन, पानी आवश्यक होते है। रहने को मकान आवश्यक होते है। ये कुछ चीजें जीवन की आवश्यकता हो सकती है। वहीं वांट में व्यक्ति एक से एक बढ़कर चीजों की इच्छा करता है। सामान्य से भी काम चल सकता है किन्तु इच्छाओं के पीछे व्यक्ति और महंगी चीजों की कामना करता है। आवश्यकता की पूर्ति संभव है किन्तु इच्छाओं का अंत कहा। सोने–चांदी के पर्वत भी मिल जाते तो भी लोभी व्यक्ति का मन संतुष्ट नहीं होता। इसलिए अनावश्यक इच्छाएं व्यक्ति नहीं करे और इच्छाओं का परिसीमन करे।

गुरुदेव ने एक कथा के माध्यम से प्रेरणा देते हुए कहा कि व्यक्ति कार्य में ईमानदारी रखे। व्यक्ति अच्छा पुरुषार्थ करे तो इच्छित सफलता प्राप्त भी हो सकती है। परिश्रम सफलता को प्राप्त करने का सूत्र है। विद्यार्थी परीक्षा के समय परिश्रम करके अच्छे अंक लाते है वह तो अच्छी बात है किन्तु नकल आदि गलत तरीकों का प्रयोग करके अंक प्राप्त करना गलत बात है। सफलता के लिए हार्डवर्क करे। सिर्फ हाथ पर हाथ धरे बैठने से कुछ प्राप्त नहीं होता। जो परिश्रम शील होता है लक्ष्मी भी उसे ही प्राप्त होती हैं।

इस अवसर पर साध्वीवर्या संबुद्धयशा जी ने सारगर्भित उद्बोधन प्रदान किया। अणुव्रत विश्व भारती के अध्यक्ष श्री अविनाश नाहर ने अपने विचार रखे। देश के विभिन्न क्षेत्रों से समागत स्कूली विद्यार्थियों ने अणुव्रत गीत की आचार्य श्री के समक्ष प्रस्तुति दी।

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