धर्म- समाज

देश के लाखों युवाओ को अपने विचारों से प्रेरित करने वाले सच्चे देशभक्त नेताजी सुभाषचंद्र बोस

सुभाषचंद बोस का जन्म भारत की क्षितिज के चमकते सितारे की तरह आज भी विश्व मे देदीप्यमान हो रहा है।जिन्होंने देश की आजादी और देश के लिए पूरा जीवन समर्पित कर दिया।भारत का राष्ट्रीय नारा तुम मुझे खून दो मै तुम्हे आजादी दूंगा उस दौर में घर घर प्रचलित हुआ।

आज सुभाषचंद्र बोस का नाम सुवर्ण अक्षरों में अंकित है।भारत 23 जनवरी 2021 को भारत की आजादी का महोत्सव मना रहा है।23 जनवरी 1897कटक बंगाल का ओडिसा डिवीजन में जन्मे सुभाषचंद बोस भारतीय स्वतंत्रता सेनानी के अग्रणी नेताजी को आज भी दुनिया भूल नही पाई है।

भारतीय कांग्रेस पार्टी से 1921 में राजनीतिक करियर शुरू करने वाले नेताजी ने 1940 तक पार्टी के साथ रहे और 1939 से 1940 तक फॉरवर्ड ब्लॉक की स्थापना के साथ भी सेवाएं दी। आजादी की लड़ाई लड़ने वाले सुभाषचंद्र बोस अकेले ऐसे राष्ट्रवादी और क्रांतिकारी थे,जिनका पूरा जीवन देश के लिए समर्पित कर दिया ।

21 अक्टूबर 1943 को भारत की स्वतंत्रता के लिए आजाद हिंद फौज के सेनापति के रूप में स्वतंत्र भारत की वैकल्पिक सरकार बनाई।सुभाषचंद्र बोस ने देश के युवाओ को अपने विचारो से लाखों को प्रेरित किया।उनकी देशभक्ति और अटूट प्रेम देश याद करता है।

देश के लिए सबकुछ न्योछावर करने वाले नेताजी कहते थे कि अहिंसा के मार्ग पर चलकर आजादी मिलना बहुत कठिन कार्य है।महात्मा गांधी के साथ उनके विचार नही मिलते थे।उनके उग्र और तेज तर्रार स्वभाव के कारण देश के लाखों युवाओं ने नेताजी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चले।

नेताजी सुभाषचंद्र बोस स्वामी विवेकानंद के स्वभाव के मुरीद थे।उनके विचार और देशभक्ति विरासत में मिली हुई थी।माता प्रभाती देवी और पिता जानकीदास बोस के घर जन्मे सुभाषचंद बोस भारत के आंख के तारे है।उनकी कीर्ति और देश के प्रति समर्पण की भावना आज के परिपेक्ष्य में परिलक्षित होती है।

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से अपने जीवन की शुरुआत करने वाले नेताजी को 1943 में राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए।उनका मानना था कि जबतक देशवासी एकजुट नही होते है और अंग्रेजो का विरोध नही करते है तब तक अंग्रेज जाने वाले नही है।देश और देशवासियों से अपार प्रेम करने वाले नेताजी को अंग्रेजो से घृणा और तिरस्कार की भावना कूट कूट कर भरी हुई थी।वे यह समझते थे कि भारत मे व्यापार करने आए अंग्रेजो ने देशवासियों को गुलाम बना दिया ।

आतताईयों ने अत्याचार करना शुरू कर दिया।नेताजी ने जिस तरह अंग्रेजो का मुकाबला किया उनके जैसा साहसी और निडर व्यक्तित्व सदी में एकबार जन्म लेता है।भारत के इस सपूत ने आजादी की इस संघर्ष भरी तकलीफों को सहर्ष स्वीकार किया।गुमनाम बाबा को ही देश के प्रबुद्ध ज्ञानी नेताजी सुभाषचंद्र बोस मानते थे।अंग्रेजी हुकूमत ने नेताजी को देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किए गए थे।उंन्होने जेल में गिरफ्तारी के खिलाफ भूख हड़ताल शुरू कर दी।नेताजी खुलकर अपनी बात रखने में विश्वास करते थे।

नेताजी भेस बदलकर भागने में सफल हुए।वे भारत को दुनिया की पहचान दिलाना चाहते थे।सच्चाई, कर्तव्य और बलिदान हमेशा संजोए रखा।उनका मानना था कि राष्टवाद मानवजाति के उच्च आदर्श है।एक सच्चे सैनिक को सैन्य और अध्यायात्मिक दोनों को प्रशिक्षण की जरूरत होती है।पूर्वी एशिया और जर्मनी में सेना बनाकर आजाद हिंद फौज का नाम देने वाले नेताजी के ब्रिटिश फ़ौज से दूर रहकर गुमनाम जीवन यापन करने वाले सुभाष बाबू का आज दिन तक कोई सुराग नही मिल पाया।

देश के लिए जिये और देश के खातिर अपने परिवार को अलविदा कहने वाले त्याग की मूर्त्ति जन जन का आधार नेताजी करोडो भारतीय के दिलो में आज भी राज कर रहे है। 18 अगस्त को ताइवान में विमान दुर्घटना में नेताजी की मृत्यु हो गई।क्योकि विमान में जलने के बाद कोमा में चले गए थे।उसके बाद कभी उठ नही पाए।वे हमेशा केलिए चिरनिद्रा में सो गए। जय हिंद।


*कांतिलाल मांडोत*

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