विधानसभा चुनाव नजदीक आते ही गरमाई यूपी की सियासत
हमारा लोकतंत्र किसी को टिकट देने के लिए मना नही करता है। दागी मंत्रियों को जेल में रहकर ही चुनाव लड़ने की इजाजत देता है। चुनाव में हर पार्टी जिताऊ प्रत्ययाशी को टिकट देती आ रही है और इस बार यूपी में सलाखों के पीछे रहकर भी चुनाव लड़ने के लिए अपने पाले में लाने जेलों के चक्कर काट रहे है। पूर्वांचल के अंसारी और अतीक चुनाव लड़ने के संकेत मिल रहे है। यूपी में भ्रष्टाचार और रेप के आरोपी भी विधानसभा चुनाव में ताल ठोकेंगे। समाजवादी पार्टी के आजम खान जेल में रहकर चुनाव लड़ेंगे। यूपी की जेलों में करीब आधा दर्जन सलाको के पीछे है। तलवार के दम पर जीने वाले तलवार के वार से दम तोड़ते है समाजवादी पार्टी के विधान परिषद सदस्य बने अजीतसिंह की मौत अपने जन्म दिन समारोह के दौरान हुई। करोडो रुपए का सामाज्य खड़ा करने वाले अति महत्वकांक्षी अजीतसिंह ने फिरौती,अपहरण, हत्या,जमीन हड़पने जैसे बड़े अपराधों में हाथ डालना शुरू किया और उनके नाम से लखनऊ थर्राने लगा। अजीतसिंह की मौत के बाद अखिलेशसिंह पर भी उंगली उठी थी।अजीतसिंह की हत्या पर शोक जताने तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायमसिंह यादव भी पहुंचे थे।
चुनाव आयोग को दागी मंत्रियों के लिए कोई नियम पारित कर उनको टिकट नही देने की पाबंदी जाहिर करनी चाहिए लेकिन वो भी संविधान के दायरे में है।यूपी के लखनऊ में माफिया सरगनाओं की भीड़ के लिए सिर्फ पुलिस जिम्मेदार नही थी। क्योंकि ज्यादातर दुर्दांत अपराधी और शूटर राजनैतिक दलों से जुड़े हुए थे। कुछ राजनैतिक पार्टियो के समर्थन के बिना ही अपना साम्रज्य चलाते थे। सत्ताधारी पार्टियो के दाएं बाएं ही रहते थे। अब अन्धारी आलम का सूर्य अस्त हो गया।जेलों में ही दिन काट रहे है। राजनैतिक आकाओं के दम पर करोडो का सामाज्य स्थापित करने वाले बहुत से बाहुबली थे ।राजा भैया,अमरमणि त्रिपाठी, अक्षय प्रतापसिह, अखिलेश सिंह,धनंजय सिंह अजित उर्फ अजिया और अरुण शंकर उर्फ अन्ना जैसे लोगो का सता के गलियारों में खासा दखल रहा।सदन के सम्मानित सदस्य होने के बाद भी लखनऊ के अंदर भीतर आपराधिक गतिविधियां चालू रखी।ज्यादातर के पास अपनी निजी सेना थी। बहुमंजिला इमारतों का व्यवसाय विधायक और सांसद बने माफिया सरगना अपने हिस्से के लिए लड़ते थे। यूपी में माफिया सरगना मुसीबत में होते थे तो राजनैतिक दल उन्हें पुलिस से बचाते थे। ये खेल पांच साल पहले होता था।
हत्या ,लूट ,दुष्कर्म ,फिरौती और अपहरण की घटना आए दिन होती थी। आपराधिक मामले उनके सिर पर रहते हुए वे किसी से नही डरते थे। उनके सामने कमजोर दिल वाला खड़ा भी नही रह सकता था। वसूली आदि के काम चुटकी में करते थे। क़िस्त नही चुका पाने के कारण चलती गाड़ी से उतार कर छीन ली जाती थी।ये आपराधिक पृष्ठभूमि वाले सरगना पुलिस को भी निशाना बनाते थे। यहा तक अधिकांश जिलों में पुलिस अधीक्षक की भी नही चलती थी। उनके अधीनस्थ इंस्पेक्टर, उप निरीक्षक और आरक्षक सत्ताधारी दलों के विधायकों की पसंद और मांग के आधार पर नियुक्त किए जाते थे। पहले राजधानी लखनऊ अपराधी राजनीतिकों का अड्डा बन गई थी। यह अपराध तेजी से बढ़ा था लेकिन भाजपा आने के बाद सभी अपराधी या तो जेल में है या उपर पहुंच गए है। अब फिर से उन्ही लोगो को पार्टियां टिकट देना चाहती है।जिनको कानून और जनता ने नकार दिया है।
( कांतिलाल मांडोत )