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विश्व कपास दिवस: गुजरात पूरे देश में कपास उत्पादन में सबसे आगे

1886 में अंग्रेजों ने सूरत में कपास अनुसंधान परियोजना शुरू की

1886 में अंग्रेजों ने सूरत में कपास अनुसंधान परियोजना शुरू की

सूरत। सहारा रेगिस्तान क्षेत्र के अविकसित और विकासशील देशों को कपास उत्पादन के उन्मूलन में मदद करने के लिए कपास उत्पादन की मूल्य श्रृंखला से जुड़े चार अफ्रीकी देशों बेनिन, बुर्किनो फासो, चेड और माली को कपास के चार देशों के समूह के रूप में जाना जाता है। इस समूह ने विश्व व्यापार संगठन को हर साल 7 अक्टूबर के दिन विश्व कपास दिवस मनाने का प्रस्ताव रखा था। जिसे संयुक्त राष्ट्र संघ ने स्वीकार कर वर्ष 2020-21 में 7 अक्टूबर को विश्व कपास दिन के रूप में मनाने का निर्णय लिया। जिसका हेतु विश्व के लोगों में कपास से मिलने वाले कुदरती रेसा का महत्व और उससे उत्पन्न होनेवाले खाद्य तेल जैसे विविध वस्तुओं के लिए जागरूकता लाने और कपास खेती द्वारा अविकसित देशों में विकास और गरीबी हटाने में मददरूप अविकसित और विकासशील देशों को कपास उत्पादन को वेल्यू चेन में शामिल कर आंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में व्यापार को प्रोत्साहित करना है।

आज पूरे विश्व में कपास के साथ जुड़ी विविवध सरकारी संस्था, सहकारी संस्था, जीनिंग फैक्ट्री कार्यरत है। पूरे भारत में वर्ष 2022-23 में कपास उत्पादन के संदर्भ आंकड़ाकिया जानकारी पर नजर ड़ाले तो गुजरात में वर्ष 2022-23 में 91.83 लाख गांठ के उत्पादन के साथ प्रथम रहा। वहीं महाराष्ट़्र में 80.25 लाख गांठ, तेलंगाना में 53.25 लाख, राजस्थान में 27.12 लाख, कर्नाटक में 21.04 लाख, हरियाणा में 17.21 लाख,आंध्र प्रदेश में 17.85 लाख , मध्य प्रदेश में 15.19 लाख गांठों का उत्पादन किया गया।

सूरत में कृषि फार्मों की ऐतिहासिक भूमिका

कपास का उल्लेख ऋग्वेद में भी मिलता है। मोहे-जोदडो संस्कृति के अवशेषों में कपास के अवशेष भी पाए गए हैं। कपास की खेती लगभग सात हजार वर्षों से की जा रही है। कपास वर्षों से भारत में अर्थव्यवस्था में सबसे आगे रहा है। आजादी से पहले कपास और कुटीर उद्योग एक दूसरे के पर्याय थे। कपास किसानों और बुनकरों की आजीविका थी। ब्रिटिश शासन के दौरान भारत में उत्पादित स्वदेशी कपास ब्रिटिश मानकों के अनुरूप नहीं थी। अंग्रेजों को ऐसे कपास के लिए शोध करने के लिए मजबूर किया गया जो इंग्लैंड की कपड़ा मिलों के लिए उपयुक्त हो। अमेरिकी कपास बहुत प्रयास के बाद भारत में आई। स्वतंत्रता आंदोलन के प्रणेता और दुनिया के महानतम सत्याग्रही नेता महात्मा गांधी ने भी चरखे की मदद से लोगों को स्वदेशी कपड़ा अपनाने के लिए अभियान चलाया था।

भारत में कपास का इतिहास और वर्तमान

स्वतंत्रता-पूर्व युग में पूरे देश में देशी कपास की धूम थी और खादी तथा हथकरघे पर बुने हुए कपड़ों की खपत चलन में थी। कपास अनुसंधान के कारण, देशी किस्मों का रोपण धीरे-धीरे कम हो गया और अमेरिकी कपास का रोपण बढ़ गया। ब्रिटिश शासन के दौरान,अमेरिकी कपास की विभिन्न किस्मों को भारत में पेश किया गया था। हालाँकि, मेलों के लिए आवश्यक कपड़ों के लिए भारत को मिस्र और पाकिस्तान जैसे देशों से लंबी कपास का आयात करना पड़ता था। इसलिए विदेशी निवेश महँगा था। 1921 में इंडियन सेंट्रल कोटन कमेटी की स्थापना के साथ ही इसके सहयोग से अनुसंधान कार्य में तेजी आयी, देश में अनेक स्थानों पर कपास अनुसंधान केन्द्र स्थापित किये गये। परिणामस्वरूप, देश में अमेरिकी कपास की किस्मों में तेजी आई और मध्यम तारी कपास का उत्पादन बढ़ गया।

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