जन्माष्टमी पर विशेष: श्रीकृष्ण कथित गीता विश्व का युग ग्रंथ माना जाता है
आज भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी है। यह अष्टमी भगवान श्रीकृष्ण के साथ जुड़ी है। भगवान श्रीकृष्ण के साथ जुड़ जाने से इस अष्टमी का महत्व सचमुच बढ़ गया है। भगवान श्रीकृष्ण ने इस अष्टमी को जन्म लेकर् जनमानस के अंदर विशिष्ट श्रद्धा और सम्मानपूर्वक स्थान बना लिया। भगवान ने जन्म लेकर शानदार जीवन जीकर एक ऐसी दिव्य,भव्य एवं प्रेरणास्पद कहानी का निर्माण किया जो कि आज भी करोडो लोग उनके गुणों का उतकीर्तन करते हुए थकते नही है।
कंस और जरासंघ आदि के अत्याचारों से संत्रस्त जन जन को मुक्ति दिलाने वाले महापुरुष श्रीकृष्ण की जितनी भी महिमा की जाए,कम है। कालिया नाग का दमन,इंद्र के कुपित होने से मूसलाधार वर्षा से प्रलयकारी स्थिति का निर्माण होने पर कनिष्ठा उँगली पर गोवर्धन प्रवर्त उठाकर उसकी रक्षा ,रणभूमि में सुदर्शन चक्र चलाकर अन्याय और अनीति के खिलाफ युद्ध, न्याय की स्थापना के प्रयास,पशुओं की रक्षा आदि कई ऐसे प्रसंग है,जिन्हें इतिहास कभी भुला नही सकता।
भगवान श्रीकृष्ण के उल्लेखनीय कार्यो में अपने भक्तसखा अर्जुन को दिया गया गीता का उपदेश। श्रीकृष्ण कथित गीता विश्व का युग ग्रंथ माना जाता है। हर वर्ग ,हर धर्म और हर सम्प्रदाय ने गीता को महत्व दिया है। अति निर्धन सहपाठी मित्र सुदामा को अपने जैसा सम्पन्न बना देना।इसमें भी दान की विशेषता यह थी कि सुदामा में याचक का दैन्य नही आने दिया,क्योकि मित्र को दिया गया दान यदुनाथ कृष्ण का गुप्तदान था।
भगवान कृष्ण की गुण दृष्टि
वासुदेव श्रीकृष्ण गुण परक दृष्टिकोण लेकर चलने वाले सत्पुरुष थे। उनका दृष्टिकोण था कि हम अपनी दृष्टि को अच्छाइयों पर केंद्रित करें। जिसकी दृष्टि अच्छाइयों की और होती है,दरअसल,वही सम्यग्दृष्टि होता है। जीवन अच्छाइयों पर निर्भर होता है। बुराइयों से नही।उसका जीवन राजहंस की तरह होता है,वह कंकरो के ढेर से अपनी चोंच में मोती को उठाता है।
श्रीकृष्ण का पशुजगत के प्रति प्रेम
श्रीकृष्ण का पशुजगत के प्रति प्रेम था,वह अभूतपूर्व था।उन्होंने पशुओं के सरंक्षण के लिए अपने आप को सर्वात्मना समर्पित रखा। उन्होंने पशुओं की कभी उपेक्षा नही होने दी।आज हमारे देश मे पशुओ की,गोधन जिस तरह से दुर्दशा हो रही है। उसे देखकर ह्दय कंपित हो उठता है। श्रीकृष्ण की इस जन्म जयंती के पावन प्रसंग पर यह संकल्प सामूहिक रूप से करने की आवश्यकता है कि इस गोधन का अनिवार्य रूप से सरंक्षण संवर्धन करेंगे। सामूहिक रूप से हिंसा के उन्मूलन के लिए प्रयास किये जायें तो पुनः इस देश मे अहिंसात्मक मूल्यों की प्राण प्रतिष्ठा हो सकती है।
श्रीकृष्ण ने कभी अन्याय और अधर्म को प्रभावी नही होने दिया।वे सदैव न्याय और धर्म के प्रबल समर्थक रहे। कौरवों और पांडवों के बीच छिड़े संघर्ष में जब पांडव ध्रुत क्रीड़ा में परास्त हो गए तो अनिश्चितकाल के लिए पांडवों ने बारह वर्ष के वनवास और तदनंतर एक वर्ष के अज्ञातवास में रहने की स्थिति बन गई और उन्होंने अज्ञातवास पूरा करने के बाद जब पांडव श्रीकृष्ण वासुदेव से मिले तो कृष्ण पांचों पाण्डवो के जीवन निर्वाह हेतु शांतिदूत के रूप में कौरवों के पास गए और उन्होंने सिर्फ पांच गांव पाण्डवो को देने के लिए आग्रह किया।
दुर्योधन ने कृष्ण की बात को सुनी अनसुनी करके कहा-कृष्ण पांच गांव की बात तो बहुत दूर की है पर मैं पांडवों को सुई की नोंक के बराबर जमीन भी बिना युद्ध के नही दूंगा। कृष्ण ने दुर्योधन को पुनः बहुत अधिक समझाया और न्याय मानवता को तिलांजलि नही देने का आग्रह किया। श्रीकृष्ण युद्ध नही चाहते थे,पर दुर्योधन अन्याय पर ही अड़ा रहा तो युद्ध की स्थिति बन गई एवं कौरव और पांडव दो दलों के रूप में एक दूसरे के आमने सामने उपस्थित हो गए।
महापुरुष को औपचारिक दृष्टि से याद न करे
हमे हार्दिकता के साथ संपर्क स्थापित करना है। श्रीकृष्ण के प्रति भारतीय जनमानस में अपार आस्था का भाव है।प्रतिवर्ष जन्माष्टमी के आगमन के साथ ही वे पूरे देशभर में हार्दिक श्रद्धा के साथ याद किये जाते है। छोटे से छोटे गांवो में और बड़े से बड़े शहरों में जन्माष्टमी में विविध झांकियों का निर्माण किया गया है। प्रत्येक मोहल्ले और मन्दिर में उमड़ती भीड़ देखते ही बनती है। कई तरह के कार्यक्रमो का समायोजन आज जन्माष्टमी पर हो रहें है।
महापुरुषों का गौरवगान एक अच्छी परम्परा है।भगवान के मूलभूत जीवन संदेशो से यदि हम संबंधित नही बन पाए तो इस तरह के क्रिया कलाप मनोरंजन से अधिक महत्वपूर्ण नही हो सकते।
गुणगान तक ही सीमित नही
आज हमारे महापुरुषों को केवल गुणगान तक ही कैद कर लिया है।जबकि होना यह चाहिए कि हम उन्हें मन के मन्दिर में स्थान दे। आज भगवान श्रीकृष्ण की जन्माष्टमी के पावन अवसर पर मन्दिर में हो या नही हो,इससे कोई फर्क नही पड़ता है। श्रीकृष्ण का अवतरण हमारे मन मे होता है तो हमारे देश की स्थिति अत्यंत सन्तोषपद हो जाएगी।
आज के युग मे श्रीकृष्ण की अधिक आवश्यकता है। कहने को हमारा देश भारत धर्मप्रधान देश रह गया है किंतु आज यहा अधर्म ही अधिक पुष्ट हो रहा है। और यही कारण है कि आज जीवन अशांत है। अशांत जन जीवन को शांति श्रीकृष्ण के जीवन और संदेशों से जुड़ने के बाद निश्चित रूप से मिलकर रहेगी।
( कांतिलाल मांडोत )