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राज्य संग्रहालय में प्राचीन सिक्कों की प्रदर्शनी का आगाज़

भोपाल : संचालनालय पुरातत्‍व अभिलेखागार एवं संग्रहालय भोपाल म.प्र. के अन्‍तर्गत डॉ. विष्‍णु श्रीधर वाकणकर पुरातत्‍व शोध संस्‍थान, भोपाल द्वारा अश्विनी शोध संस्‍थान महिदपुर, उज्‍जैन के संयुक्‍त तत्‍वधान में युग-युगीन सिक्‍के की प्रदर्शनी का उद्घाटन एवं सिक्‍कों पर आधारित युग-युगीन सिक्‍के विषय पर व्‍याख्‍यानमाला का 22 जनवरी 2025 को किया गया।

कार्यक्रम के प्रारंभ में सर्वप्रथम सिक्‍कों पर आधारित प्रदर्शनी का उद्घाटन प्रोफेसर वैद्यनाथ लाभ, कुलगुरू सॉची बौद्ध भारतीय अध्‍ययन विश्‍वविद्यालय एवं  उर्मिला शुक्‍ला आयुक्‍त पुरातत्‍व अभिलेखागार एवं संग्रहालय भोपाल द्वारा किया गया। कार्यक्रम के अगले चरण में अतिथियों के स्‍वागत उपरान्‍त वाकणकर शोध संस्‍थान के निदेशक डॉ. पूजा शुक्‍ला द्वारा अतिथियों के स्‍वागत उद्बोधन देते हुए संस्‍थान द्वारा आयोजित युग-युगीन सिक्‍कों की प्रदर्शनी के उद्देश्‍य पर प्रकाश डालते हुए अश्विनी शोध संस्‍थान, महिदपुर उज्‍जैन के निदेशक डॉ. आर.सी. ठाकुर के योगदान से अवगत कराया।

मुख्‍य अतिथि प्रोफेसर लाभ ने अपने उद्बोधन में सिक्‍कों की महत्‍ता पर प्रकाश डालते हुए उसकी प्राचीनता एवं वस्‍तु-विनिमय में आने वाली कठिनाईयों के समाधान के रूप में सिक्‍कों के आरम्‍भ पर प्रकाश डाला, उनके द्वारा यह भी प्रकाश डाला गया कि, कौडी को भी मुद्रा के रूप में उपयोग किया गया था। इतिहास लेखन में सिक्‍कों के योगदान से भी अवगत कराया गया।

सचिव संस्‍कृति मध्‍यप्रदेश शासन एवं आयुक्‍त पुरातत्‍व ने अपने उद्बोधन में प्रोफेसर लाभ के शोध कार्यो एवं बौद्ध दर्शन में उनके योगदान को रेखांकित किया,उनके द्वारा बताया गया कि, सिक्‍के भारतीय इतिहास संस्‍कृति, धार्मिक एवं आर्थिक पहलूओं के अध्‍ययन के महत्‍वपूर्ण श्रोत है, जो किसी भी देश के समसामयिक, धार्मिक, सांस्‍कृतिक मान्यताओं एवं आर्थिक स्थिति के अध्‍ययन के लिए सहज ही जानकारी उपलब्‍ध करा देते है।

इस अवसर पर डॉ. विष्‍णु श्रीधर वाकण्‍कर पुरातत्‍व शोध संस्‍थान की ओर से आयुक्‍त पुरातत्‍व द्वारा इतिहास पुरातत्‍व एवं संस्‍कृति के क्षेत्र में शोध कार्यो को व्‍यापकता एवं अन्‍य संस्‍थानों के साथ मिलकर शोध कार्य करने की दिशा में पहल करते हुए तीन संस्‍थानों यथा अध्‍ययन शाला प्राचीन भारतीय इतिहास संस्‍कृति एवं पुरातत्‍व विक्रम विश्‍वविद्यालय उज्‍जैन, अश्विनी शोध एवं अनुसंधान संस्‍थान महिदपुर उज्‍जैन तथा भोज जनकल्‍याण सेवा समिति रतलाम के साथ समझौता ज्ञापन भी हस्‍ताक्षरित किए गए। इन तीनों समझौता ज्ञापन हस्‍ताक्षरित होने उपरान्‍त पुरातत्‍व के क्षेत्र में शोध कार्यो को बढावा मिलेगा।

कार्यक्रम की अगली कड़ी में शोध प्रतिष्ठित विद्वानों के द्वारा अपने शोध पत्रों का वाचन कर मुद्रा शास्‍त्र के विभिन्‍न आयामों पर प्रकाश डाला गया। इस क्रम में डॉ. जोसफ मेन्‍युल द्वारा ” द सर्च फोर ए सूटेबल इमेज ऑफ गोडेस ऑफ प्रोसपेरिटी डियूरिंग गुप्‍ता पिरीयड –द न्‍यूमेसमेटिक एविडेंसेस विषय पर अपने शोध पत्र प्रस्‍तुत किया गया, जिसमें उनके द्वारा विभिन्‍न स्‍थलों से प्राप्‍त गजअभिशेकित देवी एवं गुप्‍तकाल के सिक्‍कों पर प्राप्‍त लक्ष्‍मी एवं प्रतिमाओं का विश्‍लेषणात्‍मक विवेचना प्रस्‍तुत की।

शोध पत्र वाचन की कड़ी में अध्‍ययन शाला प्राचीन भारतीय इतिहास संस्‍कृति एवं पुरातत्‍व विक्रम विश्‍वविद्यालय उज्‍जैन के विभागाध्‍यक्ष, डॉ वि.एस. परमार ने कुषाण कालीन सिक्‍कों, डॉ. अन्‍जना गौर उज्‍जैन ने मुद्राओं पर अंकित प्रतीक चिन्‍हों पर अपना शोध पत्र का वाचन किया। डॉ. रितेश लोड़, डॉ. शिवम दुबे भी अपने शोध पत्रों का वाचन कर अपने विचार रखें।

इस अवसर पर डॉ. मनोज कुमार कुर्मी अधीक्षण पुरातत्‍वविद, भारतीय पुरातत्‍व सर्वेक्षण,  नरेन्‍द्र सिंह पवार,  राघवेन्‍द्र सिंह तोमर उपस्थित रहे एवं स्‍कोप ग्‍लोबल विश्‍वविद्यालय, महारानी लक्ष्‍मी बाई महाविद्यालय भोपाल के छात्र-छात्राएं अन्‍य गणमान्‍य उपस्थित रहे।

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