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मार्का लगे खाद्यान्न, दही, बटर, लस्सी आदि को जीएसटी में लाने से आम आदमी होगा प्रभावित – CAIT

प्रत्येक राज्य के वित्त मंत्री को ज्ञापन देकर व्यापारी करेंगे इस निर्णय को वापिस लेने की माँग 

देश के सभी राज्यों के वित्त मंत्री सीधे रूप से जीएसटी कॉउंसिल द्वारा गत 28-29 जून मार्का लगे हुए खाद्यान्न, बटर, दही, लस्सी आदि को 5 प्रतिशत के कर स्लैब में लाने के लिए ज़िम्मेदार हैं क्योंकि जीएसटी काउन्सिल ने यह निर्णय सर्वसम्मति से लिया है जिसमें सभी राज्यों के वित्त मंत्री इसके सदस्य है कन्फ़ेडरेशन ऑफ़ ऑल इंडिया ट्रेडर्ज़ ( कैट) एवं अन्य खाद्यान्न संगठनों ने कहा की यह निर्णय छोटे निर्माताओं एवं व्यापारियों के मुक़ाबले बड़े ब्रांड के व्यापार में वृद्धि करेगा और आम लोगों द्वारा उपयोग में लाने वाली वस्तुओं को महँगा  करेगा।

अब तक ब्रांडेड नहीं होने पर विशेष खाद्य पदार्थों, अनाज आदि को जीएसटी से छूट दी गई थी। कॉउन्सिल के इस निर्णय से प्री-पैक, प्री-लेबल वस्तुओं को अब जीएसटी के कर दायरे में लाया गया है । इसको लेकर देश भर के विभिन्न राज्यों में अनाज, दाल एवं अन्य उत्पादों के राज्य स्तरीय संगठनों ने अपने अपने राज्यों में व्यापारियों के सम्मेलन बुलाने का क्रम शुरू कर दिया है और लामबंद हो रहे हैं।

इस विषय पर कल शाम कन्फ़ेडरेशन ऑफ़ ऑल इंडिया ट्रेडर्ज़ ( कैट) के राष्ट्रीय महामंत्री  प्रवीन खंडेलवाल ने केंद्रीय रक्षा मंत्री  राजनाथ सिंह से मुलाक़ात की और वस्तुस्तिथि से उन्हें अवगत कराते हुए आग्रह किया की फ़िलहाल इस निर्णय को अमल में न लाया जाए और कोई भी अधिसूचना जारी होने से पहले संबंधित व्यापारियों से चर्चा की जाए ।  राजनाथ सिंह ने इस संबंध में वित्त मंत्री  निर्मला सीतारमन से बातचीत करने का आश्वासन दिया । कैट का प्रतिनिधिमंडल इस मुद्दे पर शीघ्र ही केंद्रीय वित्त मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमन, वाणिज्य मंत्री  पीयूष गोयल तथा अन्य केंद्रीय मंत्रियों से मिलेगा और उनसे इस निर्णय को स्थगित रखने का आग्रह करेगा।

भरतिया एवं खंडेलवाल ने कहा की इस मामले पर सभी राज्यों की अनाज, दाल मिल सहित अन्य व्यापारी संगठन अपने अपने राज्यों के वित्त मंत्रियों को ज्ञापन देकर इस निर्णय को वापिस लेने का आग्रह करेंगे। बेहद खेद की बात है की सभी राज्यों ने जीएसटी काउन्सिल की मीटिंग में सर्वसम्मति से इसको पारित कर दिया। ऐसा लगता है की किसी भी वित्त मंत्री ने इस बारे में विचार नहीं किया की छोटे शहरों एवं अन्य जगह के व्यापारी किस प्रकार इस निर्णय की पालना कर पाएँगे तथा इस निर्णय का वित्तीय बोझ आम लोगों पर किस प्रकार से पड़ेगा।

यह भी खेद की बात है की देश में किसी भी व्यापारी संगठन से इस बारे में कोई परामर्श नहीं किया गया । देश में केवल 15 प्रतिशत आबादी ही बड़े ब्रांड का सामान उपयोग करती है जबकि 85 प्रतिशत जनता बिना ब्रांड या मार्का वाले उत्पादों से ही जीवन चलाती है। इन वस्तुओं को जींएसटी के कर स्लैब में लाना एक अन्यायपूर्ण कदम है, जिसको काउन्सिल द्वारा वापिस लेना चाहिए और तत्काल राहत के रूप में इस निर्णय को अधिसूचित न किया जाए।

भरतिया एवं  खंडेलवाल ने कहा की कहा की निश्चित रूप से जीएसटी कर संग्रह में वृद्धि होनी चाहिए किन्तु आम लोगों की वस्तुओं को कर स्लैब में लाने के बजाय कर का दायरा बड़ा करना चाहिए जिसके लिए जो लोग अभी तक कर दायरे में नहीं आये हैं, उनको कर दायरे में लाया जाए जिससे केंद्र एवं राज्य सरकारों का राजस्व बढ़ेगा। उन्होंने कहा की आजादी से अब तक खाद्यान्न पर कभी भी कर नहीं था किन्तु पहली बार बड़े ब्रांड वाले खाद्यान्न को कर दायरे में लाया गया।

उन्होंने कहा की सरकार की मंशा आम लोगों की रोजमर्रा की जरूरतों को कर से बाहर रख उनके दाम सदैव कम रखने की रही है। क्या वजह थी की 2017 में तत्कालीन वित्त मंत्री श्री अरुण जेटली ने क्यों इन जरूरी वस्तुओं को कर से बाहर रखा और अब ऐसा क्या हो गया जिससे इन बुनियादी वस्तुओं पर कर लगाना पड़ा।

व्यापारी नेताओं ने कहा की प्रथम दृष्टि में किसान भी इस निर्णय से प्रभावित होता दिखाई देता है क्योंकि किसान भी अपनी फसल बोरे में पैक करके लाता है तो क्या उस पर भी जीएसटी लगेगा, इसकी काउन्सिल ने स्पष्ट नहीं किया है। उन्होंने यह भी कहा की प्रत्येक पैक पर मार्का लगाना और अन्य ज़रूरी सूचना लिखना फ़ूड सेफ़्टी एंड स्टैंडर्ड क़ानून के अंतर्गत आवश्यक है। यदि कोई बिना मार्का के किसी सामान को बेचना भी चाहे तो नहीं बेच सकता और मार्का लगते ही वो जीएसटी के दायरे में आ जाता है।

इस निर्णय के अनुसार अब यदि कोई किराना दुकानदार भी खाद्य पदार्थ अपनी वस्तु की केवल पहचान के लिए ही किसी मार्का के साथ पैक करके बेचता है तो उसे उस खाद्य पदार्थ पर जीएसटी चुकाना पड़ेगा। इस निर्णय के बाद प्री-पैकेज्ड लेबल वाले कृषि उत्पादों जैसे पनीर, छाछ, पैकेज्ड दही, गेहूं का आटा, अन्य अनाज, शहद, पापड़, खाद्यान्न, मांस और मछली (फ्रोजन को छोड़कर), मुरमुरे और गुड़ आदि भी महंगे हो जाएंगे जबकि इन वस्तुओं का उपयोग देश का आम आदमी करता है।

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