शिक्षा-रोजगार

कविता : बहुत बदल गया हूँ मैं ….

 

बहुत बदल गया हूँ मैं

पहले सा कहां रह गया हूँ मैं
अक्स नया रंगत नयी।
पर्वत सा थम गया हूँ मैं
बहुत बदल गया हूँ मैं
पहले सा कहां रह गया हूँ मैं।।

अब छोटी छोटी बातों का भी
एहसास होता है
फूल भी नफ़रत से मारो तो दर्द होता है।
बर्फ सा पिघल गया हूँ मैं
बहुत बदल गया हूँ मैं
पहले सा कहां रह गया हूँ मैं।।

हर वक़्त जज्बातों का कारवाँ हैं
नस नस में मुहब्बत रवा हैं।
तेरे सुरूर में हिल सा गया हूँ मैं
बहुत बदल गया हूँ मैं
पहले सा कहां रह गया हूँ मैं।।

अब डर नहीं होता लम्हों का
लहरों पर कश्ती रखी है
कोई शक नहीं कोई सवाल नहीं
भरोसे की दीवार पक्की की है।
तेरे यकीन का यकीन हो गया हूँ मैं
बहुत बदल गया हूँ मैं
पहले सा कहां रह गया हूँ मैं।।

रचनाकार : राजेश कुमार लंगेह
( सेकंड-इन- कमांड, एनएसजी, मुंबई )

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