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कंपनी के मालिक के लिए कंपनी चलाना और कर्मचारियों को उचित वेतन देना एक स्वाभाविक कर्तव्य है: मकरंद मूशले

सूरत। द सदन गुजरात चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री और भारत विकास परिषद सूरत मेन की संयुक्त पहल 6 फरवरी, 2023 से 10 फरवरी, 2023 के दौरान समृद्धि, नानपुरा, सूरत में एक विशेष कार्यक्रम ‘भगवद गीता – द बेस्ट गाइड टू मैनेजमेंट – गीता पंचामृत’ का आयोजन किया गया। जिसके भाग के रूप में बुधवार 8 फरवरी 2023 को शाम 6:00 बजे कवि, गजल लेखक, नाटककार, अनुवादक एवं आकार साइंटिफिक प्रा. लिमिटेड के निदेशक मकरंद मूशले ने ‘गीता-सहज कर्मानु काव्यसंगीत’ विषय पर भाषण प्रस्तुत किया और गीता के विभिन्न श्लोकों में दिए गए सार के माध्यम से समझ दी।

चैंबर ऑफ कॉमर्स के मानद मंत्री भावेश टेलर ने कहा कर्मण्यवादाधिकारस्ते मां फलेषु कदाचन। यह पांच छह हजार साल पहले भगवान श्री कृष्ण के मुख से कहा था, कर्म करने का उद्देश्य आज के युग में भी उतना ही मौजूद है। हर धर्म ने अपने शास्त्रों में कर्म को महत्व दिया है। कर्म हमेशा से नींव रहा है। हमें अक्सर ऐसा लगता है कि कर्म हमारा पीछा कर रहा है। आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में अगर हम क्षण भर रुक कर कर्म और उसके परिणामों के बारे में सोच सकें तो ज्यादा न करने की समझ स्वत: ही विकसित हो जाती है।

भारत विकास परिषद सूरत के अध्यक्ष रूपिन पच्चीगर ने कहा कि व्यक्तियों के लिए जीवन की परिभाषा अलग होती है। किसी के लिए जीवन एक खेल है, किसी के लिए जीवन नाटक है और किसी के लिए जीवन संघर्ष है। ऐसा व्यक्ति सुबह उठने के बाद से ही जीवन से संघर्ष कर रहा होता है। उनका संघर्ष समाज के खिलाफ है और दूरी के खिलाफ भी है। कभी वह ईर्ष्या, द्वेष, मनोबल के विरुद्ध संघर्ष करता है तो कभी अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए। इसलिए संघर्ष जीवन का क्रम है और इसे करते रहेंगे तो ही जीवन में आनंद आएगा।

मकरंद मूशले ने कहा कि एक सैनिक के लिए युद्ध होता है और उससे लड़ना उसका स्वाभाविक कर्म है। इस प्रकार, कंपनी के मालिक के लिए कंपनी को चलाना और कंपनी के कर्मचारियों को अपनी आजीविका बनाए रखने के लिए पर्याप्त वेतन देना एक स्वाभाविक कार्य है। कर्म तीन प्रकार के होते हैं, जिनमें राजसी कर्म, तापसी कर्म और सात्विक कर्म शामिल हैं। कर्म आत्मा के साथ अमर हो जाता है। अन्तर इतना ही है कि आत्मा का कभी नाश नहीं होता अपितु कर्म का फल भोग कर नष्ट हो जाता है।

प्रोफेशनल्स के पास बिजनेस करने का हुनर ​​है और उसके लिए इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार है, ग्राहक तैयार हैं लेकिन दिमाग तैयार नहीं है। जिससे कारोबार शुरू नहीं हो पा रहा है। इसलिए शरीर और मन की लयबद्धता आवश्यक है। उन्होंने कहा कि लयबद्धता ईश्वर की देन है। रोज की भागदौड़ में कोई न कोई इसे डिस्टर्ब कर ही देता है। इसलिए गीता का अध्ययन हमारे मन को लयबद्ध और शक्तिशाली बनाता है। प्रत्येक व्यक्ति के लिए स्वास्थ्य, परिवार, व्यवसाय और शोक ये चार महत्वपूर्ण बातें हैं जो उसके जीवन को आनंदमय बनाती हैं।

उन्होंने आगे कहा, उप निषाद का अर्थ है ऊपर का अर्थ है निकट और निषाद का अर्थ है नीचे का अर्थ है गुरु के पास बैठकर उनसे ज्ञान प्राप्त करना। गीता ही एक उपनिषद है। वेद का अर्थ है ज्ञान और गीता सभी का सार है और चारों वेदों का एक रूप है, इसलिए जितनी बार गीता पढ़ी जाती है उतना ही कुछ नया सीखते और सीखते हैं।

चेंबर के मानद कोषाध्यक्ष भावेश गढ़िया ने कार्यक्रम में उपस्थित सभी का आभार व्यक्त किया। पूरे कार्यक्रम का संचालन चेंबर के ग्रुप चेयरमैन निखिल मद्रासी ने किया। भारत विकास परिषद सूरत की मुख्य उपाध्यक्ष प्रतिमा सोनी, मानद मंत्री विपुल जरीवाला और महिला समन्वयक रंजना पटेल उपस्थित थीं। वक्ता ने श्रोताओं के विभिन्न प्रश्नों का संतोषजनक उत्तर दिया और फिर कार्यक्रम का समापन हुआ।

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