धर्म- समाज

हमारा भोजन संतुलित होना जरूरी : मनितप्रभजी म.सा.

पेट में गया पदार्थ लोभी, हिंसक, बीमार, अधार्मिक, पापी और दुगुर्णी बनाता है

सूरत। भारत की प्राचीन व्यापारिक नगरी, डायमण्ड सिटी, सिल्क सिटी के रूप में विख्यात सूरत शहर वर्तमान में आध्यात्मिक नगरी बनी हुई है। तापी नदी के तट पर स्थित सूरत में आध्यात्मिकता की अलख जगा रहे हैं श्री कुशल कांति खरतरगच्छ भवन में युग दिवाकर खरतरगच्छाधिपति आचार्य श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी म.सा। उनके दर्शन तथा उनकी अमृतवाणी का श्रवण करने के लिए देश के कोने कोने से श्रद्धालुओं के पहुंचने का क्रम निरंतर जारी है। पाल संघ की ओर से की गई विशाल और भव्य चातुर्मासिक व्यवस्थाएं बाहर से आने वाले श्रद्धालुओं को आह्लादित करती हैं।

शहर के पाल में श्री कुशल कांति खरतरगच्छ जैन श्री संघ पाल स्थित श्री कुशल कांति खरतरगच्छ भवन में मनितप्रभजी म.सा. ने सोमवार 30 सितंबर को प्रवचन में कहा कि जो पल को जानता है, वह पंडित होता है। भगवान की देशना सागर विस्तृत है। उत्तराध्यन सूत्र सामान्य सूत्र नहीं है, इसके लिए हमें जन्म जन्म की तैयारी करनी पड़ती है। उत्तराध्ययन के छठे अध्ययन में तीसरी गाथा के बारे में बताया कि माया का अर्थ माता, पिया का अर्थ पिता है।

स्वास्थ्य को लेकर कहा कि जो पेट का साथी नहीं है, वह किसी का भी साथी नहीं है। पेट में गया पदार्थ लोभी, हिंसक, बीमार, अधार्मिक, पापी और दुगुर्णी बनाता है। उद्धारता में विवेक जरूरी है। सरस्वति में हमें अच्छा नहीं लगता लेकिन रसवती में हमें रूचि है। हमारा भोजन संतुलित होना चाहिए। पेट का संतुलित होगा, तो मन संतुलित और मन संतुलित हो तो सरस्वति मेहरबान होती है। संघ में 850 से ज्यादा विभिन्न प्रकार की तपश्चर्या हो चुकी है। आज 51 उपास की आराधना के तपस्वी जीतेंद्र दुग्गड ने आचार्य श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी से पच्चखान लिया।

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