जैन साधना पद्धति का प्रतिनिधित्व करते हैं संवर और निर्जरा : महातपस्वी महाश्रमण
महातपस्वी महाश्रमण के गुजरात स्तरीय स्वागत समारोह में उमड़ा जनसैलाब
व्यारा, तापी (गुजरात) : मानव-मानव में मानवीय मूल्यों का संचार करते, जन-जन को सद्भावना, नैतिकता व नशामुक्ति की प्रेरणा देते गुजरात की धरा पर गतिमान जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने सोमवार को प्रातःकाल डोसवाड़ा से विहार किया और पदयात्रा करते हुए व्यारा पधारे। युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी के गुजरात स्तरीय स्वागत समारोह के क्रम में सूरत, अहमदाबाद सहित अन्य अनेक क्षेत्रों से बड़ी संख्या में श्रद्धालु श्रावक समुदाय उपस्थित था।व्यारा नगरी में आचार्यश्री ने जैसे ही प्रवेश किया, उपस्थित श्रद्धालुओं के जयघोष से पूरा वातावरण गुंजायमान हो उठा।
भव्य स्वागत जुलूस को देख ऐसा लग रहा था मानों व्यारा में आचार्यश्री का चातुर्मासिक प्रवेश हो रहा हो। अपने दोनों करकमलों से जनता पर आशीष बरसाते हुए आचार्यश्री लगभग 14¹ किलोमीटर का विहार कर व्यारा में स्थित के.एम. गांधी प्राइमरी स्कूल के प्रांगण में पधारे। भक्तों की विशाल उपस्थिति से विशाल स्कूल परिसर पूरी तरह जनाकीर्ण बना हुआ था।
स्कूल प्रांगण में बने तीर्थंकर समवसरण से तीर्थंकर के प्रतिनिधि आचार्यश्री महाश्रमणजी ने उपस्थित जनमेदिनी को पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि दो कार्य होते हैं- निरोध व निकालना। शोधन के लिए आने वाले कर्मों के बंध को निरोध के द्वारा रोकना भी होता है तो पहले से स्थित कर्मों को निकालना भी आवश्यक होता है। जैन साधना में पद्धति में दो शब्द हैं- संवर और निर्जरा। ये दो शब्द जैन साधना पद्धति का प्रतिनिधित्व करते हैं। संवर का कार्य है कि नए सिरे पाप कर्म का बंध न हो तथा आगे चलकर किसी भी प्रकार के कर्मों का बंधन हो। पहले से बंधे हुए कर्मों को निकालने के लिए निर्जरा तत्त्व आवश्यके होता है।
ये दोनों तत्त्व आदमी जीवन में आत्मगत हो जाएं तो आदमी विशुद्धि की दिशा में गति कर सकता है और अंतिम निष्पत्ति मोक्ष को भी प्राप्त हो सकता है। तात्त्विक दृष्टि से देखें तो निर्जरा का प्राप्त होना थोड़ा आसान होता है। निर्जरा पहले गुणस्थान में भी हो सकती है और संवर पांचवें गुणस्थान में प्राप्त होता है। इसलिए यह विशिष्ट भी होता है। निर्जरा के लिए तपस्या की जाती है। पिछले वर्ष सूरत में अक्षय तृतीया के अवसर पर हजार से ज्यादा लोगों ने वर्षीतप का पारणा किया। यह शायद तेरापंथ की दृष्टि से ऐतिहासिक कार्य हुआ था। इसके साथ आदमी अपने जीवन में अनुकूल और प्रतिकूल परिस्थितियों में समता भाव में रहे तो संवर की साधना और अधिक पुष्ट हो सकती है।
आचार्यश्री ने आज के कार्यक्रम के संदर्भ में कहा कि गुजरात में प्रवेश तो 6 जुलाई को ही हो गया था, किन्तु कार्यक्रम आज है। सूरत शहर में वर्ष 2024 का चतुर्मास करना है। यहां पूर्व में परम पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी ने भी चतुर्मास किया था। कार्यकर्ता खूब अच्छी धार्मिक-आध्यात्मिक सेवा करते रहें, तनाव से मुक्त रहें। अवसर का आध्यात्मिक लाभ उठाने का प्रयास करें।
आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी ने भी उपस्थित विशाल जनमेदिनी को उत्प्रेरित किया। स्वागत कार्यक्रम में तेरापंथी सभा-व्यारा के अध्यक्ष श्री मिठालाल खाब्या, कर्मणा जैन श्रावक श्री गंगाराम गुर्जर, तेयुप के श्री संदीप चोरड़िया, श्रीमती सुरभि चोरडिया, मूर्तिपूजक समाज की ओर से श्री ऋषभभाई शाह, स्थानकवासी समाज के मंत्री श्री रणजीत बड़ोला, डीडीयू श्री बी.एन. शाह ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। स्थानीय तेरापंथ महिला मण्डल ने स्वागत गीत का संगान किया। स्थानीय ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति दी।
गुजरात स्तरीय स्वागत समारोह के शुभारम्भ में चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति सूरत के अध्यक्ष श्री संजय सुराणा, भगवान महावीर युनिवर्सिटी के ऑन व चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के स्वागताध्यक्ष श्री संजय जैन, कच्छ-भुज व्यवस्था समिति के वरिष्ठ उपाध्यक्ष श्री चंदूभाई संघवी ने अपनी भावाभिवयक्ति दी। सूरत प्रवास व्यवस्था समिति ने गीत का संगान किया। तेरापंथ किशोर मण्डल-सूरत ने भी गीत का संगान किया।
अहमदाबाद चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष श्री अरविंद संचेती ने अपनी भावनाओं का की अभिव्यक्ति देते हुए व्यवस्था समिति के सदस्यों के साथ अहमदाबाद चतुर्मास के लोगो को पूज्यचरणों में लोकार्पित किया। प्रिया गुर्जर ने नौ की तपस्या का प्रत्याख्यान किया।