धर्म- समाज

राष्ट्रीय गीत का समुच्चारण और तिरंगे ध्वज को फहराना राष्ट्रीय गौरव

आज भारत 73वा गणतंत्र दिवस मना रहा है।1950 में हमारा संविधान लागू किया गया। इससे हमें पूरी आजादी मिली है। संविधान में जो आधीकार मिला है। हमारी ढाल बन कर हक दिलाता है। वर्षो से हमारा देश अंग्रेजो से पराधीन एवं परतंत्र था। पराधीन सपनहु सुख नाही पराधीन और परतंत्र होता है उसके जीवन मे सुख स्वप्न में ही सुलभ नही होता है। देश के प्रति पालन करते हुए हमें जो अधिकारी मिला है ।

हम अपनी जान से भी ज्यादा प्यार करते है।देश है तो हमारा जीवन है। मौलिक अधिकारों से हम अपने मन की हर बात को पूर्ण कर लेते है लेकिन जब देश की बात आती है तो हम पीछेहट करते है। मौलिक कर्तव्य की अवधारणा को रूस से लिया गया है। संविधान का पालन करना हमारा कर्तव्य है। राष्ट्र ध्वज और राष्ट्र गान का आदर करना हमारा कर्तव्य है। राष्ट्रगान के प्रति पुरानी पीढ़ी सजग थी।देश की आजादी के कुछ वर्षों तक राष्ट्रगान के प्रति लोग आदर भाव रखते थे। जहाँ भी राष्ट्रगान बजता था तो लोग खड़े रहकर पोजिशन देते थे।अब नई पीढ़ी में देशप्रेम और राष्ट्रगान के प्रति जिज्ञासा कम हुई है।

आजाद भारत के कोटि कोटि लोगो का सपना पूरा हुआ है जिन्होंने इस आहुति में लाठियां ,गोलियां और जेलों में दबंद रहकर स्वतंत्रता की अलख जगाई थी। उन स्वतंत्रता सेनानियों ने अपना सबकुछ त्याग कर भारत माता को आजादी दिलाई।73 सालों में हमने बहुत कुछ खोया है।

आज देश मे स्वच्छन्दता नही है तो क्या है हिंसा,जुठ,शोषण,अनीति,अत्याचार,भ्रष्टाचार, बलात्कार,आतंकवाद आदि जो स्थितिया कदम कदम पर आज दिखाई दे रही है। इतनी अंग्रेजो के शासनकाल मे भी नही थी। हम आजाद हो गए हमे अपना गणतंत्र मिल गया बस इस तरह की अभिव्यक्ति करके हर्ष प्रकट कर देना ही पर्याप्त नही है।

राष्ट्रीय   गान का सम्मुचारण और तिरंगे ध्वज को फहरा देना ही अगर गौरव का आधार मान लिया गया तो यह नितांत भूल भरेला दृष्टिकोण हैऔर इस दृष्टिकोण में हमे सुधार लाना चाहिए। हमारी पीढ़ी को न्याय दिलाकर जाना है। हमें उनको संविधान के मूल अधिकारों से परिचित करना है। देश का गौरव भाषणों,प्रस्तावों,रैलियों और हड़तालों से न कभी बना है और न कभी बनेगा। इसके लिए हंमे भीतर से जागृत होने का अभिप्राय सचरित्र के बल पर ही भारत ने जगतगुरु के रूप में सम्मान पाया है। चरित्र को खो कर भारत कभी अक्षुण्ण नही रख सकता है।

हमारे भारतवर्ष के इतिहास साक्षी है कि हमारे देश के हजारो लाखो देशभक्तों ने देश को परतन्त्रता से मुक्त कराने के लिए अपना सबकुछ न्यौछावर कर दिया । वीर बालाओं ने अपने पतियों,पुत्रो और भाइयों को हंसते हंसते देश की आजादी के लिए समर हेतु विदा किया एवं अंततः स्वतंत्रता, आजादी प्राप्त कर ही ली। इसी आजादी के बाद देश मे अपना संविधान बना और आज मौलिक अधिकार हमारे साथ है। परतंत्रता से मुक्त होने पर जो सुख और संतोष की जो अनुभूति होती है,वह शब्दातीत है। हमारे देश की स्वतंत्रता लौट आई। आजादी के मंगल स्वरों से देश का कोना कोना गूंज उठा। जन जन के ह्दय कमल खिल उठे।

अभिव्यक्ति की आजादी और प्रेस की आजादी भी एक ही अनुच्छेद में मिलती है। हमे संविधान के अधिकार मिले है उसका निष्ठा पूर्वक इस्तेमाल कर सकते है। लेकिन कानून के दायरे में रहकर ही संभव है।लिंग ,जाति और धर्म के साथ भेदभाव नही किया जा सकता है। लेकिन आज देश मे वैमनस्य की भावना पैदा हुई है। उससे यह साबित होता है कि संविधान नाम की कोई चीज ही नही है। मौलिक अधिकारों का हनन खुलेआम हो रहा है हमे यह नही भूलना चाहिए कि राष्ट्रधर्म का स्थान महत्वपूर्ण है।

हमे राष्ट्रधर्म को तनिक भी गौण नही करना चाहिए। अपने अपने स्तर पर जागरूकता पूर्वक पवित्रताओं को अपने अपने जीवन मे जीने का संकाय मन मे प्रज्वलित करे। आज गणतंत्र दिवस के हार्द को समझते हुए शारीरिक,मानसिक,आत्मिक सभी दृष्टियों से निर्बन्ध स्वतंत्र जीवन जिए।हमारे परतंत्र जीवन का उधेश्य स्वयं के साथ व्यक्ति,समाज व राष्ट्र की प्रगति से जुड़ा होना चाहिए।जिन सपूतों ने अपनी कुर्बानी देकर हम स्वतंत्रता का गौरव दिया। उनके साहस और आदर्शों को हंमे स्मृति पटल पर सदैव तरोताजा रखना है।

*कांतिलाल मांडोत*

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button