क्या वास्तव में चरित्रहीन था रावण?
रावण की उपस्थिति के बिना रामायण पूरी नही होती है । यदि रावण को रामायण से निकाल दिया जाए ,फिर रामायण का महत्व समाप्त हो जाएगा। लोकमानस में रावण की छवि अत्यंत क्रूर ,ओरत खोर और राक्षक के रूप में अंकित है।भारत मे यह धारणा अत्यंत बलवंत है कि रावण राक्षक कुल का था। किंतु यह आश्चर्य का विषय है कि रावण केवल मातृपक्ष से राक्षक था,जबकि उसके पिता आर्य थे। रावण प्रसिद्ध योगी का नाती एवं वैदिक विद्वान आर्य विश्रवऋषि का पुत्र था। परिणाम स्वरूप रावण क्रूर कर्मा बन गया। इसके बावजूद रावण के धवल पक्ष एवं निष्कलंक को भी नही भुलाया जा सकता। रावण अपने युग का महाप्रतापी एवं शक्तिशाली योद्धा था। उसने अपनी शक्ति से सुमात्रा,जावा,अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया आदि पर अपना प्रभुत्व स्थापित किया था। जिसका उल्लेख द्वीपों में किया गया है।
उसके गुप्तचर दुनिया के दसो दिशाओं में फैले हुए थे और रावण दसो दिशाओं की जानकारी रखता था। इन दसो दिशाओं में फैले अपने प्रभाव की रक्षा वह अपनी शक्तिशाली भुजाओं से करता था। जिसकी सामर्थ्य बीस भुजाओं से कम नही था।इसलिए उसे दशानन और बीस भुजाओं वाला कहा जाता था। रावण चारो वेदों और छः शास्त्रों का ज्ञाता था। इसलिए भी उसे दशानन कहा जाता था। वैसे उसके भी किसी साधारण व्यक्ति के समान ही एक सिर व दो भुजाएं थी।
रावण सौंदर्य उपासक एवं रसिक अवश्य था किंतु कामुक चरित्रहीन नही था।सीता माता के अत्यंत सौंदर्यशालिनी होने के बावजूद उसने कभी सीता माता से अशिष्ट व्यवहार नही किया।उसने दृढ़ शब्दो से सीता को आश्वश्त करते हुए कहा’भले ही काम मेरे शरीर को जलाकर भस्म कर दे,परन्तु तुम्हारी इच्छा के बिना मैं तुम्हारे शरीर को हाथ नही लगा सकता”क्या रावण के ये शब्द उसे श्रेष्ठ तथा चरित्रवान व्यक्ति प्रमाणित नही करते?
सर्वविदित है कि लंका विजय के पश्चात सीता जी सकुशल राम को मिली थी,किंतु उंन्होने पुरुषोचित भावनाओ के वशीभूत अथवा लोकवाद से बचने हेतु उनकी परीक्षा की अग्नि परीक्षा ली थी। वैसे इस मत को मानने वाले भी विधमान है कि वास्तविक सीता का कभी अपहरण ही नही हुआ था। वे तो मायावी सीता थी,जिन्हें रावण हरण करके ले गया था। एक कथा के अनुसार श्रीराम ने सीताजी से कहा था कि तुम कुछ दिन के लिए अग्निदेव की चरण में रहो, अब मैं कुछ मानवीय क्रिया करना चाहता हूं। यह बात विवाद का विषय हो सकती है कि अपहरण वास्तविक सीता का हुआ अथवा उनकी परछाई का। किंतु इस घटना पर दोनॉ ही महर्षि वाल्मिकी एवं गोस्वामी तुलसीदास सहमत नही है कि लंका से लौटने के बाद सीता की अग्नि परीक्षा ली गयी थी। उसके बाद ही राम ने उन्हें स्वीकार किया था यहा पर वाल्मिकी रामायण तथा अन्य उदाहरणों से सिद्ध करने का प्रयास किया गया है कि पाठकों को लंका में भोगवाद के दर्शनों के साथ यह भी ज्ञात हो सके कि वहाँ के निवासी चारित्रिक पतन से कोसो दूर थे और रावण की जो औरतखोर की छवि बनायी जाती है,वह असत्य पर आधारित है।
उल्लेखनीय है कि विष्णु की भांति ही रावण के भी अनेक अवतार माने गये है।कई प्रकार के चरित्रों से संजोया गया है उसे।कभी निर्दोष अभिशप्त राजा प्रताप भानु के रूप में आता है ,तो कभी भगवान के अभिशप्त पार्षदों दिलीप व दशरथ से भी युद्ध कर चुका है। अरण्यकांड में रावण द्वारा की गयी इस चरण वंदना का विस्तृत वर्णन किया है।रावण कहता है कि माता तू मात्र राम की पत्नी नही,जगत जननी हैं।राम और् रावण दोनों ही तेरी संतान है।माता योग्य संतानों की चिंता नही करती है।राम तो सर्वथा योग्य है।उनके उद्धार की चिंता नही है।मैं ही सर्वथा अयोग्य हू।मेरा उद्धार कर दो माँ।यह तभी संभव है जब तू मेरे साथ लंका चलेगी।
सेतु बन्दन के समय राम द्वारा शिवलिंग स्थापना की जाती है और युद्ध मे विजय हेतु वे सागर किनारे यज्ञ करते है। यज्ञ पति पत्नी दोनों के सम्मिलित होने से पूरा होता है।जब राम के इस निर्णय की जानकारी रावण को मिलती है तो वे अपने नाना एवं महामंत्री माल्यवान से कहता है। राम की अर्धांगनी सीता तो मेरे पास है।अतः राम की पूजा अर्चना अधूरी रह जायेगी।यह ठीक नही है।स्वयं सीता को साथ ले जाकर राम को सौंप देता है।इतना ही नही उस क्षेत्र का सर्वश्रेष्ठ ब्राह्मण विद्वान होने के नाते रावण उस यज्ञ का आचार्य भी बनता है और यज्ञ की समाप्ति पर राम को विजयी भव का आशिर्वाद भी देता है। रावण स्त्रियों के प्रति संवेदनशील और उनके मान सम्मान के प्रति जगरूक रहने वाला व्यक्ति था। रावण सच्चरित्र व्यक्ति था इस विषय मे स्वयं रावण की पत्नी मंदोदरी ने सीता से कहा था कि बहन मेरे पति क्रोधावेश में आकर तुम्हारा अपहरण कर यहा ले आये है।किंतु मैं तुम्हे वचन देती हूं कि जब तक तुम्हारी स्वीकृति नही मिलेगी। तब तक न तो तुम्हे रानिवास में रहने मजबूर करेंगे और न ही हाथ लगाएंगे। इससे प्रमाणित होता है कि रावण स्त्रियों की मर्यादा का कितना ध्यान रखता था।तभी तो उसने सीता माता को रानिवास से दूर अशोक वाटिका में रखा।
लंका में शराब,शवाब,मांस,व्यभिचार ,भौतिकता एवं भोग विलास के सभी साधन बहुतायत में होने के बावजूद नारी का पर्याप्त सम्मान था इसलिए लंका में कही भी महिलाओं के छेड़ने,उन्हें तंग करने,वेश्यालयों की स्थापना तथा बलात्कर की घटनाओं का कोई भी उल्लेख नही मिलता रावण निर्भीक,पराक्रमी,बलशाली तथा धीर वीर था वह सीताजी के साथ जबर्दस्ती भी कर सकता था।परंतु वह ऐसा कोई काम नही करता,जिससे कि उसके चरित्र पर किसी प्रकार की आंच आती हो।रावण स्त्रियों के प्रति कुर अथवा अत्याचारी नही था।वह नियति के लिखे अनुसार पूर्व जन्म के अभिशाप के कारण सीताजी का अपरहण किया।
( कांतिलाल मांडोत )