सूरत में 500-500 मेगावॉट के स्मार्ट मॉडल रिएक्टर की स्थापना से बिजली समस्या से मिल सकेंगी निजात: परमाणु सहेली डॉ. नीलम गोयल
तापी डिप्लोमा इंजीनियरिंग कॉलेज में परमाणु ऊर्जा पर सेमिनार
सूरत। भारत की परमाणु सहेली डॉक्टर नीलम गोयल ने तापी डिप्लोमा इंजीनियरिंग कॉलेज में एक सेमिनार का आयोजन किया। सेमीनार में गुजरात में बिजली और पानी की परियोजनाओं के बारे में विस्तृत जानकारी दी। परमाणु सहेली ने बताया कि गुजरात उद्योग आधारित प्रदेश है और आने वाले समय में प्रदूषण की वजह से हम कोयला का ज़्यादा बिजली में प्रयोग नहीं कर पाएंगे और उतना कोयला भारत के पास है भी नहीं। बिजली बनाने के दूसरे स्त्रोत- जिसमें पानी, हवा, सूर्य इत्यादि हैं, के द्वारा हम बड़ी बड़ी इंडस्ट्रीज़ को सतत बिजली नहीं दे पायेंगे। ऐसी परिस्थिति में हमारे उद्योग-धंधें बिजली की सतत सप्लाई न होने से गहरी समस्या से घिर जाएंगे और बेरोज़गारी तीव्रता से बढ़ने लगेगी।
इस प्रकार की परेशानी हमें भविष्य में नहीं झेलनी पड़े, इसके लिए भारत के पास बिजली बनाने का एक बहुत ही सस्ता व साफ़ सतत् स्त्रोत है- परमाणु ऊर्जा। लेकिन परमाणु ऊर्जा के बारे में लोगों में सही जानकारी का अभाव है। जिसकी वजह से जब भी परमाणु बिजली घरों की बात होती है। लोग इसका विरोध करते हैं। गुजरात का साढ़े छह हज़ार मेगावाट की परमाणु बिजली परियोजना, जो कि मीठीविरदी भावनगर में प्रस्तावित है, पिछले कई वर्षों से खटाई में पड़ी हुई है। इस सन्दर्भ में गुजरात की जनता अनजान है।
परमाणु सहेली ने बताया कि जिस प्रकार मोरबी में कोयले को NGT ने प्रदूषण की वजह से बंद कर दिया था और सभी फैक्ट्रीयों का प्रचालन रुक गया। वर्तमान में ये फैक्ट्रीयां गैस का प्रयोग करती है जिसकी कीमत 20₹ प्रति किलो से बढ़कर 84₹ रुपया प्रति किलो तक पहुँच गई है। यह कीमत बिजली की 20 रूपये प्रति यूनिट से ज्यादा है। मोरबी फैक्ट्रीयों की टाईल्स वगैरह यदि विश्व व्यापार में चायना से अधिक महँगी पड़ती है तो, ऐसे में अंतर्राष्ट्रीय मार्केट को भी खो देंगे। बिजली की ही समस्या से सूरत के उद्योग-धंधे भी हैं। सूरत में पूरे भारत का 70 प्रतिशत कपड़ा बनता है। परमाणु सहेली ने बताया कि सूरत में 500-500 मेगावॉट के स्मार्ट मॉडल रिएक्टर की स्थापना से समस्या का निराकरण हो सकेगा।
बिजली के अलावा परमाणु ऊर्जा के अन्य सिविल अनुप्रयोगों के बारे में भी विस्तृत जानकारी दी। परमाणु बिजली घरों से बिजली बनाने के साथ-साथ ही जो रेडियो आइसोटोप बनाते हैं, जिनमें से कई तो उद्योगों में, कृषि में और स्वास्थ्य चिकित्सा के क्षेत्र में प्रयोग किये जाते हैं। परमाणु सहेली ने गुजरात के साउथ रीज़न की जल परियोजना जिसमें कल्पसर परियोजना व पार तापी नर्मदा परियोजना के सन्दर्भ में भी विस्तृत जानकारी दी।
साउथर्न रीजन में 29 प्रतिशत ज़्यादा पानी है जबकि सौराष्ट्र व कच्छ में 71 प्रतिशत पानी की कमी है। कल्पसर परियोजना के क्रियान्वयन से पूरे सौराष्ट्र को पानी की कमी से निजात मिलेगी, साथ ही साउथ गुजरात से सौराष्ट्र की यात्रा मात्र एक घंटे में पूरी हो सकेगी। पानी व्यर्थ बहने और बाढ़ इत्यादि से भी निजात मिलेगी। सभी विद्यार्थियों ने शपथ ली और उन्होंने कहा कि जब भी परमाणु ऊर्जा की योजना, नदियों को जोड़ने की योजना जब भी उनके क्षेत्र में या गुजरात में कहीं भी आएंगी वे इन योजनाओं का पूरी तरह से समर्थन करेंगे।
इस सेमिनार में कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ. वाय.एस. चोपरा जी ने परमाणु सहेली का सम्मान किया। साथ में कॉलेज के ट्रस्टी डॉ. के.डी. भगानी और डॉ. के.जी. मावाणी भी मौजूद थे जिन्होंने कार्यक्रम को बहु उपयोगी बताया।