गांधी दर्शन विश्व से कभी मिट नही सकता
गांधी जयंती पर विशेष
भारतीय इतिहास में दो अक्टूबर आज का दिन अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।दो अक्टूबर का दिन पराधीन भारत की स्वतंत्रता के इतिहास में एक स्वर्ण किरण बनकर आया।आज के दिन जिस महापुरुष ने जन्म लिया वह साधारण मानव ही था,किंतु उस दुबली पतली सी काया में असाधारण आत्मबल,अदभुत मनोबल का एक पुंजीभूत प्रकाश छिपा था,जिसकी प्रकाश किरणों ने दासता,दुर्बलता और अशिक्षा के धनीभूत अंधकार को चीर कर सम्पूर्ण एशिया खण्ड में स्वतंत्रता, स्वाधीनता,अहिंसा और देश प्रेम का आलोक भर दिया।भारतीय जीवन के सुप्त आत्मविश्वास को जगा दिया।उसने सिद्ध कर दिया कि हिंसा,आतंक,लूट और भय के आधार पर टिकी सत्ता, बन्दूक,तलवार और बमो पर भोली प्रजा का शोषण करने वाली विदेशी ताकत अहिंसा और सत्य ,देशप्रेम और आत्म बलिदान की महाशक्ति के आगे टिक नहो सकती।
गांधीजी का जीवन सद्गुणों का सत संकल्पों का एक प्रेरणा स्त्रोत था।उनके विचार, उनका आचार, उनके संस्कार और उनका व्यवहार सत्य ,अहिंसा ,स्वावलंबन, सादगी और सदाचार का मूर्तिमंत स्वरूप था।गांधी का चरित्र,गांधी का चिंतन सत्कर्मो की सुवास से महकता गुलदस्ता था।उनके संपर्क में आने वाले सैकड़ो हजारो कार्यकर्ताओ का जीवन सद्गुणों व सदविचारों की सुवास से महक उठता था।गाँधीजी के अनुयायी थे विनोबा भावे,डॉ राजेंद्रप्रसाद,सरदार वल्लभभाई पटेल आदि।उनका जीवन तो राष्ट्र के लिए प्रकाशपुंज बना ही किंतु केवल गाँधीजी के निकट रहने वालों का,उनके क्षणिक संपर्क में आने वालों का जीवन भी उनके सदविचारों की सुगंध से महकने लग गया था।
गुजरात के पोरबंदर शहर में एक धार्मिक गुजराती परिवार में दो अक्टूबर के दिन जिस तेजस्वी बालक का जन्म हुआ।उसका नाम था मोहनदास।लोग उसे मोहनदास करमचंद के नाम से जानने लगे।बालक मोहनदास जन्म से ही कुछ विलक्षण गुणों का पुंज था।कण से जो सुमेरु बन जाता है।पुरुष से महापुरुष बन जाता है।बालक मोहनदास भी विलक्षणताओ के धनी थे।
मोहनलाल गांधी,गाँधीजी,फिर महात्मा जी फिर राष्ट्रपिता और बापू के उच्चतर सम्मानित पद तक पहुंचे थे।इसका कारण उनके व्यक्तित्व के भीतर छिपे ये गुण ही थे।उनके संस्कारो में सहज महापुरुष का स्वरूप आकार ले रहा था। गाँधीजी केवल एक धोती पहनते थे।शुरू उनकी यह पोशाक नही थी।वे अपनी परम्परागत गुजराती पोशाक में ही देश के कोने कोने में भ्रमण करते थे।उन्होंने शरीर पर केवल धोती धारण की थी।गाँधीजी एक बार उड़ीसा की यात्रा कर रहे थे।वहां उन्होंने एक गरीब स्त्री को देखा, जिसका कपड़ा बहुत ही मैला और फटा हुआ था।कपड़ा भी इतना छोटा था कि उससे उस महिला का आधा शरीर ही ढका जाता था।गाँधीजी ने कहा -बहिन तुम अपने कपड़े धोती क्यों नही?इतना आलस्य क्यो करती हो कि कपड़ा इतना मैला रहे?उस स्त्री ने सलज्ज दृष्टि से बापू की और देखा और कहा-इसमें आलस्य की बात नही है श्रीमन!मेरे पास इसके अलावा कोई दूसरा कपड़ा ही नही है जिसे पहनकर मैं इसे धो सकू।
उस स्त्री का कथन सुनकर गाँधीजी की आत्मा द्रवित हो उठी और वे मन ही मन कह उठे-आज मेरी भारत माता के पास पहनने को चिथड़े तक नही है।उसी समय गाँधीजी ने एक प्रतिज्ञा की कि जब तक देश स्वतंत्र नही हो जाता और गरीब आदमी को भी देह ढकने के लिए पर्याप्त कपड़ा नही मिलता,तब तक मै कपड़ा नही पहनूंगा।लाज ढकने के लिए एक लंगोटी रखना काफी होगा और गाँधीजी ने उसी समय अपनी परम्परागत पोशाक का परित्याग कर दिया।
गाँधीजी में संकल्पशीलता ,नियम निष्ठा,ईश्वर के प्रति अगाध श्रद्धा और जनता जनार्दन के प्रति सेवा व सद्भावना अदभुत थी।दो सौ वर्षों से राज करती दुर्दांत विदेशी सत्ता की जड़े हिला दी।अकेला चना भाड़ नही फोड़ता परन्तु इस कहावत को झूठी कर दिया गांधी ने!अकेले गांधी ने भारत की सुप्त आत्मा को जगा दिया।देश की अस्मिता को प्रचंड बना दिया।अकेली एक चिंगारी ने ब्रिटिश सत्ता के महावन को जलाकर राख कर डाला।सत्य अहिंसा की एक हथौड़ी ने गुलामी और पराधीनता की बेड़ियों को तोड़कर चूर चूर कर दिया।यह बल उनके दुबले पतले शरीर का नही,किंतु सुद्रढ़ आत्मा का था।सत्य ,अहिसा का बल था।आज गांधी जयंती के दिन हम उनके चरित्र की छोटी छोटी बातो का स्मरण कर उनसे प्रेरणा ले तो हमारे भीतर भी एक गांधी जैसा पौरुष पैदा हो सकता है।आने वाली पीढ़िया शायद यह विश्वास भी करे या न करे कि गांधी नाम का एक ऐसा व्यक्ति हुआ था जिसने अकेले ही बिना तीर तलवार के,बिना जादू टोने के इतनी विशाल ब्रिटिश सत्ता को उखाड़ फेंका और भारत माता को स्वतंत्रता के गौरव से मंडित किया।आज हम उस सत्य,अहिंसा के पुजारी पुरुष को याद करके प्रेरणाएं ले।यही गांधी जयंती का संदेश है।
( कांतिलाल मांडोत )