धर्म- समाज

भक्ति के बिना ज्ञान, योग और कर्म भी अधूरा : स्वामी गोविंददेव गिरिजी

हमने खुद को देह विशिष्ट, जाति विशिष्ट मान लिया, उत्तम ज्ञानी इस संकीर्णता में फंसता नहीं है

सूरत। शहर के वेसू कैनाल रोड पर शिव महापुराण कथा के तीसरे दिन बुधवार को स्वामी गोविंददेव गिरिजी महाराज ने भगवान शिव जी की महिमा का व्याख्यान करते हुए बताया कि जो ज्ञानी हो गया, परमतत्व को जान लिया। वह अंतरंग में व्यापक होकर चलता है। हम लोग संकीर्ण होकर चलते है। हमने खुद को देह विशिष्ट, जाति विशिष्ट मान लिया। उत्तम ज्ञानी इस संकीर्णता में फंसता नहीं है।

भगवान महादेव और सती अद्भूत दाम्पत्य है। उनकी बातचीत भी पारलौकिक आत्म कल्याणात्मक अन्य विषयों को लेकर होती है। दाम्पत्य ऐसा होना चाहिए जो संसार तो करें लेकिन धर्म की मर्यादा में रहकर। संसार करते करते जो आपस में पारलौकिक चर्चा करते है उनका संसार भी पुण्यमय हो जाता है।

सती ने भक्ति के बारे में पूछने पर भगवान महादेव भक्ति का वर्णन करते हुए कहा कि मनुष्य अन्य कितने भी साधन कर ले। ज्ञान, कर्म, योग एक साधन है। भक्ति के बिना ज्ञान, योग, कर्म भी अधूरा है। भक्ति किसी के बिना भी अधूरी नहीं है। भक्ति स्वतंत्र और परिपूर्ण साधन है। इसलिए उत्तम साधक को भक्ति का त्याग नहीं करना चाहिए। भक्ति के नौ अंग है।

मेरे पास जो कुछ है सबकुछ भगवान का है। मेरे तो केवल भगवान है। ऐसा सोचनेवाला संसार के बंधन में नहीं फंसते हुए सीधे भगवान के पास पहुंच जाएगा। उत्तम और बुद्धिमान पुरूष वह है जो भक्ति को लेकर चलता है, इसमें लीन होना चाहता है। ज्ञान और वैराग्य दोनों भक्ति के पुत्र है। कथा दौरान सुभाष अग्रवाल, कृष्णकन्हैया मित्तल , मुरारी बृजवासी, विनोद अग्रवाल (लक्ष्मी हरि) , अवधेश टिकामी ने स्वामी गोविंददेव गिरिजी का आशीर्वाद प्राप्त किया।

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