मुंबई। कहते हैं कि साहित्य, संगीत और कला से वंचित व्यक्ति पशु के समान होता है। आदिकाल से ही मानव का झुकाव खासकर संगीत की तरफ रहा है। कल कल करते झरने, हवा के झोंके से निकलने वाली ध्वनि भी संगीत का एक स्वरूप है।तबला एक अवनद्ध वाद्य है। उत्तर भारत के ताल वाद्यों में इसका महत्त्वपूर्ण स्थान है। तबले की ध्वनि में कोमलता , मधुरता , गम्भीरता , गति को चंचलता सभी कुछ प्राप्त हो जाता है। उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ स्थित हरिहरपुर हमेशा से कला और संस्कृति का केंद्र रहा है।
शास्त्रीय संगीत की दुनिया में आज भी हरिहरपुर घराने का नाम बड़े अदब के साथ लिया जाता है। इसी घराने में पैदा हुए पंडित कालीनाथ मिश्र तबला वादन की दुनिया में बहुत ही लोकप्रिय प्रतिष्ठित नाम है। इनके पिता पंडित राखाल मिश्रा, शास्त्रीय संगीत की विश्व विख्यात गायक रहे। बड़े भाई शंभूनाथ मिश्र से गुरु की तरह प्यार और प्रशिक्षण मिला। बनारस घराने के प्रख्यात तबला वादक किशन महाराज और पंडित मदन मिश्र इनके गुरु रहे।
बाल्यकाल से ही संगीत को जीवन में उतरने वाले पंडित कालीनाथ मिश्र आज किसी परिचय के मोहताज नहीं है। पंडित हरिप्रसाद चौरसिया, पंडित जसराज, पंडित रामनारायण, पंडित बिरजू महाराज समेत सैकड़ो विश्व विख्यात गायको के साथ तबले पर संगत कर चुके हैं। जहां तक पुरस्कारों की बात है, अब तक सैकड़ो प्रतिष्ठित पुरस्कार प्राप्त कर चुके हैं। दुनिया के कोने-कोने में प्यार और सम्मान पा चुके पंडित कालीनाथ मिश्र आज शिखर पर हैं। ऐसे में उनके प्रशंसकों का पूरा भरोसा है कि जल्द ही उन्हें देश के सर्वोच्च संगीत पुरस्कार से अलंकृत किया जाएगा। कर्म में विश्वास रखने वाले पंडित कालीराम मिश्र अपनी साधना में लगातार लगे हुए हैं।