लोकतांत्रिक समाज में खतरे में पत्रकार
लोकतांत्रिक समाज में पत्रकारिता को चौथा खंभा माना गया है। बिना किसी खास संवैधानिक अधिकारों और भारत जैसे देशों में सतत आर्थिक सुरक्षा के बावजूद अगर सच की आंख से किसी घटना को देखना संभव है तो उसका बड़ा भरोसेमंद जरिया पत्रकारिता ही है। इस लिहाज से देखे तो पत्रकारों को समाज का सरंक्षण हासिल होना चाहिए।लेकिन हकीकत ठीक उलट है। अब भारत भी पत्रकारिता के लिहाज से दुनिया के सबसे खतरनाक दस देशो में शुमार है। 2016 में दुनिया भर में पत्रकारिता का दायित्व निभाते हुए 57 पत्रकारों को अपनी जान की कीमत चुकानी पड़ी थी। हर वर्ष पत्रकारों पर हमले होते है। भारत मे भी अपने काम के दौरान जान गंवानी पड़ती है।
उत्तरप्रदेश कानपुर में ककवन रोड स्थित अर्पित गेस्ट हाउस में रात वेटरों से गर्म खाना मांगने को लेकर दूल्हे चचेरे भाई रावतपुर के गणेशनर निवासी स्वतंत्र कुशवाहा उर्फ मुनि ( 41) विवाद हो गया।आरोप है कि गुस्साए वेटरों ने उनकी कलछुल और लाठी डंडों से पिटाई कर दी। मारपीट से सिर में गंभीर चोट लगने से उनकी मौके पर ही मौत हो गई। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में सिर की आधा दर्जन हड्डियां टूटी मिली। शादी समारोह में पत्रकार पर जानलेवा हमला निंदनीय है। महाराष्ट्र के राजापुर के पत्रकार शशिकांत वरिशे पर दिन दहाड़े गाड़ी चढ़ाकर निर्मम हत्या कर दी गई।
इस पूरे घटना को एक दुर्घटना के रूप में पेश करने की कोशिश की गई। लेकिन खुलासा हुआ कि यह एक हत्या थी। महाराष्ट्र शिंदे सरकार से मांग की है कि पत्रकार वारिशे की हत्या करने वालो को कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए। राजस्थान के जोधपुर भोपालगंज के पत्रकार एस पी देवड़ा पर कातिलाना हमला किया। प्रेस क्लब ने हमले की निंदा की है। पुलिस की निष्क्रियता और बार बार धमकाए जाने के खिलाफ आलाधिकारियों को ज्ञापन देकर न्याय की मांग की है।
भारत में 1997 से लेकर 2020 तक 74 पत्रकारों की हत्या हुई है। वही भारत मे 2014 से 2020 के बीच 27 पत्रकार मारे गए। 2009 से 2013 तक 22 पत्रकारों की हत्या हुई है।जबकि 2019 में एक भी पत्रकार की हत्या नही हुई है। पत्थर की काली कमाई करने वाले माफिया के अवैध खनन और क्रेशर चलाने के खिलाफ लगातार खबरे लिखने वाले पत्रकारों पर हमले होते है। राजस्थान में ताजा घटना में पुलिस अधिकारियों को ट्रेक्टर के नीचे कुचलकर हत्या कर दी गई।
जिला मुख्यालयों से लेकर छोटे इलाको से स्थानीय पुलिस, प्रशासन, अपराधी और ठेकेदारों से पत्रकारो की प्रताड़ना की खबरे आती रहती है। भारत में पत्रकारों पर बढ़ते खतरों को लेकर परिपाटी टूट गई है।पहले ये यह काम पत्रकारो के संग़ठन करते थे। लेकिन ठेकेदारी की प्रथा के विकसित होने के बाद पत्रकारिता की दुनिया मे यूनियन नाम मात्र की ही रह गई है। पत्रकारो के व्यापक हितों के लिए संघर्ष यूनियनों की प्रतिबद्धता सूची में निचले पायदान पर चला गया है। पत्रकारो को लेकर स्वस्थ अध्ययन का काम भी यूनियने ही कर सकती है।लेकिन उससे भी दूर दूर तक नाता नही है।
अध्ययन को चलताऊ ठंग
यह विडंबना नही तो क्या है कि दुनिया में सबसे बड़े लोकतंत्र में जम्हूरियत के चौथे स्तंभ को लेकर इस तरह का चलताऊ रवैया अपनाया जा रहा है। कमिटी टू जर्नलिस्ट्स की रिपोर्ट के अनुसार भारत मे पत्रकारों पर हमले करने वाले 96 प्रतिशत अपराधियों को कोई सजा ही नही हुई है। जबकि इन मामलों में थोड़ा बहुत न्याय हुआ है। जिनकी पत्रकारिता में सामाजिकता होती है।अपना पराया भेद नही रखने वाले विरले ही होते है। सवाल करना किसी भी पत्रकार का औजार होता है। कितने को अच्छा नही लगता है। खोजी पत्रकार सत्ता प्रतिष्ठान को जानने वाले और उसकी बखिया उधेड़ने वाले पत्रकार की आक्रामकता को इन भ्रष्टाचारियो को ठीक नही लगता है।इसलिए पत्रकरो पर जान लेवा हमले करवाते है।
पत्रकार भी समाज से जुड़ा होता है। समाज और राजनीतिक फील्ड से जो कुछ हासिल होता है,वह समाज को देता है। पत्रकार सौम्यता सहज आकर्षित करती है। पत्रकार का ध्यान से सुनने के बाद मंथन करके ही खबरे प्रकाशित करता है।अच्छी साफ सुथरी लिखाई,अच्छे साफ सुथरे विचार से ही आती है।क्योंकि हमारे विचार भाषा मे उभरते है।विचारो को ठीक करने का माध्यम ही भी भाषा ही है। सत्य के प्रति अनुपम आग्रह भरना चाहिए।
बाजारीकरण के इस युग मे पत्रकारिता पर जिस खतरे की बात की जा रही है।यह खतरा पहले भी था और आज भी वर्तमान समय मे भी मौजूद है। लेकिन उस दौर में पत्रकार की सामाजिक प्रतिष्ठा मिलती थी। इस समय शोशल मीडिया से पत्रकार को सम्मान दिया जाना चाहिए, उतना नही मिलता है। पत्रकार की सुरक्षा सरंक्षण कानून बनाया जाए।देश मे जिस प्रकार पत्रकारों पर हमले हो रहे है। उसके लिए सरकार पत्रकरो को न्याय दिलाने कानून बनाया जाए। पत्रकारों के परिजनों की सुरक्षा एवं उनके बाद उनके परिवार को हर संभव मदद करने का कानून प्रवधान दिया जाना चाहिए। राजस्थान सरकार को संगठन के माध्यम पत्रकारों की सुरक्षा की गेरंटी पर विचार किया जा रहा है।
राष्टीय कानून के तहत पत्रकारों को सुरक्षित रखने की बात की जानी चाहिए। समय समय पर नेताओ का चरित्र को नजदीक से देखने को मिलता है। इस दौरान शासन प्रशासन का दबाव भी झेलना पड़ता है। लालच भी दिए जाते है। लेकिन दबाव में लालच को भी दरकिनार करते हुए,सच्चा पत्रकार कभी भी असूलों से समझौता नही करता है। उनके दिमाग मे संविधान बचता है। न्याय दिलाने और गरीबो वंचितों के हितों के लिए पत्रकारिता करने वाले अपने जीवन लक्ष्य पत्रकारिता को लोकतंत्रगामी और लोकतंत्र को उन्नत बनाने का रखते है।
आज हर क्षेत्र में बाजारीकरण और व्यवसायीकरण ने प्रभावित किया है। सदियों से व्यक्ति,विचार,साधन और पूंजी में वर्चस्व की जंग चल रही है। पत्रकारिता में आने के समय हम लोगो का लक्ष्य पैसा कमाना नही बल्कि पत्रकारिता के माध्यम से लोकतंत्र को मजबूत करना था। हमे मजबूत संकल्प शक्ति और धेय्य की स्पष्टता थी। और आज प्रयोग सफल हो रहा है। देश के लिए जिये,देश को मजबूत बनाने के लिए निष्पक्ष पत्रकारिता समय की मांग है। हथियार जब सिपाही के हाथ मे होता है तो वह सुरक्षा के लिए उपयोग होता है। किसी डाकू के हाथ मे जब हथियार आ जाता है तो वह सुरक्षा को खतरा बन जाता है। हथियार नही हाथों का ही महत्व है।
( कांतिलाल मांडोत )