अक्षय तृतीया संसार मे तप की महिमा का प्रवर्तक
(कांतिलाल मांडोत) भारत वर्ष पर्वो का देश है। यहां की संस्कृति पर्व प्रधान है। इसलिए कहा जाता है कि सात वार तेरह त्योहार। सप्ताह के सात वार होते है ,परन्तु उनमें त्योहार तेरह आ जाते है। त्योहार और पर्व मनाना मनुष्य की उत्सवप्रियता का प्रतीक है। मनुष्य का मन सदा नवीनता देखता है, परिवर्तन चाहता है। सुबह को भोजन किया,वही शाम को मिले तो हम कहेंगे यह क्या? बार बार एक ही तरह का भोजन! रोज रोज वही कपड़े। मनुष्य का मन हर समय परिवर्तन चाहता है। नया खाना,नया पहनना,नये लोगो से मिलना और नई नई बाते करना।
कुछ त्योहार बरसाती नदी के प्रवाह जैसे होते है। आते है तो खुशियां, उल्लास और उमंग लेकर आते है परंतु जाते जाते सुस्ती,उदासी आलस्य छोड़ जाते है। जैसे होली,दशहरा, दीवाली और कुछ त्योहार ऐसे है जिनके साथ एक प्रेरणा, एक भावना और आंतरिक उल्लास की ज्योति आती है। खाने पीने के बजाय उनमे त्याग ,दान ,तप और आदान प्रदान की प्रेरणा मिलती है। पर्युषण,संवत्सरी आदि आध्यात्मिक उल्लास जगाने वाले पर्व है।
आज अक्षय तृतीया है।अक्षय तृतीया का त्योहार एक ऐसा ही त्योहार है। पर्युषण पर्व संवत्सरी की तरफ इस पर्व के साथ खाने पीने,नये वस्त्र पहनने का संबंध नही होकर दान और पुण्य की भावना जुड़ी हुई है। इसलिए यह एक आध्यात्मिक भावना या संस्कार जगाने वाला पर्व है। यह सांस्कृतिक त्योहार भी है। पर्व का नाम आखातीज क्यों पड़ा? भारतीय ज्योतिष के हिसाब से तिथियां चंद्रमा और नक्षत्रो की गति के अनुसार बनती है। इसलिए जैसे चंद्रमा की कला घटती है वैसे तिथिया भी घटती बढ़ती है। किन्तु आखातीज की तिथि आज दिन तक कभी नही घटी। यह तिथि कभी क्षय नही होती।
ज्योतिष के अनुसार भी वैशाख सुदी 3 की तिथि हजारो वर्ष में आज दिन तक क्षय तिथि नही बनी। यह आश्चर्य इसके साथ जुड़ा है। साथ ही इस तिथि की विशेषता भी है। इस कारण ज्योतिष के अनुसार इसे अक्षय तिथि कहा गया है। भारत के गांवो में आज भी विश्वास है कि अक्षय तृतीया का दिन बिना पूछा मुहूर्त है। न पंडित को पूछने की जरूरत है और न ही नक्षत्र व योग देखने की जरुरत है। आज के दिन जो काम किया जाता है। वह शुभ व चिरस्थायी होता है। अक्षय होता है। इसलिए गृह प्रवेश ,विवाह ,व्यापार आदि का शुभ आरम्भ आज के दिन खूब होता है।
वैदिक परम्परा में अक्षय तृतीया के साथ कोई अति महत्वपूर्ण पौराणिक या ऐतिहासिक घटना जुड़ी हो ऐसा कही पढऩे में नही आया ,किन्तु जैन परम्परा में अक्षय तृतीया के साथ एक अत्यंत आदर्श प्रेरणादायी घटना जुड़ी है। इस कारण इस तिथि का हमारे जैन धर्म मे अधिक ही महत्व है और वह है आदिनाथ का पारणा। एक वर्ष के उग्र तप का आज के ही दिन श्रेयांसकुमार ने रस का दान देकर भगवान को पारणा कराया इसलिए इस तिथि को अक्षय पूर्ण प्रदान करने वाली तिथि कहा जाता है। इस तिथि पर कवि और गीतकारों ने अनेक गीत बनाये है। चोरियां आ गई आखातीज कुंवारी कोई मत रिहज्यो जैसे स्थानीय भाषा के अनेक गीत आखातीज पर बनाए गए है।
प्राचीन साहित्य का अनुशीलन करने पर पता चलता है कि अक्षय तृयीया के साथ दो महत्वपूर्ण तथ्य जुड़े हुए है। पहला है भगवान ऋषभदेव का वर्षीतप और दूसरा श्रेयांसकुमार का दान,इस प्रकार तप और दान की दो अत्यंत गौरवपूर्ण इस तिथि से जुड़ी है। जैन धर्म मे मोक्ष प्राप्ति के चार उपाय बताए गए है। जैन धर्म मे वर्षीतपका बहुत महत्व है।
गोगुंदा सेमटाल गुरु पुष्कर धाम और उमरना गौ शाला स्थित उपाश्रय में हर वर्ष आज के ही दिन वर्षीतप का पारणा महोत्सव का आयोजन होता है,लेकिन कोरोना की महामारी ने लोगों को मजबूर कर दिया है। पूरे भारत वर्ष में आखातीज का पारणा महोत्सव का आयोजन होता है। आज के दिन दान धर्म की प्रवृति हुई है। इसलिए यह तृतीया बन गई है।
इस प्रकार अक्षय तृतीया का यह पर्व संसार मे तप की महिमा का प्रवर्तक होने के साथ दान परम्परा का प्रवाह प्रवर्तित करने वाला है। तप और दान की आराधना करने की प्रेरणा देने के कारण ही यह तृतीया अक्षय तृतीया बनी है। तप और दान की आराधना करने वाला अक्षय पद प्राप्त कर सकेगा। यही इस पर्व का संदेश है।