
भारत की परमाणु सहेली की अब एक नई पहल – आज़ादी से आत्मनिर्भरता की ओर`
सूरत में भारत की परमाणु सहेली के नाम से जानी जाने वाली डॉ. नीलम गोयल ने आज एक प्रेस कांफ्रेंस का आयोजन किया । सर्वश्रेष्ठ ग्रामीण विकास पहल, दादा साहब फाल्के, नारी तुझे सलाम, नाम करेगी रोशन बेटी व अनेक प्रतिष्ठित पुरुष्कारों से सम्मानित भारत की परमाणु सहेली, डॉ. नीलम गोयल ने भारत को जल-ऊर्जा-रोजगार आत्मनिर्भरता के पथ पर ले जाने की दिशा में 3 गाँवों के एक क्लस्टर में 300 वर्षाजल पोंड़ों का निर्माण कार्य संपन्न करवा लिया है ।
प्रेस कॉन्फ़्रेंस में बताया गया कि सम्पूर्ण देश का 60% भूजल स्तर पिछले दस सालों में ही नीचे चला गया है । जल शक्ति मंत्रालय की हाल ही में आई रिपोर्ट के अनुसार, राजस्थान (150%), पंजाब (157%), दादर-नगर हवेली व दमन-दीयू (142%), हरियाणा (136%) व दिल्ली (101%) ऐसे राज्य व केंद्र-शाशित प्रदेश हैं जिनमें भूजल दोहन दर 100% से अधिक पहुँच चुका है । यानी इन राज्यों में हर साल जितना भूजल वर्षाजल से रिचार्ज होता है उससे ज़्यादा मानवीय गतिविधियों द्वारा ज़मीन से फिर खींच लिया जाता है । इन राज्यों में भी वे राज्य जिनमें सिंचाई ही भूजल दोहन का मुख्य कारण है वे हैं – राजस्थान (82%), पंजाब (95%) व हरियाणा (90%) । सिंचाई, उद्योग व पीने के प्रयोगों में होने वाली पानी की वर्तमान खपत के हिसाब से राजस्थान ऐसा राज्य बन गया है जिसमें और अधिक भूजल प्रयोग की गुंजाइश लगभग ख़त्म ही हो गयी है ।
अतः दोहन दर 100% से अधिक होना, भूजल दोहन में सिंचाई मुख्य कारण होना व अधिक प्रयोग की संभावनायें ख़त्म हो जाना वे तीन कारण हैं जिनकी वजह से डॉ नीलम गोयल ने संपूर्ण भारत वर्ष में जल-संरक्षण की अपनी मुहिम हेतु राजस्थान राज्य को अपना कार्य क्षेत्र चुना । अगर इस स्थिति को अपने हाल पर ही छोड़ दिया गया इन राज्यों का रेगिस्तान बनना निश्चित है ।
गुजरात राज्य में ही बनासकाँठा, गांधीनगर, मेहसाना, पाटन व तापी ऐसे ज़िले हैं जिनमें भूजल स्तर का दोहन 100% से अधिक है । इन ज़िलों में भी सिंचाई से होने वाला भूजल दोहन कुल दोहन का 90% से भी अधिक है अतः कृषि प्रधान भारत में सतत सिंचाई प्रणाली की व्यवस्था करना आज मानव सभ्यता हेतु सबसे अहम पहलू है । संपूर्ण राजस्थान राज्य में भी दौसा ऐसा ज़िला है जिसकी भूजल दोहन दर संपूर्ण राज्य में सबसे ज़्यादा है (244%) व और अधिक भूजल प्रयोग की कोई गुंजाइस नहीं रह गयी है ।
दौसा ज़िला में इस 244% दोहन दर में से 195% दोहन दर तो सिंचाई में भूजल प्रयोग से ही है । यानी दौसा में सिंचाई जल-आपूर्ति में ही कुल भूजल रिचार्ज का दोगुना पानी प्रयोग हो रहा है । कृषि प्रधान भारत में सिंचाई जल-आपूर्ति को सतत बनाने के उद्देश्य से अतः प्रकृति संतुलन हेतु, भारत की परमाणु सहेली, डॉ नीलम गोयल व आईआईटी खड़गपुर से पासआउट व भारत सरकार में सलाहकार रह चुके उनके तकनीकि सलाहकार, विप्र गोयल ने मिलकर अपने जीवन का धेयै बनाया है कि वे इस 95% दोहन दर का खात्मा कर इस कीमती भूजल स्तर को दोहन से मुक्त कर उल्टा रिचार्ज की ओर ले जाएंगे । गिरते भूजल स्तर से भारत को कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है जैसे पीने के पानी की कमी के साथ-साथ, वनस्पति सघनता में कमी, भूजल में फ्लोराइड व आर्सेनिक की बढ़ती मात्रा व खारा होता हुआ भूजल।