धर्म- समाज

मानव जीवन को सफल-सुफल बनाने का प्रयास करे मानव : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण

महातपस्वी का महाश्रम, 16 कि.मी का किया प्रलम्ब विहार

कच्छ (गुजरात) : जन-जन को सद्भावना, नैतिकता व नशामुक्ति का संदेश देने वाले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा प्रणेता, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ गुरुवार को प्रातःकाल की मंगल बेला में आडेसर से मंगल प्रस्थान किया। लगभग ढाई महीने तक गुजरात के सबसे बड़े जिले कच्छ में विहार प्रवास आज सुसम्पन्न हो रहा था। जनता को मंगल आशीर्वाद देते हुए शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी कच्छ जिले की सीमा को अतिक्रान्त कर पाटन जिले की सीमा में मंगल प्रवेश किया।

आचार्यश्री लगभग नौ किलोमीटर का विहार सम्पन्न कर पाटन जिले के पिपरला गांव में स्थित श्री वीर डांगर दगायचा दादा अतिथि भवन में पधारे। वहां कुछ अल्पकाल का प्रवास कर महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पुनः विहार किया। तीव्र धूप के बावजूद भी समता के साधक आचार्यश्री लगभग 7 किलोमीटर का विहार कर रोजू में स्थित अमृत कलापूर्ण तीर्थ विहार धाम में पधारे। महातपस्वी आचार्यश्री ने इस बढ़ती गर्मी और धूप के बीच भी कुल लगभग सोलह किलोमीटर का प्रलम्ब विहार किया।

उपाश्रय परिसर में आयोजित मुख्य मंगल प्रवचन कार्यक्रम के दौरान शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने समुपस्थित श्रद्धालुओं को पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ में 32 आगम मान्य हैं। इनमें एक है उत्तराध्ययन। छत्तीस अध्ययनों वाला यह आगम है। इसमें तत्त्वबोध संबंधी जानकारियां दी गई हैं तो आध्यात्मिक साधना का दिशा-निर्देशन भी किया गया है। कथा व घटना प्रसंगांे से वैराग्य की प्रेरणा भी प्राप्त की जा सकती है।

इसके दसवां अध्ययन छोटा-सा है। इसमें बताया गया है कि मनुष्य जीवन दुर्लभ है। कई प्राणियों को लम्बेकाल तक मनुष्य जन्म नहीं प्राप्त होता है। इस दुर्लभ मानव में आदमी को समय मात्र भी प्रमाद करने से बचने का प्रयास करना चाहिए। चौरासी लाख जीव योनियों में मानव जन्म दुर्लभ है और वर्तमान में यह जन्म हम सभी को प्राप्त है। इसमें आदमी क्या करे, यह विचारणीय है। साधु बनने का सौभाग्य न मिले तो भी गृहस्थ जीवन में भी मानव जन्म को जितना संभव हो सके, सफल बनाने का प्रयास करना चाहिए। जितना संभव हो सके, धर्म, ध्यान, भक्ति आदि करने का प्रयास करना चाहिए।

तीर्थंकर के प्रति श्रद्धा हो, गुरु की पर्युपासना करो। गुरु की आज्ञा में रहना भी गुरु की सेवा हो जाती है। जहां तक संभव हो गुरु की उपासना का लाभ प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए। जीवन में दया, अहिंसा, अनुकंपा की भावना को रखने का प्रयास करना चाहिए। जितना संभव हो सके, जीवों के प्रति दया, अनुकंपा की भावना हो। सुपात्रों को दान देने का प्रयास करना चाहिए। जरूरतमंदों को भी दान दिया जा सकता है। गुणों के प्रति अनुराग की भावना हो। जहां से भी ज्ञान मिले, वहां से ग्रहण करने का प्रयास करना चाहिए।

जीवन में जहां तक संभव हो, संयम भी रखने का प्रयास करना चाहिए। शास्त्रों की वाणी कानों में पड़े, ऐसा प्रयास करना चाहिए। भगवान, अर्हतों की भक्ति, गुरु की उपासना, गुणों के प्रति अनुराग, दान दें और आगम वाणी का श्रवण करें तो मानव जीवन सफल, सुफल हो सकता है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button