धर्म- समाज

जहा परस्पर सहयोग वही संगठन : आचार्य महाश्रमण

सूरत शहर की ओर गतिमान ज्योतिचरण पधारे कड़ोदरा

बारडोली, सूरत : सूरत वासियों की चिरप्रतिक्षित मनोकामना पूर्ण होने में अब मात्र कुछ ही घंटे अवशेष है जब युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी अपनी धवल सेना के साथ सूरत शहर में मंगल प्रवेश करेंगे। सूरत के बाहरी क्षेत्रों में विचरण करते हुए आचार्य श्री गांव गांव में पधार कर जनोद्धार का महनीय कार्य करा रहे है। फिर चाहे मौसम तपते सूरत के गर्मी से भरा हो या तेज बरसात की बोछारें हो। लंबी लंबी पदयात्रा करते हुए तेरापंथ के ग्यारहवें अधिशास्ता सूरत चातुर्मास के लिए अब सूरत शहर की ओर है। कल लिंबायत में आचार्य श्री का शहर प्रवेश भी संभावित है। लगभग तेरह माह पूर्व अक्षय तृतीया हेतु आचार्य श्री सूरत में पधारे अब पुनः चातुर्मास हेतु पदार्पण से सकल समाज में अतिशय उल्लास छाया हुआ है। हर कोई 15 जुलाई की आतुरता से प्रतीक्षा कर रहा है जब भगवान महावीर यूनिवर्सिटी वेसू में चातुर्मास हेतु आचार्य श्री मंगल प्रवेश करेंगे।

इसी क्रम में आज प्रातः आचार्य श्री ने राजविलास फार्म हाउस सायोनी से प्रातः मंगल विहार किया। विहार के साथ साथ ही हल्की वर्षा प्रारंभ हो गई। विहार के दौरान बीच बीच में होती हल्की वर्षा से ऐसा लगा मानो प्रकृति स्वयं युगप्रधान के विहार में अनाबाध रूप से सहायता कर रही हो। आज उधना में चातुर्मास संपन्न कर मुनि उदित कुमार जी, मुनि निकुंज कुमार जी आदि ने सहवर्ती संतों के साथ गुरु दर्शन किए। गुरु शिष्य के मिलन के उस भावपूर्ण दृश्य को देख उपस्थित श्रद्धालु गुरु के वात्सल्य के प्रति श्रद्धानत हो उठे। लगभग 12 किमी विहार कर आचार्यश्री चलथान कड़ोदरा के श्री नारायण मुनि देव नर्सिंग कॉलेज में प्रवास हेतु पधारे।

मंगल धर्म देशना में आचार्य श्री ने कहा– व्यक्ति को आत्मा अकेली होती है। अकेला व्यक्ति जन्म लेता है अकेला ही फिर एक दिन यहां से चला जाता है। व्यक्ति जिस प्रकार के कर्म करता है उसका फल उसे स्वयं ही भोगना पड़ता है। स्वयं के कर्मों का फल स्वयं को ही प्राप्त होता है। जब शरीर में कष्ट होता है तब दूसरा व्यक्ति उसको नहीं बांट सकता। दूसरे सहानुभूति भले दिखाए किंतु वेदना स्वयं को भोगनी पड़ती है। कर्म फल में कोई भी दूसरा सहायता नहीं करता, उसे कोई बांट नहीं सकता। धर्म का फल भी स्वयं उसे ही प्राप्त होता है। पुण्य हो या पाप, कर्मों का भुगतान स्वयं को ही करता पड़ता है। सबके बीच रहते हुए भी व्यक्ति अकेला है। यह निश्चय की दृष्टि से कहा जा सकता है। वहीं अनेकांत के दूसरे व्यवहार दृष्टि से व्यक्ति एक से अधिक भी है। संघ है, संगठन है, राष्ट्र है वहां सब एक साथ है। जहा सहायता की बात आती है दूसरे सहायता भी करते है यह व्यवहारिक जगत की बात है।

एक कथा के माध्यम से गुरुदेव ने आगे कहा कि एक छोटी चींटी भी निरंतर चलते चकते कितनी दूरी तक पहुंच जाती है। व्यक्ति पुरुषार्थ करे तो स्वयं कहा से कहा पहुंच सकता है। यह आत्मा की दृष्टि से चिंतन होना चाहिए। वही कहा गया कि “परस्परोपग्रहो जीवानाम” जीवों का परस्पर सहयोग होता है। तकलीफ में एक दूसरे के मददगार बनो। यह सहयोग की भावना ही संघ है, समाज है। जहां एक दूसरे का सहयोग की भावना नहीं वहां फिर कोई समाज, संगठन नहीं टिकता। सामाजिक दृष्टि से असहाय की सहायता भी की जाती है। अपेक्षानुसार आध्यात्मिक सहायता करनी भी चाहिए।

इस अवसर पर विशेष रूप से उपस्थित स्वामीनारायण संप्रदाय के केपी शास्त्री स्वामी जी ने अपने भावोद्गार व्यक्त किए।

स्वागत के क्रम में तेरापंथ सभा से  संजय बाफना,  दीपक खाब्या,  राकेश चपलोत आदि ने भावाभिव्यक्ति दी।
चलथान महिला मंडल, भिक्षु भजन मंडली चलथान, कन्या मंडल, ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने पृथक पृथक गीत एवं परिसंवाद द्वारा प्रस्तुति दी।

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