रूचि के आधार पर ही अपना वर्तमान होता है तय : आचार्य श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी
मृत्यू तय करती है कि आपका जीवन कैसा था और कैसा होगा
सूरत। शहर के पाल में श्री कुशल कांति खरतरगच्छ जैन श्री संघ पाल स्थित श्री कुशल कांति खरतरगच्छ भवन में युग दिवाकर खरतरगच्छाधिपति आचार्य जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी म.सा. ने सोमवार 23 सितंबर को प्रवचन में कहा कि परमात्मा ने कहा है कि सदा- सदा अपने आंखों के सामने मृत्यू को देखों। मौत कभी भी बिना सूचना की नहीं आती, लेकिन हम सूचना का अनादर कर देते है। आंखों से दिखाई नहीं दे, कानों से सुनाई नहीं दे, घुंटने से चला नहीं जाएं, स्मृति कमजोर हो जाए यह सब सूचना तो है। मृत्यू कब हो इसकी चिंता नहीं करनी चाहिए। मृत्यू से डरना नहीं, बल्कि चिंतन करके मृत्यू को सार्थक करना है। मृत्यू महत्वपूर्ण और संवेदनशील है।
आचार्यश्री ने कहा कि मृत्यू के पहले भी और बाद में भी जीवन है। मृत्यू तय करती है कि आपका जीवन कैसा था और कैसा होगा। अपने वर्तमान को संभालना है। सकृत के पीछे जो भाव लगे है, उन भावों की अनुमोदना और परमात्मा से प्रार्थना करें कि ऐसा भाव मुझे हर भव में मिले।
रूचि शब्द की महत्ता बताते हुए आचार्यश्री ने कहा कि रूचि शब्द बहुत महत्वपूर्ण है। रूचि यानि रस। जैसे मिठाई में रस कैसा होता है, इसके आधार पर ही मिठाई प्रशंसनीय बनती है। कर्म चार प्रकार से बंधता है। प्रकृति बंध, स्थिति बंध, रस बंध और प्रदेश बंध। रूचि के आधार पर ही आपका वर्तमान तय होता है। रूचि के आधार पर ही समाधि मरण का पता चलता है। जीवन में आत्मरस होना जरूरी है। चरित्र, संयम लेना जिंदगी भर की तपश्चर्या है।
अपने जीवन में कर्तव्यों का स्मरण करो, जीवन को व्यर्थ गंवाने का भाव जीवन में मत लाओ। जीवन आत्मा और आत्म रस के लिए है। रूचि अगर संसार में है, तो संक्लेश मरण और रूचि अगर आत्मा है तो समाधि मरण तय है। आज श्री कुशल कांति खरतरगच्छ जैन श्री संघ पाल द्वारा आए हुए मेहमानों का बहुमान किया गया।