
“माँ, बहू और शोधार्थी कल्पना पवार ने हर भूमिका को संजोते हुए हासिल की पीएचडी की उपाधि”
"छोटे बच्चे की परवरिश के साथ पीएचडी पूरी की , कल्पना पवार की कहानी हर महिला के लिए एक प्रेरणा"
सूरत: “बेटी को गोद में लेकर जब रिसर्च पेपर पढ़ती थी, तो लगता था जैसे दो जिंदगियों को एक साथ आगे बढ़ा रही हूँ…” वीर नर्मद दक्षिण गुजरात विश्वविद्यालय के 56वें दीक्षांत समारोह में जब कल्पना पवार को पीएचडी की उपाधि प्रदान की गई, तब उनकी आंखों में केवल खुशी ही नहीं, बल्कि संघर्षों की वो चमक भी साफ झलक रही थी जो उन्होंने इस मुकाम तक पहुँचने के लिए झेली थी।
मूल रूप से महाराष्ट्र के डांग जिले से ताल्लुक रखने वाली कल्पना पवार की यह यात्रा साधारण नहीं रही। विवाह के बाद वे सूरत आ गईं, और यहीं से उन्होंने रूरल स्टडीज में अपनी पीएचडी पूरी की। राष्ट्रीय फेलोशिप मिलने के बाद उनके भीतर शोध के प्रति आत्मविश्वास और प्रेरणा जागी, और उन्होंने इसे अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया।
यह राह आसान नहीं थी। जब उन्होंने अपनी पीएचडी की शुरुआत की, तब उनकी बेटी महज कुछ महीनों की थी। एक तरफ माँ की ज़िम्मेदारियाँ और दूसरी तरफ रिसर्च—इन दोनों के बीच संतुलन बना पाना बेहद चुनौतीपूर्ण था।
कल्पना जी बताती हैं की “सूरत जैसे बड़े शहर में जहाँ एक ही व्यक्ति की आमदनी से घर चलाना मुश्किल होता है, वहाँ मैंने अपने पति का आर्थिक रूप से साथ देने के लिए भी खुद को सक्रिय रखा। हालांकि यह सफर कठिन था, लेकिन उन्हें परिवार का भरपूर सहयोग मिला—खासकर उनकी सासू माँ का। “मेरी सासू माँ ने कभी मेरे लिए कोई रुकावट नहीं खड़ी की। उन्होंने हमेशा यही चाहा कि मैं माँ होने के साथ-साथ अपनी पढ़ाई भी पूरी करूं।
कल्पना पवार का कहना है कि विश्वविद्यालय के फैकल्टी और स्टाफ ने भी उनकी इस जर्नी को आसान बनाने में मदद की। मास्टर्स इन रूरल स्टडीज भी उन्होंने यहीं से किया था, और जब उन्होंने पीएचडी की इच्छा जाहिर की, तो उन्हें एक विशेष कमरा आवंटित किया गया—जहाँ वे अपनी बेटी की देखभाल के साथ-साथ रिसर्च कार्य भी कर सकें।
इस पूरी यात्रा के अंत में कल्पना पवार एक सशक्त संदेश देते हुए कहती है कि “उतार-चढ़ाव तो जीवन का हिस्सा हैं। संघर्षों से घबराने के बजाय उन्हें स्वीकार करना और धैर्य से सामना करना ज़रूरी है। यदि मन शांत हो और इरादा मजबूत हो, तो कोई भी मुश्किल रास्ता आसान बन सकता है।”