भारत

महिलाओं के लिए कानून में ढेर सारे नियम, फिर भी महिलाओं पर अत्याचार ज्यादा

देश में महिलाओं का उत्पीड़न रोकने और उसका हक दिलाने के लिए बड़ी संख्या में कानून पारित हुए है। उसके बावजूद महिलाओं के साथ अत्याचार खत्म नही होते है। देश मे महिलाओं के उत्पीड़न में कमी नही है। लिहाजा, पुलिस महकमा कानून का पूरी तरह उपयोग कर और अलग अलग धाराएं लगाने से ही महिलाओं को न्याय मिलेगा। महिलाओं का उत्पीडत्मक रवैया कम होगा। आज महिलाओं के बचाव में संविधान ने अनेक प्रकार की कानून व्यवस्था के बावजूद पुरुष प्रधान समाज इसका भरपूर फायदा उठा रहा है। महिलाओं के बचाव में अनेक अनुच्छेद भरे पड़े है। अनेक कानून का पालन होने के बजाए बहुत कम कानून का पालन हो रहा है। पुरुषों की मानसिकता के कारण समाज मे ऐसे हालत बने हुए है। यहअत्याचार कब खत्म होंगे? लोकसभा और विधानसभा में महिलाओं के लिए समान आरक्षण की व्यवस्था का प्रावधान है। लेकिन महिलाओं को पैर की जूती समझने वाले समाज कंटक आज भी मौजूद है। दहेज लेना और देना दोनों ही सूरत में कानूनन अपराध है। लेकिन आज समाज मे महिलाएं दहेज के दावानल में भष्मीभूत हो रही है। समाज सभ्यता की दहलीज से काफी दूर है। समाज मे फैली बुराइयों को दूर करने के लिए कानून एक महत्वपूर्ण जरिया है। लेकिन इसका कहा पालन हो रहा है? दहेज निषेध अधिनियम के तहत महिलाओं को बचाने का पूरा प्रावधान है।

महिलाओं की सुरक्षा के लिए कवच दिया गया है। वह ठीक तरह से पालन होते नही दिख रहा है। पुलिस प्रशासन भी कही न कही महिलाओं के पक्ष मजबूती प्रदान करने में कसर रखता है। देश मे इस तरह के नियमो को नजरअंदाज किया जाता है। जिसके चलते पुरुष समाज उसका फायदा उठाता आ रहा है। भारत सरकार ने स्त्री स्वतंत्रता के लिए कानून बनाया है। सख्त कानून अमल में है उतना अन्य किसी देश में नही है। अलबत्ता, फिर भी भारत मे महिलाओं के साथ अत्याचार ज्यादा है।यह विडंबना ही है कि देश इससे अछूता नही है।क्रूरता और प्रताड़ना से महिलाएं अंतिम मार्ग अपना लेती है। आत्महत्या की घटना और हत्या की घटनाओं में कमी नही आई है।कानून गले की फांस बनता जा रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार भारत मे महिलाओं के साथ 16 वे मिनट पर एक बलात्कार होता है।

2019 से हर दिन में बलात्कार की 87 घटनाएं सामने आई है। यूपी में सबसे ज्यादा महिलाओं के साथ रेप केस की घटनाएं सामने आई है। यूपी में योगी आदित्यनाथ सरकार के कड़क कानून के बाद भी दुष्कर्मियों के इस तरह से हौसले बुलंद है कि उनको सजा की कोई परवाह ही नही है। क्या हम सभ्य समाज की और आगे बढ़ रहे है। हर वर्ष पांच लाख दुष्कर्म भारत में होते है तो क्या हम महिला सुरक्षा की बात पर गर्व कर सकते है?

देश मे निर्भया रेप कांड के बाद सख्त कानून और फास्ट ट्रेक कोर्ट की मांग की गई। लेकिन यौन हिंसा अब भी चालू है। हर चौथी रेप पीड़िता नाबालिग और 94 प्रतिशत दुष्कर्म के मामले में परिचित व्यक्ति होते है। आज भी महिलाओं में ख़ौफ़ विधमान है। गुजरात के सूरत में बच्चीयों के साथ रेप की घटनाएं प्रकाश में आई है। वो औधोगिक क्षेत्र पांडेसरा है। शराब के नशे में दुधमुंही बच्चीयों के साथ बलात्कार कर उसको मौत के घाट उतार दिया जाता था। उसमें अधिकतर लोग शादी शुदा और घर में उनके बड़े बड़े बच्चे है। नशा नाश ही करता है यह कहावत आज चरितार्थ होती दिख रही है।

दिवाली के दौरान छह दिनों में रेप केस में दुष्कर्मी को कोर्ट ने सजा सुनाई, जिसमें उसने पांच साल की बच्ची को चॉकलेट की लालच देकर झाड़ियों में ले जाकर दुष्कर्म किया। सजा के बाद फुट फुट कर रोया। दरअसल,दुष्कर्मी के घर में 12 साल का एक लड़का और लड़की है। उसने हवस की अंधी दौड़ में पूरे परिवार को बर्बाद कर दिया। देश मे दुष्कर्म की घटनाओं में बढ़ने का मुख्य कारण दुष्कर्म करने वालो को कानून की समझ नही होती है और दूसरा कारण यह है कि ये वे लोग है जिनके मन मे यह सब करने की तमन्ना रहती है। यह विनाशकारी है। अपना और हँसते खेलते परिवार को गड्ढे में धक्का देने के समान घिनोना कृत्य है। जीवन को बनाना है बिगाड़ना नही है।

( कांतिलाल मांडोत )

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