
भारतीय राजनीति के चमकते सितारे अटल बिहारी वाजपेयी
15 अगस्त और 16 अगस्त भारतीय क्षितिज पर अहम दिन है।आज 16 अगस्त के दिन इसलिए अहम है कि भारतीय राजनीति में अटल बिहारी वाजपेयी की पुण्य तिथि है।आज ही के दिन फानी दुनिया छोड़कर अटल बिहारी हमेशा हमेशा के लिए अलविदा कह गए। भारतीय राजनीति में अज्ञात शत्रु रहे अटल बिहारी वाजपेयी का विपक्ष ने भी कभी विरोध नही किया। वे हमेशा नेहरू जी को पंडितजी कहकर संबोधित करते थे। जो उनके प्रति भाव थे। उनसे अटल बिहारी अलग परिभाषित होते थे।
पाकिस्तान ने भी अटल बिहारी वाजपेयी का कई बार बखान किया है। भारत रत्न प्राप्त अटल बिहारी ने भारतीय राजनीति में सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया था। अटल बिहारी की जर्मनी,रूस और स्विजरलैंड की बेहद कामयाब यात्रा के लिए उन्हें सम्मानित करने के लिए एक दर्जन कैबिनेट मंत्रियों के समेत 250 से अधिक पार्टी नेताओं को आमंत्रित किया। सभी भाषण सुनने के लिए तैयार हो गए थे। किसी को भान नही था कि उनके ह्दय सम्राट उंन्होने उस दिन धोती ,कुर्ते के बदले जोधपुरी बन्द गला पहन रखा था।
अटल बिहारी ने यह ऐलान करके तूफान खड़ा कर दिया कि अगले चुनाव में पार्टी के अभियान का नेतृत्व लालकृष्ण आडवाणी करेंगे। उनके इस बयान से राजनीतिक सहयोगियों और विरोधियों को उलझन में डाल दिया। स्पष्ट वक्ता अटल बिहारी वाजपेयी के मन मे जो आता था। वे कही भी किसी भी जगह बोल देते थे। इस स्पष्टीकरण के गुण को हर जगह उनको इज्जत और सम्मान मिलता रहा था। वाजपेयी अगर भगवा इमारत की छत थी,तो आडवाणी उनका स्तम्भ। दोनों लगभग विभिन्न विषयों पर विचार विमर्श करते थे। अटल बिहारी ने खुद आडवाणी को राजनीतिक उत्तराधिकारी माना था।
अटल बिहारी वाजपेयी ने 2002 के बजट सत्र के बाद उन्होंने अपने करीबी समर्थकों से कहा था कि वे जल्द ही सन्यास ले लेंगे। 1952 से लोकसभा में विपक्ष में बैठने वाली जनता पार्टी को भारतीय जनता पार्टी में क्रमोन्नत कर देश की सबसे बड़ी पार्टी बनाने के पीछे अटल बिहारी वाजपेयी की सोच और निष्ठा रही है। उनके इस कामयाबी के पीछे देशप्रेम की अटूट श्रद्धा ने सेतु का काम किया है।वाजपेयी अपनी अपरिहार्यता ,अपने विशाल रास्ट्रीय कद और अपनी लोकप्रियता से हमेशा से वाकिफ रहे है।वे और बड़े नेता के रूप में उभरने के पीछे कदम खींचते थे।
वे एकलौते नेता थे जिनका मौन उनके भाषण से ज्यादा घातक होता था।वे दु साहसी नेता नही थे। उन्हें महान समझौतावादी कहा जा सकता था। लेकिन कोई नासमझ ही उनकी विन्रमता को कमजोरी समझता होगा। अटल बिहारी वाजपेयी का निशाना सटीक होता था। उंन्होने शक्ति के सभी वैकल्पिक केंद्रों को बड़ी चतुराई से ढहा कर इस कहावत को चरितार्थ किया था कि दयालुता के साथ मारो,प्रतिशोध की भावना से नही।
भारत के राजनैतिक इतिहास में कम से कम उत्तराधिकारी के मामले में वाजपेयी का अपवाद अद्वितीय था।जवाहरलाल नेहरू समेत अतीत के सभी प्रधानमंत्री पार्टी के भीतर अपने दमदार प्रतिद्वंद्वीयो को लेकर असुरक्षित रहे।उंन्होने अपने काल्पनिक या वास्तविक दुश्मन को नियंत्रित या निष्प्रभावी करने के लिए बड़ी मेहनत की थी।नेहरू सरदार वल्लभभाई पटेल,इंदिरा गांधी मोरारजी देसाई तथा सिंडीकेट के दूसरे सदस्यों राजीव गांधी विश्वनाथ प्रतापसिह वीपी सिंह और शरद पवार को लेकर आशंकाग्रस्त थे। लेकिन वाजपेयी ने कभी इस तरह की शंका जाहिर नही की थी।आत्मविश्वास का प्रदर्शन करते हुए उन्होंने अपने मंत्रियों को काम करने की छूट दी थी।भाजपा मानती थी कि अटल उनके निर्विवाद नेता है। अटल बिहारी भाजपा के ही नही बल्कि राजग के लिए भी मुख्य आकर्षक रहे थे।
अटल के जनमत सर्वेक्षण में पार्टी से भी पारा अधिक ऊंचा आया था। इसलिए नही कि वाजपेयी पार्टी के लिए खास नही थे।वे दूसरी विपक्षी पार्टियों के भी अहम और अज्ञात शत्रु रहे है। वाजपेयी का पुरा जीवन देश के लिए समर्पित रहा था।वे देश के लिए जिये और अंतिम स्वास तक भारत की मिट्टी की महक अपने जेहन में संजोए रहे। अयोध्या मामला रहा हो या गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी का मामला।उन्हें चारो तरफ से घेर लिए जाते तो वे सन्यास वाले ब्रह्मास्त्र करने में भी नही चूकते थे।वे आर्थिक सुधारक से ज्यादा राजनैतिक नीतिनिर्यता थे।
पांच वर्षों में उंन्होने कोई प्रेरणादायक आर्थिक रणनीति नही पेश की थी। गठबंधन की मजबूरियों की मजबूरियों के कारण उन्होंने अपने मंत्रियों के खिलाफ कोई कार्यवाई नही की थी। आडवाणी को आधिकारिक राजनैतिक और प्रशासनिक अधिकारी देने के साथ ही वाजपेयी का कद देश और विदेश में बढ़ता चला गया।
अटल और आडवाणी भाजपा के के चिरस्थाई दो ध्रुव,बुद्धि और शरीर,मुखोटा और मांसपेशी ,चांद और सूरज,आडवाणी की महत्वकांशा वाजपेयी की आभा से दब गई थी। उनकी सक्रिय मौजूदगी वाजपेयी की निष्क्रिय राजनीति से कम आकर्षक थी। उनकी वाक पटुता को उतना ही भुनाया जा सकता था। जितना प्रधानमंत्री की खामोशियों को।
वाजपेयी की लोकसभा में विश्वास मत के दौरान एक वोट से हार गए थे। उस समय अटल बिहारी ने हंस कर कहा कि मुझे हार से कोई गम नही है। वे परिस्थितियों से कभी समझौता नही करते थे।वे सामना करते थे।
देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने कई नेताओं को जेल में डाल दिया था। लेंकिन अटल कहते थे कि इंदिरा गांधी भी इतनी बुरी नही है। वाजपेयी ने कहा कि बांग्लादेश बनने के बाद मैंने इंदिरा गांधी को दुर्गा कहा। लेकिन उन्होंने अपने पिता नेहरू से कुछ नही सीखा।
काल के कपाल पर लिखता मिटाता हूँ।गीत नया गाता हूँ।कवि ह्दय अटल बिहारी ने अनेक कविताए लिखी थी। गीत नया गाता हूँ जैसी उनकी रचना आज भी देश मे कही कही गूंजती ही रह्ती है। मध्यप्रदेश में जन्मे अटल बिहारी ने तीन बार प्रधानमंत्री की कुर्सी संभाली।उनको भारत रत्न से नवाजा गया।अटल बिहारी ने प्रधानमंत्री कार्यालय में दबते पांव शुरुआत की थी। उंन्होने अपना सिक्का जमा लिया था। वाजपेयी सुप्रीम नेता बन गए।
प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी अंत तक सर्वश्रेष्ठ प्रधानमंत्री के मायने में बढ़त बनाए हुए थे। अटल बिहारी वाजपेयी ने अमृतसर में तिरंगा यात्रा के भाषण में जलियांवाला बाग के इतिहास और वर्तमान का ऐसा चोखा बनाया कि श्रोता तो श्रोता,भाजपा के दिग्गज नेता भी बगले झांकने लगे। संसद में अपराजेय वक्ता और राजनैतिक भाषण कला में माहिर वाजपेयी की त्रुटियां बेशक हैरान करने वाली रही थी। उस समय उपस्थित श्रोता और नेताओं को यह अहसास हो गया थाकि वाजपेयी की स्मरण शक्ति कम हुई है। अटल बिहारी की याददाश्त जाने के बाद उनकी स्मरण शक्ति कभी नही आई।
अंततः सभी को छोड़कर क्षितिज में अमर नाम कर अटल बिहारी हमेशा दुनिया से दूर चले गए।जिन्हें आज भी पक्ष तो क्या विपक्ष भी भुला नही पाया है।महान व्यक्तित्व को शत शत नमन।श्रद्धांजलि अर्पित करते है।
( कांतिलाल मांडोत )