मानव जीवन रूपी पूंजी को वृद्धिगंत करने का हो प्रयास : आचार्य महाश्रमण
वरेड़िया गांव स्थित प्राथमिक व उच्च प्राथमिकशाला पूज्यचरणों पुनः बनी पावन
भरुच (गुजरात) : दुनिया में डायमण्ड और सिल्क सिटी के रूप में प्रख्यात गुजरात के सूरत शहर में आध्यात्मिक नगरी के रूप में स्थापित कर जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता, अखण्ड परिव्राजक आचार्यमहाश्रमणजी जनकल्याण के पुनः गतिमान हो चुके हैं। वर्तमान में शांतिदूत आचार्य महाश्रमणजी गुजरात के भरुच जिले में अपनी धवल सेना के साथ यात्रायित हैं।
महातपस्वी महाश्रमणजी के चरणरज से भारत का वह राजमार्ग पावन बन रहा है, जिसे स्वर्णिम चतुर्भुज योजना के अंतर्गत निर्मित किया गया है। वर्ष 2001 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी ने भारत के चार महानगरों को जोड़ने हेतु ऐसी परियोजना का प्रारम्भ किया तो भारत के नक्शे पर चतुर्भुज रूप में दिखाई दे रहा था। इसके प्रथम चरण का कार्य 2012 में पूर्ण हुआ और इस परियोजना की कुल लागत करीब 6 खरब (600 बिलियन) रुपए आई। यह विश्व में की पांचवीं बड़ी राजमार्ग परियोजना है।
सोमवार को प्रातःकाल की मंगल बेला में महातपस्वी आचार्य महाश्रमणजी ने लुवारा से मंगल प्रस्थान किया। स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना के इस राजमार्ग पर भारत के राष्ट्रसंत आचार्यश्री महाश्रमणजी लगभग ग्यारह किलोमीटर का विहार कर वरेड़िया गांव स्थित प्राथमिक मिश्रशाला में पधारे। यह विद्यालय पहले भी पूज्यचरणों से पावन बन चुका है। आचार्यश्री का एकदिवसीय प्रवास इसी विद्यालय परिसर में हुआ।
विद्यालय परिसर में आयोजित मंगल प्रवचन कार्यक्रम में शांतिदूत आचार्य महाश्रमणजी ने उपस्थित जनता को पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि चार आश्रम बताए गए हैं- ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास। पूरे जीवन को यदि चार भागों में 25-25 वर्ष में बांट दिया जाए तो मानव अपने जीवन के प्रथम भाग में पढाई, लिखाई के अध्ययन कर ज्ञान ग्रहण करने में लगाता है। उसके आगे के हिस्से वह वैवाहिक जीवन के साथ गृहस्थ का जीवन जीता है। अगले हिस्से में वानप्रस्थ की व्यवस्था और अंतिम अर्थात् 75वें वर्ष उसे संन्यासी की भांति जीवन जीने का प्रयास करना चाहिए। मानों यह जीवन के लिए मार्गदर्शन प्रदान किया गया है कि एक अवस्था के बाद आदमी को संस्थाओं के सक्रिय पद, परिवार, व्यापार आदि से निवृत्त होकर धर्म, ध्यान, साधना और अध्यात्म में समय लगाने का प्रयास करना चाहिए।
हमारे धर्मसंघ के चतुर्थ आचार्य श्रीमज्जयाचार्य को देखें तो वे संत होते हुए एक अवस्था के बाद उन्होंने संघीय दायित्वों एक प्रकार से निवृत्ति लेकर कितनी साधना की। उसी प्रकार सामान्य गृहस्थ को भी अपने जीवन में समय-समय पर मोड़ लेने का प्रयास करना चाहिए। युवावस्था हो, शरीर स्वस्थ हो तो आदमी को पुरुषार्थ करने का प्रयास करना चाहिए। सौभाग्य से प्राप्त इस मानव जीवन में धर्म, ध्यान, साधना, ईमानदारी करते हुए ऊंची गति प्राप्त की जा सकती है तो कोई जीवन में ज्यादा पुण्य नहीं करता और पाप भी नहीं करता वह पुनः मनुष्य जीवन को प्राप्त कर सकता है और आदमी अपने जीवन में चोरी, हिंसा, हत्या, झूठ आदि में लगा रहता है, वह अधोगति की ओर आगे बढ़ सकता है।
मनुष्य जीवन को मूल पूंजी मान लिया जाए तो मनुष्य जन्म के बाद देवगति प्राप्त कर लेना कमाई, मनुष्य जीवन से अधोगति की ओर चले जाना मानव जीवन रूपी पूंजी को गंवा देने के समान है। आदमी चिंतनपूर्वक मानव जीवन रूपी पूंजी का सदुपयोग कर उच्च गति की प्राप्ति का प्रयास करे। व्यापार-धंधे में आदमी को ईमानदारी और नैतिकता को रखने का प्रयास करना चाहिए। आदमी यह प्रयास करे कि धर्म, ध्यान, साधना और सदाचार के द्वारा मानव जीवन रूपी पूंजी में वृद्धि हो सके, शतगुणित हो सके।
आचार्य ने विद्यालय परिवार को आशीष प्रदान करते हुए कहा कि यहां पहले भी हमारा प्रवास हो चुका है। इस विद्यालय के बच्चों को धार्मिकता-नैतिकता का प्रशिक्षण प्रदान किया जाता रहे। प्राथमिक व उच्च प्राथमिकशाला की प्रिंसिपल शमीम बहन ने आचार्य के स्वागत में अपनी भावाभिव्यक्ति दी।