धर्म- समाज

हर समाज मे मिलती है लोहड़ी पर्व की झांकी

सूर्य हमारे जीवन का आधार है। सूर्य उपासना के आयाम कई रूपो में सामने है। कही पर पोंगल के रूप में है तो कई पर लोहड़ी के रूप में है। सूर्य के साथ ही ऋतू पर्व का आनन्द इन दिनों पर्वो में मिलता है। लोहड़ी का पर्व मस्ती और उमंग का पर्व है।इस पर्व को सभी मिलकर मनाते है।लोहड़ी जलाई जाती है। सूर्य को भगवान विष्णु ने योग का मौलिक उपदेश दिया है। सूर्य का तेज केवल उनके लिए नही है।बल्कि मानव समाज के लिए है। पोष माह में सूर्य शीत को जड़ता से कम करता है। और मकर राशि मे प्रवेश करते है तो लोहड़ी की धूम मच जाती है।

यह पर्व परम्पराओ के हिसाब से अलग अलग भले ही मनाया जाता हो,लेकिन इसके नाम अलग अलग है। असम में माघ बिहू,दक्षिण में पोंगल,पंजाब में लोहड़ी,बंगाल में सक्रांति और समस्त उतर भारत मे मकर सक्रांति के नाम से जाना जाता है। राजस्थान में मकर सक्रांति तो गुजरात मे उत्तरायण के नाम से प्रसिद्ध है। वेदों में भी सूर्य को वशिष्ट महत्व दिया गया है। सूर्य सभी राशियों में किसी न किसी रूप में प्रभावित करते है। लेकिन कर्क और मकर में सूर्य का आना विशेष महत्व रखता है। यह क्रिया छह छह माह में होती है। मकर सक्रांति से ठीक फहले लोहड़ी का पर्व विभिन्न संस्कृति का परिचायक है।

लोहड़ी आनन्द का पर्व

लोहड़ी पर्व आनन्द और उल्लास का पर्व है।किसी न किसी रूप में नई संस्कृति की झलक इसमें चूपी होती है। रात को लोहड़ी जलाकर भंगड़ा और डांस,बच्चो को आशीष और बुजुर्गों का आशीर्वाद लेने की परंपरा जीवन के उदात्त क्षणों को अभिव्यक्त करती है। लोहड़ी भले ही पंजाबी समुदाय का विशेष पर्व त्योहार है,लेकिन इसकी झांकी हर समाज मे मिलती है। सभी लोग इसमें शामिल होते है। मुख्य रूप से लोहड़ी का पर्व भी सूर्य का ही पर्व है। लोहड़ी के बाद से ही दिन बड़े और राते छोटी होने लगती है। दक्षिणायन रहने से रात्रि बड़ी और दिन छोटे होते है। इस प्रकार से सूर्य ज्योतिष विज्ञान का भी आधार है। वह सभी को पूजनीय है।इस नाते प्रकृति प्रेमियों की और से सूर्य देव की उपासना से दैहिक, दैविक और भौतिक तापो के क्षय होता है। उनकी पूजा से मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है। सूर्य की उपासना करने वालो में तेज आता है। और निरोगी रहते है। पंजाब के साथ पूरे भारत मे लोहड़ी पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है।

रोटी की टोकरी

कड़कड़ाती ठंड में जब बाहर कोहरा हो रहा हो,तब जलती आग के चारो ओर कई लोग शोर मचाते,बड़ो का आशीर्वाद मिल जाए, तो समझ लीजिए कि यह मौका लोहड़ी का है।लोहड़ी का त्योहार पंजाब में धूमधाम से मनाया जाता है।पंजाब के इस त्योहार की खासियत है मन मे उमड़ पड़ता उल्लास। लोहड़ी 13 जनवरी को आज ही के दिन मनाया जाता है।इस दिन के बाद से सूर्य उतरी गोलार्द्ध की और आना शुरू हो जाता है। इसके उतरायन चल पड़ने की घटना को 13 जनवरी की रात लोहड़ी के माध्यम से नांच गाकर और बढ़िया खाना आदि बनाकर मनाया जाता है। वैसे पंजाब जिसे भारत मे रोटी की टोकरी के नाम से भी बुलाया जाता है। लोहड़ी रबी की फसल बढ़ जाती है तब ही आती है। फसलों को काटने का समय होता है।ऐसे में सोना उगने में देर नही लगती,इसलिए पूरे पंजाब में लोहड़ी को खास तौर पर परम्परागत गीतों और गिद्दा करके खुशी के साथ मनाया जाता है।सुबह से ही घर पर जाकर गाते हुए लोहड़ी के लिए गजक,गुड़,रेवड़ी,मूंगफली,मेवे या तिल जैसी चीजें इकठ्ठा कर लोहड़ी लूट की परंपरा निभाते है । लोहड़ी के समय गाये जाने वाले गानों में दुल्ला भट्टी नाम के शख्श की वीरता के कारनामो के बारे में भी गाया जाता है। दुल्ला भट्टी गरीबो का मसीहा था।पर पंजाब में रोबिन हुड के तौर पर जाना जाता था।उसके बारे में कहा जाता है कि वह गरीबो के लिए पैसा जुटाने के लिए अमीरों को लुटता था। उसने एक गरीब लड़की की शादी अपनी बहन की शादी समझ कर कराई। उसी दुल्ला भट्टी की यादे लोहड़ी के गानों में शामिल होता है।

लोहड़ी की रस्म

शाम को सूरज ढलते ही घर के सामने खुले स्थान पर लकड़ियों को इकट्ठा उसमे अग्नि प्रज्वलित की जाती है,इसके चारों तरफ घर,पास पड़ोस के लोग इकट्ठा होकर खुशिया मनाते है। इसकी परिक्रमा की जाती है।इसमें पॉपकॉर्न, रेवड़ी,सूखे मेवे,मूंगफली आदि भी डालते है कुछ लोग इस समय आदर आए दलिद्गजाए। जैसे नारे भी लगते है। लोकगीतों के माध्यम से अग्नि की भूमि की उत्पादकता और संपन्नता की प्राथनाएं की जाती है। पंजाब अपने प्यार,जोश और आपसी सद्भाव के लिए जाना जाता है।लोहड़ी इन्ही भावनाओ के साथ मिलकर रहने का प्रतीक है।

 

( कान्तिलाल मांडोत )

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