जीवन सुविधाओं के लिए नहीं साधना के लिए है : आचार्य श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी
समाज को बाहर से डर कभी नहीं होता, भीतर वालों से ही डर ज्यादा
सूरत। शहर के पाल में श्री कुशल कांति खरतरगच्छ जैन श्री संघ पाल स्थित श्री कुशल कांति खरतरगच्छ भवन में युग दिवाकर खरतरगच्छाधिपति आचार्य श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी म. सा. ने आज बुधवार 21 अगस्त को प्रवचन में कहा कि परमात्मा ने देशना दी केवल अपने अंतर के करूणा के लिए। अंतर में सागर बहा वह उनकी करूणा थी।
उन्होंने कहा कि मनुष्य को इन बातों का ध्यान रखना चाहिए। पहला कदम विनय का, दूसरा कदम आत्म परिक्षा का और तीसरा कदम तुम अपनी दुर्लभता का समझो, अपने गौरव को समझो। धन्य है उन तपस्वियों को जिन्होंने सारे उपद्रव्यों को जीतकर तपश्चर्या की। बाहर के उपद्रव्यों को जीतना आसान है, लेकिन भीतर के उपद्रव्यों को जीतना बड़ा मुश्किल काम है।
उन्होंने कहा कि हमारे लिए चार रास्ते खुले है, नरक, तीरजगति, मनुष्य, देवगति। मकान बनाते समय हम सोचते है, लेकिन यहा से कहां जाएंगे इसके बारे में नहीं सोचते। जाना तो सबको पड़ेंगा। इसकी तैयारी करने का नाम ही उत्तराध्ययन सूत्र है। सुविधाओं के लिए जीवन नहीं है, यह जीवन साधना के लिए है। यह जीवन प्रगति के लिए है। अपने विचारों की दिशा ही तय करेंगे कि आपको अगले भव में कहां जाना है।
कभी कभी लगता है धर्म भी निमित्तवासी हो गया है, बल्कि धर्म सदा का है। उन्होंने कहा कि शुभ कार्य करते समय कभी भी भूलकर भी अशुभ विचार नहीं करना चाहिए। और दूसरों की बातों में भी नहीं आना चाहिए। हमेशा अपने उल्लास को बनाए रखना चाहिए। समाज पर बोलते हुए कहा कि समाज को बाहर से डर कभी नहीं होता, भीतर वालों से ही डर ज्यादा होता है।
50 तपस्वियों का वरघोड़ा रविवार को
गुरूवार को सिद्धितप और गणधर तप बैसना है। 50 तपस्वियों का वरघोड़ा रविवार 25 अगस्त को निकलेगा, जिसमें एक मुमुक्षु का भी वरघोडा निकलेगा। और जो मुमुक्षु यहां आ रहा है दीक्षा का शुभ मुहुर्त लेने वह भी रथ में दादा गुरूदेव के चित्र को लेकर विराजमान रहेंगे। वरघोड़े की अनुठी शोभा होगी।