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दीपक जलाना होगा!

रात काली है। हर तरफ अँधेरा है। उजाले की जरूरत है। सूरज को निकलने में बहुत समय लगेगा। बिना रोशनी के न तो रास्ता दिखता है और न ही मंजिल तक पहुँचने का हौसला ही मिल पाता है ।

फिलहाल तो मौसम इतना खराब है कि रात की कालिमा को दीपक जलाकर थोड़ी देर के लिए ही रोका जा सकता है। यों दीपक जलाना भी आसान नहीं होता। जब अँधेरे साजिश करते हैं तो रोशनी को रोकने के लिए वे किसी भी हद तक जा सकते हैं । कुछ भी कर सकते हैं। किसी का भी साथ ले सकते हैं । अंधेरों की आँधियों से दोस्ती है । जब भी तूफ़ान आते हैं अपने साथ अंधेरे लाते हैं। हालाँकि अँधेरी काली रात अकेली ही आती है पर जब चाहे तब अँधेरे को दूर करने लिए दीपक जलाने वालों के प्रयासों पर पानी फेर सकती है।

वैसे सच्ची बात ये है कि दीपक का धर्म है रोशनी लुटाना। कोई दीपक कभी ये नहीं देखता कि वह किसके लिए रोशनी लुटा रहा है। वह जहाँ रखकर जला दिया जाता है वहीं रोशनी बिखेरने लगता है। किसी शायर ने कहा है- ” जहाँ रहेगा वहीं रोशनी लुटायेगा, किसी दिए का अपना मकाँ नहीं होता।” दीपक को जलाना मुश्किल काम होता है।

ऐसे समय में ये और ज्यादा मुश्किल हो जाता है जब मुश्किलों के अंधड़ उड़ रहे हों। ऐसे में अगर कोई दीपक लौ पकड़कर जल भी जाता है तो उसका प्रयास थोड़ी देर का ही होता है। उसकी किस्मत में तेज आँधी से बुझ जाना होता है। कोई दीपक भला कितनी देर तक आंधी के थपेड़े खाता हुआ टिमटिमा कर रोशनी लुटा सकता है। दीपक का हौसला तो जलने में भी दिखता है। वह खुद जलता है और दूसरों को रोशनी देता है।

दीपक जलाना बहुत जरूरी है। जितने ज्यादा घने अँधेरे होते हैं उसमें उतने ही ज्यादा दीपकों को जलाने की जरूरत पड़ती है। एक दीपक टिमटिमा कर कितनी रोशनी करेगा। दीपक की पंक्तियाँ लगानी चाहिए। इतनी सारी पंक्तियाँ कि कालिमा का पता ही ना चले। दीपक की रोशनी ही चांदनी का काम करे। दीपक ही दीपस्तंभ बनकर रास्ता दिखाने के लिये आगे आए।

हम दूसरों का इंतज़ार नहीं कर सकते। रात का अंधकार लगातार अपनी काली छाया का प्रसार कर रहा है। यह प्रसार बढ़ता ही जाएगा। अंधकार तो पूरी रोशनी को लील जाना चाहता है। अंधकार को तो सिर्फ कालिमा ही पसंद है। दूधिया सफेदी के लिए या तो दीपक जलाने पड़ते हैं या फिर दूधिया चांदनी से दोस्ती करनी पड़ती है। चांदनी की अपनी मजबूरी है ।

चांदनी कुछ समय के लिए तो कदम से कदम मिलाकर चल सकती है पर एक नियत काल के बाद वह अपना रास्ता बदल लेती है। एक खास बात ये है कि चांदनी जिस-जिस रास्ते से भी होकर गुजरती है वह उस रास्ते पर अपने पीछे काली घनी छाया छोड़ जाती है।

इनदिनों हर जगह अँधेरे हैं। अजब से तूफ़ान हैं। हर कहीं निराशा है। हर कहीं टूटन है। हर कहीं बिखरन है। हर कहीं अलगाव है। हर कहीं विवशता है। हर कहीं अकेलापन है। हर कहीं तड़पन है। हर कहीं दर्द है। हर कहीं दर्द का एहसास उस हद को पार करने में लगा है जहाँ पहुँच कर दर्द का एहसास ही नहीं रहता। हर निराशा को दूर करने के लिए आशा का एक दीपक जलाना बहुत जरूरी है। नफरतों के अंधेरों को प्यार के दीपक ही उजालों में बदल सकते हैं ।

रात का नियम है कि उसे काली होना ही है। आंधी का काम है कि कोई दीपक जलाने का प्रयास करे तो उसे बुझा दो। वो अपना कर्म निरंतर करती रहती है। जलते हुए दीपक को बुझा देती है। दीपक के बुझते ही अमावस की रात का कालापन और ज्यादा घना हो जाता है। निराशा का झंझावात खड़ा होकर गाने लगता है- “मैं जीवन कुछ कर ना सका।” वह भूल जाता है कि दीपक जलाना, वह भी अंधेरों के खिलाफ, किसी अग्निपथ पर चलने से कम नहीं है। वह शपथ नहीं करता। वह लथपथ होकर पसीना नहीं बहाता, वह हौसला नहीं तानता इस लिए टूट जाता है। टूटा हुआ राग, कुछ कर न सका का विलाप बनकर उभर आता है।

माना कि विलाप करने वालों की कमी नहीं पर इन्हीं विलाप करने वालों में मुट्ठियाँ भी शामिल हैं जो अंधेरों के खिलाफ मशाल बनकर जगरमगर कर सकती हैं। इन्हीं मुट्ठियों में से मसीहा निकल सकता है। मसीहा जो अंधेरों के खिलाफ जंग में विजय का रास्ता दिखा सके। बस कभी न थकने और कभी न टूटने का विश्वास मन में जगाकर खुद को गलाना होगा। माना कि हर तरफ अंधकार है पर दीपक जलाना कब मना है? हमें पता है कि दीपों की पंक्तियाँ बना लेंगे तो अँधेरे अपने आप दम तोड़ देंगे।

हमें लड़ना होगा साथी! इन अंधेरों के खिलाफ। हो सकता है कि इसके लिए हमें खुद को तेल और घी की जगह जलाना पड़े। हो सकता है खुद ही दीपक की लौ बन जाना पड़े। जो भी हो, जो कुछ भी करना पड़े पर अंधेरों की खिलाफत जरूरी है। सूरज उगेगा तो उजाला फैलेगा के इंतज़ार में रात का साम्राज्य कायम नहीं रहने दिया जा सकता।

आओ साथी! इस दिवाली में ऐसी ज्योति जलाएं कि पीढियां भी उन उजालों में भविष्य की सीढियां चढ़ सकें। अंधकार को दूर करना है तो दीपावली के बहाने ही सही दीपक तो जलाना ही होगा।

– डॉ. वागीश सारस्वत

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