कोरोना के चलते पारसी समाज ने पारंपरिक अंतिम संस्कार की प्रथा बदली, अब होगा दाह संस्कार
कोरोना के कारण जनजीवन प्रभावित हुआ है। कोरोना के कारण इतिहास में पहली बार सूरत में पारसी समाज द्वारा अंतिम विधि की दो खमे नशीन की परंपरा कुछ दिनों के लिए रुक गई है। पारसी समाज में दाह संस्कार एक सामान्य प्रथा नहीं है। दूध में चीनी की तरह घुल गए पारसी समाज को भी कोरोना में अंतिम संस्कार की प्रथा को तोडऩा पड़ा।
पारसी परंपरा के अनुसार वे मृतदेह को चीता पर रखकर दाह संस्कार नहीं करते है, बल्कि एक निश्चित स्थान पर कुआं स्थापित करते हैं और लाशों को पक्षियों को सौंप देते हैं। लेकिन वर्तमान में समाज द्वारा कोरोना गाइडलाइंस का पालन करने के लिए दाह संस्कार किया जा रहा है। यह पूरे पारसी समाज के लिए चौंकाने वाला है।
पारसी पंचायत के ट्रस्टी डॉ. यजीदी करंजिया ने कहा कि हमने ईरान से भारत और गुजरात में पैर जमाए थे, इसलिए हमारे पूर्वजों ने इस भूमि के विकास में हर संभव सहयोग देने का संकल्प लिया था। भविष्य के किसी भी मुसीबत में उन लोगों के हित में जिन्होंने हमारी रक्षा की है, हम उनकी तरफ और उनके साथ रहेंगे। आज हम कोरोना में अंतिम संस्कार के लिए सरकार द्वारा दिए गए दिशानिर्देशों का पालन कर रहे हैं। दिशानिर्देशों के अनुसार हमारे रिश्तेदारों को दफनाना हमारी धार्मिक प्रथा के बिल्कुल विपरीत है, लेकिन कोरोना में वर्तमान स्थिति को देखते हुए सरकार जो निर्णय लेती है और जो लोगों के हित में है, हम इसे सबसे अधिक प्राथमिकता देते हैं।