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उद्धव गुट को मिला मशाल निशान, मशाल से बालासाहब का है खास रिश्ता

मुंबई। मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के साथ-साथ शिवसेना से अलग हुए विधायकों और सांसदों ने पार्टी अध्यक्ष उद्धव ठाकरे के राजनीतिक अस्तित्व पर सवाल उठाया। शिंदे गुट ने सीधे शिवसेना पर दावा किया और कहा कि भविष्य में उद्धव की राजनीतिक राह कठिन होगी। शिवसेना का ये विवाद सीधे चुनाव आयोग तक पहुंच गया।

इस बीच अंधेरी पूर्व विधानसभा सीट पर उपचुनाव होने जा रहे हैं। इसलिए चुनाव आयोग के लिए यह जरूरी हो गया कि वह शिवसेना के भीतर चल रहे विवाद पर तत्काल फैसला करे। चुनाव आयोग ने शनिवार को शिवसेना के धनुष बान निशान को सील कर दिया क्योंकि दोनों दलों ने पार्टी पर दावा किया था।

इसके बाद चर्चाएं शुरू हुईं कि पार्टी का चुनाव चिन्ह और नाम खोने के बाद उद्धव ठाकरे का राजनीतिक सफर और मुश्किल हो जाएगा। लेकिन चुनाव आयोग द्वारा पार्टी के चुनाव चिन्ह और नाम के लिए तीन नए विकल्प सुझाने के आदेश के बाद उद्धव ठाकरे ने बड़ी चतुराई से इन विकल्पों को चुना।

उन्होंने सुनिश्चित किया कि उनकी पार्टी के नाम के साथ शिवसेना और बालासाहेब के नामों का उल्लेख किया जाए। हालांकि चुनाव आयोग ने शिवसेना बालासाहेब ठाकरे का नाम लेने की उद्धव की पहली प्राथमिकता वाली मांग को खारिज कर दिया, लेकिन इसने शिवसेना को उद्धव बालासाहेब ठाकरे नाम देने की अनुमति दी। साथ ही ठाकरे गुट को पार्टी के प्रतीक चिन्ह के रूप में मशाल दी गई।

उद्धव ठाकरे मशाल निशान से कैसे लाभान्वित हो सकते हैं?

देश में भाषा के आधार पर राज्यों का निर्माण हुआ है लेकिन मुंबई को पाने के लिए महाराष्ट्र को संघर्ष करना पड़ा। एक संघर्ष शुरू हुआ क्योंकि गुजरात ने भी मुंबई पर दावा किया। मुंबई को महाराष्ट्र में रखने का संघर्ष संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन द्वारा शुरू किया गया था। उद्धव ठाकरे के दादा और दिवंगत शिवसेना अध्यक्ष बालासाहेब ठाकरे के पिता प्रबोधनकर ठाकरे भी इस लड़ाई में सबसे आगे थे।

उन्होंने इस संघर्ष को तेज कलम से मजबूत किया। जलती हुई मशाल को अखंड महाराष्ट्र के संघर्ष का प्रतीक माना जाता है। इस संघर्ष में 107 लोगों ने बलिदान दिया। उद्धव ठाकरे खेमे को मशाल चिन्ह मिलने से भविष्य में उद्धव एक बार फिर यह इतिहास रचेंगे और मतदाताओं से भावनात्मक जुड़ाव स्थापित करने की कोशिश करेंगे।

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