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जीएसटी के चक्र में फंस के रह गया दुल्हन का लहंगा

सूरत। जब से जीएसटी लागू हुआ तब से लेकर आज दिन तक ये नही साबित हो पाया कि आखिर लहंगा रेडीमेड में है या साधारण कपड़ा वही दूसरी ओर रेडीमेड गारमेंट लगातार एक बड़े हब के रूप में विकसित हो रहा है। टैक्स कंसल्टेंट नारायण शर्मा ने बताया कि ग्राहकों को आज भी 1000 रुपये के नीचे में 5% व इसके ऊपर 12 जीएसटी देना पड़ रहा है। इसी तरह रेडीमेड गारमेंट में कीमतों में पेंच में ग्राहकों की जेब कट रही है। कारण की लहंगा कोई बिना सिलाए पहना नही जाता साथ ही लहंगे और ब्लाउज की सिलाई में 1000 से 2000 रुपये का खर्च होता है।

ऐसे में लहंगे को आखिर रेडीमेड या फिर अन्य कपड़ा माना जाए वहीं कहि दुकानदार ब्लाउज और लहंगे की फीटिंग करा कर देते हैं।जिससे स्थिति साफ नही होने की वजह से ग्राहक को जीएसटी 5% या फिर 12% के पेच में फसना पड़ता है। कारण की थोक में अगर कोई रेडीमेड 970 रुपये में खरीदा। इस पर 5 जीएसटी लगना चाहिए लेकिन अगर दुकानदार अपना मुनाफा जोड़कर ग्राहक को 1150 रुपये में बेचता है तो कम्प्यूटर 12 जीएसटी वसूल करता है।

इसलिए सरकार को लहंगा से लेकर रेडीमेड गारमेंट पर दो तरह की जीएसटी नही लाकर एक उत्पाद को एक ही स्लैब के दायरे रखा जाना चाहिए। कारण की इस ‘लहंगे से भ्रम की स्थिति साफ होनी चाहिए जिससे ग्राहकों को राहत मिल सके।

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