अनिश्चय है प्राणी का जीवनकाल : आचार्य महाश्रमण
दुर्लभ मानव का लाभ उठाने को आचार्यश्री ने किया अभिप्रेरित
सूरत (गुजरात) : आयारो आगम में कहा गया है कि जीवन को बढ़ाया नहीं जा सकता, छिन्न आयुष्य को साधा नहीं जा सकता। आयुष्य कर्म का जो नियम है, उसके अनुसार यदि आयुष्य पूर्ण हो रहा है तो उसे लम्बा अथवा बढ़ाया नहीं जा सकता। आदमी के मन में कामनाएं बहुत ज्यादा हैं और जीवनकाल काफी सीमित है। किसी को आए तो सौ पार का आयुष्य भी प्राप्त हो जाए और किसी न आए तो पचास ही नहीं आ पाता है। इस प्रकार कह सकते हैं, जीवनकाल अनिश्चय में ही रहता है। ऐसी स्थिति में मानव को यह ध्यान देना चाहिए कि उसे वह मानव जीवन वर्तमान में उपलब्ध है, जिसे दुर्लभ और महत्त्वपूर्ण बताया गया है तथा यह मानव जन्म की धर्म की साधना की दृष्टि से भी उत्कृष्ट है। जो साधना इस मनुष्य जीवन में की जा सकती है वह अन्य योनि में नहीं की जा सकती है। इस मानव जीवन में धर्म की साधना, आराधना, तप, जप और तपस्या के कर मानव मोक्षश्री का वरण कर सकता है।
मानव को ऐसा प्रयास करना चाहिए कि सौभाग्य से मानव जीवन प्राप्त हो गया है तो ऐसा कार्य करना चाहिए कि अब उसे अधोगति में नहीं जाना पड़े। सभी के जीवन में साधुत्व नहीं भी आए तो गृहस्था अवस्था में रहते हुए जितना संभव हो सके, धार्मिकता और संयम से युक्त जीवन जीने का प्रयास करना चाहिए। गृहस्थों को जीवन चलना होता है, आर्थिक रूप से ध्यान देना, परिवार के वृद्ध और बुजुर्ग लोगों की सेवा करना, समाज की दृष्टि से भी करना हो सकता है और राजनीति की दृष्टि से भी कुछ करना हो सकता है। जीवन के इन विभिन्न पहलुओं में आदमी को धर्म को इग्नोर नहीं करना चाहिए।
धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष ये चार कर्म चतुष्टय हैं। आदमी को अपने अपने जीवन में धार्मिक पुरुषार्थ करने का प्रयास करना चाहिए। गृहस्थ आदमी अपने जीवन में ईमानदारी को रखने का प्रयास करे। जहां तक संभव हो सके, जहां भी रहे, जो कुछ भी करे, उसे ईमानदारी रखने का प्रयास करना चाहिए। ईमानदारी के लिए आदमी को झूठ नहीं बोलना चाहिए और चोरी करने से भी बचने का प्रयास करना चाहिए। ईमानदारी की रक्षा भी करने का प्रयास करना चाहिए। अच्छा जीवन जीने के आदमी को ईमानदारी, सच्चाई के मार्ग पर चलने का प्रयास करना चाहिए। जीवन में अहिंसा, ईमानदारी, सादगी, सच्चाई रहे व धर्मोपासना आदि हो तो मानव जीवन का कल्याण हो सकता है।
उक्त पावन पाथेय जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने सोमवार को महावीर समवसरण में उपस्थित श्रद्धालु जनता को प्रदान की।
मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मण्डल द्वारा आचार्य तुलसी शिक्षा परियोजना के अंतर्गत तत्त्वज्ञान/तेरापंथ प्रचेता कार्यशाला का आयोजन किया गया। इस संदर्भ में इस परियोजना की निदेशक श्रीमती पुष्पा बैंगाणी ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। इस संदर्भ में आचार्यश्री ने पावन आशीर्वाद प्रदान किया।
आचार्यश्री की अनुज्ञा से नोखामण्डी में साध्वी राजीमतीजी द्वारा गत दिनों दी गई दीक्षा के संदर्भ में नोखामण्डी तेरापंथ महिला मण्डल ने गीत का संगान किया। तेरापंथी सभा के अध्यक्ष श्री शुभकरण चोरड़िया ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। इस संदर्भ में आचार्यश्री ने सभी को पावन आशीर्वाद प्रदान किया। तेरापंथ युवक परिषद-अहमदाबाद ने अपनी गीत को प्रस्तुति दी। श्री तनसुख बैद ने स्वरचित कृति ‘कल्याण मंदिर’ आचार्यश्री के समक्ष लोकार्पित की।