भारत

गणतंत्र दिवस : राष्ट्रीय पर्व नव ऊर्जा संचित कर देते है राष्ट्र कल्याण की प्रेरणा

आज गणतंत्र दिवस है। 26 जनवरी संविधान लागू हुआ था।इसलिए आज का दिन आनन्द उल्लास का दिन है। भारत लोकतांत्रिक देश है आज सर्वत्र तंत्र को गणतंत्र का अधिकार दिया गया।स्वतंत्रता सेनानियों ने हमारे लिए बहुत कुछ किया है। आज इसे राष्ट्रीय उत्सव के रूप में मना रहे है।आज समवेत स्वरों में राष्ट्रगान गाया जा रहा है। संविधान हमने बना लिए। आजादी का उल्लास लोगो के रोम रोम में फूट रहा था।यह गणतंत्र दिवस राष्ट्रीय पर्व हमे नव ऊर्जा संचित कर राष्ट्र कल्याण की प्रेरणा देता है।

देश में तिरंगा फहराकर भव्य समारोह आयोजित कर हम अपने कर्तव्य को इतिश्री समझ लेते है। यह उचित नही है। राष्ट्रीय पर्व को बीते समय मे की गई प्रगति के आधार पर मूल्यांकन दिवस के रूप में मनाया जाना चाहिए।ऐसे दिवस खुले मस्तिष्क और ठंडे दिल से यह सोचने को बाध्य करते है कि हमने सामाजिक,आर्थिक,राजनैतिक व आत्मिक उत्थान के साथ साथ एकता, अखण्डता के लिए क्या प्रयास किया और क्या करना शेष है।

आज हम स्मरण करते है देश के उन नौनिहालों का,जिन्होंने मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए हंसते हंसते स्वयं का बलिदान कर दिया। इसी दिन के लिए कई माताओं के सपूत बहनों के भाई फांसी के झूलों पर झूम गये।उन अनगिनत वीरों ने अंग्रेजो की गोलियां को पीठ पर ही नही बल्कि अपने सीनों पर झेला था। कितने क्रूर थे अंग्रेज,जिन्होंने जलिया वाले बाग में निहत्थो पर गोलियां चलाई दानवता का नंगा प्रदर्शन किया था। अमृतसर की धरती अपने सपूतों के लहू से लाल हो गई। सचमुच इंसानियत उस दिन फुट फुट कर रोई थी। क्या उस क्रूरता से आजादी के तराने मौन हो गये? आजादी के दीवाने शांत हो गए? नही,बल्कि आग और अधिक भड़की। उनके पास बंदूकें और गोलियां थी तो हमारे पास देश प्रेम के तराने गाती मस्तानो की टोलियां थी। चंद्रशेखर आजाद, भगवतसिंह सुखदेव अशफाक उल्ला खां रामप्रसाद बिस्मिल जैसे देशभक्त सिर पर कफ़न बांधकर चलने वाले वीर थे और दुर्बल देह में महावीर सा संकल्प धारण किये,सोटी और लँगोटी धारण पहने अहिसा और सत्याग्रह का वैचारिक शस्त्र धारण कर चलने वाले गांधी। गांधी की आंधी से यूनियन जैक हिल गया और उसके स्थान पर चढ़ गया अशोक चक्राहित तिरंगा,उसे देखकर समस्त भारतीयों के मन बांसों उछलने लगे।मन मयूर नाच उठे।

भाषा का प्रश्न

भाषा का प्रश्न भी भारतीय एकता में बाधक रहा है।आजादी के बाद जब हिंदी को राष्ट्र भाषा बनाया गया तो कुछ छिछली राजनीति करने वाले लोगो ने इसे रास्ट्रीय प्रश्न बनाकर लोगो मे यह भावना पैदा कर दी कि हिंदी हम पर थोपी जा रही है। उतर भारत वाले दक्षिण की भाषाओं को समाप्त करने का षड्यंत्र रच रहे थे। जातिवाद का जहर इस देश के लिए नया नही है। सारे भारत में अनेक जातियां है।प्रत्येक जाति के अपने स्वार्थ है।जातिवाद ने भारत को हमेशा से कमजोर बनाये रखा। आज भी यही स्थिति है।
प्रान्तीयता के झगड़ो ने राष्ट्र की संघ शक्ति को निर्बल बनाने का प्रयास किया।

संप्रदाय के विष को यह भारत आजादी से पहले भी पिता रहा है और आज भी अनचाहे उसे पीना पड़ रहा है।इस देश के दो टुकड़े इस सांप्रदायिकता के कारण ही हुए।पाकिस्तान को अलग होने के बाद लोगो का विचार था कि देश के विभाजन से इस समस्या का सदा सदा के लिए अन्त हो जाएगा। लेकिन यह विष तो दिन प्रतिदिन फैलता ही रहा है।राष्ट्र सर्वोपरि है। राष्ट्रीय भावो से ओतप्रोत होकर राष्ट्रीय एकता की प्रतीज्ञा करे। धर्म तोड़ना नही,बल्कि जोड़ना सिखाता है।

अनेकान्तवाद ही सहायक

आज आवश्यकता है स्वार्थ को त्यागने की।प्रत्येक भारतीय त्याग की भावना को जीवन मे अपनाये।बिना त्याग के सीनों में लगी आग को शांत नही किया जा सकता। हमे एकांतवाद की भावना का विसर्जन करके भगवान महावीर के द्वारा प्रदत्त अनेकान्तवाद के सिद्धांत को जीवन मे स्वीकारना है।समन्वय की भावना को व्यवहारिक रूप प्रदान करना है।मन मे उदार और ह्दय से विशाल बनकर सहिष्णुता के अंकुर यदि जीवन मे सींचेंगे तो सभी के जीवन मे एक क्रांतिकारी परिवर्तन आएगा।

शासन को और अधिक कल्याणकारी योजनाएं लागू करनी चाहिए जो देश मे समाजवाद की और अग्रसर हो सके।जनता को नैतिकता की शिक्षा दी जाए। उन्हें धर्म का मर्म बताया जाए। यह कार्यक्रम राष्ट्रीय अभियान की तरह लागू हो। राष्ट्रीय एकता के लिए अपनी कथनी और करनी में एकता लाये।देशवासी राष्ट्रीय भावना से ही सुखी एवं शांति प्राप्त कर सकेंगे और इसी से राष्ट्र कल्याण संभव है।

( कांतिलाल मांडोत )

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